जानिए कैसे बचें चंद्र ग्रहण दोष से? चंद्र ग्रहण दोष पूजन विधि

चंद्र ग्रहण दोष

क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है कि आपका जीवन अस्त-व्यस्त होने लगे,आपकी मानसिक शांति भांग होने लगे,आपके धन संचय का जरिया अचानक से छिन जाए, आपकी आमदनी कम होने लगे।लक्ष्मी आयें परंतु टिके नहीं,परिवार में झगड़े होने लगे,पारिवारिक अशांति होने लगे या फिर आप अक्सर विवादों में फसे। ऐसा अक्सर तब होता है जब हमारी कुंडली में ग्रहण दोष लगता है मुख्यता ग्रहण दो प्रकार के होते है, चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण।चंद्र क्योंकि हमारे मानसिक स्थितियों पर नियंत्रण रखता है इसलिए चंद्र ग्रहण दोष लगने पर अक्सर हमारी मानसिक शांति छिन जाती है।

◆क्या होता है चंद्र ग्रहण दोष?

जब राहु या केतू का योग चंद्र के साथ हो जाता है तो चंद्र ग्रहण दोष लगता है। दूसरे शब्‍दों में, चंद्र के साथ राहु और केतू का नकारात्‍मक गठन, चंद्र ग्रहण दोष कहलाता है। ग्रहण दोष का प्रभाव, विभिन्‍न राशियों पर विभिन्‍न प्रकार से पड़ता है जिसके लिए जन्‍मकुंडली, ग्रहों की स्थिति भी मायने रखती है|

◆कैसे पता लगाएं चंद्र ग्रहण दोष का?

जिस प्रकार सूर्य या चंद्र ग्रहण होने पर अंधकार छा जाता है, उसी प्रकार कुंडली में ग्रहण दोष लगने पर जीवन में आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक,आध्यात्मिक, नौकरी में प्रमोशन, व्यापार में लाभ जैसी स्थितियों पर भी ग्रहण लग जाता है। व्यक्ति की तरक्की रुक जाती है। जब किसी के जीवन में अचानक परेशानियां आने लगे, कोई काम होते-होते रूक जाए। लगातार कोई न कोई संकट, बीमारी बनी रहे तो समझ जाना चाहिए कि उसकी कुंडली में ग्रहण दोष लगा हुआ है।

◆कैसे करें चंद्र दोष का निवारण?

चंद्र ग्रहण दोष से बचने के लिये पीड़ित को चंद्रमा के अधिदेवता भगवान शिव की पूजा करनी चाहिये साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं शिव कवच का पाठ भी चंद्र दोष को कम करने में सहायता प्रदान करता है। इनके अलावा चंद्रमा का प्रत्याधिदेवता जल को माना गया है और जल तत्व के स्वामी भगवान श्री गणेश हैं इसलिये गणेशजी का पूजन करने से भी चंद्र दोष दूर होता है।विशेषकर जब चंद्रमां के साथ केतु युक्ति कर रहा हो।लेकिन कोई भी पूजा तभी फलदायी होती है जब उसे विधिवत रूप से किया जाये और पूजा को विधिवत रूप से करने के लिये विद्वान आचार्यों का मार्गदर्शन जरुरी है।

आज हम आपको चंद्र ग्रहण दोष से निवारण हेतु एक विधिवत पूजा भी बताएंगे।जिससे आपके जीवन में शांति आएगी और चंद्र ग्रहण दोष दूर होगा।

◆पूजा विधि – कैसे करें चंद्र ग्रहण दोष पूजा ?

चन्द्र पूजा का आरंभ सामान्य रूप से सोमवार के दिन किया जाता है तथा अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दिया जाता है। इस पूजा को पूरा करने के लिए सामान्यता 7 दिन लगते हैं किन्तु कुछ परिस्थितियों में यह पूजा 7 से 10 दिन तक भी चल सकती है जिसके चलते सामान्यतया इस पूजा के शुरुआत के दिन को बदल दिया जाता है तथा इसके समापन का दिन सोमवार ही रखा जाता है।

मंत्र जाप

किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है की उस पूजा के लिए निश्चित किये गए मंत्र का एक निश्चित संख्या में जाप करना तथा यह संख्या अधिकतर पूजाओं के लिए 125,000 मंत्र होती है तथा चन्द्र पूजा में भी चन्द्र वेद मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है।

