भगवान शिव का यह तीसरा ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में है। यह भूमि की सतह से नीचे और दक्षिणमुखी है। मंदिर के गर्भगृह में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है। मध्य में ओंकारेश्वर तथा सबसे ऊपर के भाग में नागचंद्रेश्वर की मूर्ति है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार उज्जैन में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव के परम भक्त थे और शिवगुणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण राजा चंद्रसेन के मित्र थे। एक बार राजा के मित्र मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक चिंतामणि प्रदान की जोकी बहुत ही तेजोमय थी। राजा चंद्रसेन ने मणि को अपने गले में धारण कर लिया, लेकिन मणि को धारण करते ही पूरा प्रभामंडल जगमगा उठा और इसके साथ ही दूसरे देशों में भी राजा की यश-कीर्ति बढ़ने लगी।
राजा के पर्ति सम्मा और यश देखकर अन्य राजाओं ने मणि को प्राप्त करने के लिए की प्रयास किए, लेकिन मणि राजा की अत्यंत प्रिय थी। इस कारण से राजा ने किसी को मणि नहीं दी। इसलिए राजा द्वारा मणि न देने पर अन्य राजाओं ने आक्रमण कर दिया। उसी समय राजा चंद्रसेन भगवान महाकाल की शरण में जाकर ध्यानमग्न हो गए।
जब राजा चंद्रसेन बाबा महाकाल के समाधिस्थ में थे, तो उस समय वहां गोपी अपने छोटे बालक को साथ लेकर दर्शन के लिए आई। बालक की उम्र महज पांच वर्ष थी और गोपी विधवा थी। राजा चंद्रसेन को ध्यानमग्न देखकर बालक भी शिव पूजा करने के लिए प्रेरित हो गया। वह कहीं से पाषाण ले आया और अपने घर में एकांत स्थल में बैठकर भक्तिभाव से शिवलिंग की पूजा करने लगा। कुछ समय बाद वह भक्ति में इतना लीन हो गया की माता के बुलाने पर भी वह नहीं गया। माता के बार बार बुलाने पर भी बालक नहीं गया।
क्रोधित माता ने उसी समय बालक को पीटना शुरू कर दिया औऱ पूजा का सारा समान उठा कर फेंक दिया। ध्यान से मुक्त होकर बालक चेतना में आया तो उसे अपनी पूजा को नष्ट देखकरबहुत दुख हुआ। अचानक उसकी व्यथा का गहराई से चमत्कार हुआ। भगवान शिव की कृपा से वहां एक सुंदर मंदिर निर्मित हुआ। मंदिर के मध्य में दिव्य शिवलिंग विराजमान था एवं बालक द्वारा सज्जित पूजा यथावत थी। यह सब देख माता भी आश्चर्यचकित हो गई।
जब राजा चंद्रसेन को इस घटना की जानकारी मिली तो वे भी उस शिवभक्त बालक से मिलने पहुंचे। राजा चंद्रसेन के साथ-साथ अन्य राजा भी वहां पहुंचे। सभी ने राजा चंद्रसेन से अपने अपराध की क्षमा मांगी और सब मिलकर भगवान महाकाल का पूजन-अर्चन करने लगे। तभी वहां रामभक्तश्री हनुमान जी सामने आए और उन्होंने गोप -बालक की गोद में बैठकर सभी राजाओं और उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया। अर्थात शिव के अतिरिक्त प्राणियों की कोई गति नहीं है।
इस गोप बालक ने अन्यत्र शिव पूजा को मात्र देखकर ही, बिना किसी मंत्र अथवा विधि-विधान के शिव आराधना कर शिवत्व-सर्वविध, मंगल को प्राप्त किया है। यह शिव का परम श्रेष्ठ भक्त समस्त गोपजनों की कीर्ति बढ़ाने वाला है। इसे लोक में यह अखिल अनंत सुखों को प्राप्त करेगा व मरणोेपरांत मोक्ष को प्राप्त होगा।
इसी के वंश का आठवां पुरुष महायशस्वी नंद होगा, जिसके पुत्र के रूप में स्वंय नारायण कृष्ण नाम से प्रतिष्ठित होंगे। कहा जाता है भगवान महाकाल तब ही से उज्जैन में स्वयं विराजमान है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में महाकाल की असीम महिमा का वर्णन मिलता है। महाकाल को वहां का राजा कहा जाता है और उन्हें राजाधिराज देवता भी माना जाता है।
महाकालेश्वर एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग हैं जहां प्रतिदिन प्रात: चार बजे भस्म से आरती होती है। इसे भस्मार्ती कहते हैं। मान्यता है कभी श्मशान की चिता की भस्म भगवान को चढ़ाई जाती थी। इसके बाद जो आरती होती थी वह भस्मार्ती के रूप में विश्व प्रसिद्ध हुई। आजकल गाय के गोबर से बने कंडे की राख भगवान को भस्म के रूप में आरती के दौरान चढ़ाई जाती है। भस्मार्ती के अलावा मंदिर में प्रात: 10 से 11 बजे तक नैवेद्य आरती, संध्या 5 से 6 बजे तक अभ्यंग शृंगार, संध्या 6 से 7 बजे तक सायं आरती होती है। रात्रि 10.30 बजे से 11 बजे तक शयन आरती होती है। इसके बाद मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। भगवान महाकालेश्वर को भक्ति, शक्ति एवं मुक्ति का देव माना जाता है । इसलिए इनके दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति एवं मोक्ष प्राप्ति होती है ।
उज्जैन नगर का पुराणों एवं महाभारत में भी महिमा बताई गई है । यहाँ भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने सांदिपनी आश्रम में शिक्षा ग्रहण की । यहाँ प्रति बारह साल में बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर कुम्भ मेला लगता है । जिसे सिंहस्थ मेला नाम से जाना जाता है । यहाँ पुण्य सलिला क्षिप्रा नदी है, जिसका महत्व गंगा के समान बताया गया है ।
महाकाल मंदिर वर्ष भर में आप कभी भी जा सकते हैं।
उज्जैन एक धार्मिक नगरी है । जहाँ वर्ष भर कई त्यौहार-उत्सव मनाए जाते हैं । ऐसे त्यौहारों पर प्राय: नगर में अपार जन समूह एकत्रित होता है । अत: यात्रा के पूर्व ऐसे बड़े अवसरों की जानकारी प्राप्त करें । ताकि ठहरने या रात्रि विश्राम की स्थिति में असुविधा से बचा जा सके ।
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