पूजा के आरंभ वाले दिन पांच या सात पंडित पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक के साथ भगवान शिव के शिवलिंग के सामने बैठते हैं तथा शिव परिवार की विधिवत पूजा करने के पश्चात मुख्य पंडित यह संकल्प लेता है कि वह और उसके सहायक पंडित उपस्थित यजमान के लिए चन्द्र वेद मंत्र का 125,000 बार जाप एक निश्चित समय में करेंगे तथा इस जाप के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि करेंगे। जाप के लिए निश्चित की गई अवधि सामान्यतया 7 से 10 दिन होती है।

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संकल्प के समय करें यह काम

संकल्प के समय मंत्र का जाप करने वाले सभी पंडितों का नाम तथा अपने-अपने गोत्र का नाम बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पिताजी का नाम तथा उनका गोत्र भी बोला जाता है तथा इसके अतिरिक्त जातक द्वारा करवाये जाने वाले चन्द्र वेद मंत्र के इस जाप के फलस्वरूप मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता है जो साधारणतया जातक की कुंडली में अशुभ चन्द्र द्वारा बनाये जाने वाले किसी दोष का निवारण होता है अथवा चन्द्र ग्रह से शुभ फलों की प्राप्ति करना होता है।

चंद्र मंत्र का पाठ

इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए चन्द्र वेद मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं तथा प्रत्येक पंडित इस मंत्र के जाप को प्रतिदिन लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जिससे वे इस मंत्र की 125,000 संख्या के जाप को संकल्प के दिन निश्चित की गई अवधि में पूर्ण कर सकें।

सही समय पर हो जाप पूरा

निश्चित किए गए दिन पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है। सबसे पूर्व भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा फल, फूल, दूध, दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, मिठाई, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के साथ की जाती है तथा इसके पश्चात मुख्य पंडित के द्वारा चन्द्र वेद मंत्र का जाप पूरा हो जाने का संकल्प किया जाता है।

जिसमे यह कहा जाता है कि मुख्य पंडित ने अपने सहायक अमुक अमुक पंडितों की सहायता से इस मंत्र की 125,000 संख्या का जाप निर्धारित विधि तथा निर्धारित समय सीमा में सभी नियमों का पालन करते हुए किया है तथा यह सब उन्होंने अपने यजमान अर्थात जातक के लिए किया है जिसने जाप के शुरू होने से लेकर अब तक पूर्ण निष्ठा से पूजा के प्रत्येक नियम की पालना की है तथा इसलिए अब इस पूजा से विधिवत प्राप्त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को प्राप्त होना चाहिए।

इस तरह पूरी करें पूजा

अंत में एक सूखे नारियल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ विशेष सामग्री भरी जाती है तथा इस नारियल को विशेष मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन कुंड की अग्नि में पूर्ण आहुति के रूप में अर्पित किया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इच्छित फल एक बार फिर मांगे जाते हैं। तत्पश्चात यजमान अर्थात जातक को हवन कुंड की 3, 5 या 7 परिक्रमाएं करने के लिए कहा जाता है तथा यजमान के इन परिक्रमाओं को पूरा करने के पश्चात तथा पूजा करने वाले पंडितों का आशिर्वाद प्राप्त करने के पश्चात यह पूजा संपूर्ण मानी जाती है।

सही तरह से हो यह पूजा

हालांकि किसी भी अन्य पूजा की भांति चन्द्र पूजा में भी उपरोक्त विधियों तथा औपचारिकताओं के अतिरिक्त अन्य बहुत सी विधियां तथा औपचारिकताएं पूरी की जातीं हैं किन्तु उपर बताईं गईं विधियां तथा औपचारिकताएं इस पूजा के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं तथा इसीलिए इन विधियों का पालन उचित प्रकार से तथा अपने कार्य में ज्ञानी पंडितों के द्वारा ही किया जाना चाहिए। इन विधियों तथा औपचारिकताओं में से किसी विधि अथवा औपचारिकता को पूरा न करने पर अथवा इन्हें ठीक प्रकार से न करने पर जातक को इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल में कमी आ सकती है तथा जितनी कम विधियों का पूर्णतया पालन किया गया होगा, उतना ही इस पूजा का फल कम होता जाएगा।

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Posted On - July 5, 2020 | Posted By - Om Kshitij Rai | Read By -

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