अकसर लोगों को यह कहते हुए देखा गया है कि बहुत अधिक दान-पुण्य, धार्मिक अनुष्ठान और पूजा उपासना के बाद भी उनके जीवन से परेशानियां दूर होने का नाम ही नहीं ले रही। हर व्यक्ति के मन में यह सवाल ज़रूर आता है कि इतना पूजा-पाठ करने के बाद भी उसकी मनोकामना पूरी क्यों नहीं हो रही। इंसान यह भी सोचता है कि आखिर ईश्वर उनकी साधना को स्वीकार क्यों नहीं कर रहा और क्यों उनको सफलता के लिए उचित परिणाम नहीं मिल रहे। जब किसी व्यक्ति की उपासना, दान पुण्य को भगवान स्वीकार नहीं करते तो उसके पीछे एक नहीं बहुत सारे कारण होते हैं। पूजा के कुछ नियम होते हैं जिनका अनुसरण करना बहुत अवश्य होता है।
अगर आप यह चाहते हैं कि आपके द्वारा की गई पूजा का फ़ल आपको अवश्य मिले तो इस बात का ध्यान रखें कि पूजा करते समय आप हमेशा पीले या फ़िर सफ़ेद रंग के धुले हुए कपड़े पहने। इसके अलावा पूजा करने का एक समय होता है जैसे 3 से 4 के मध्य का समय सर्वोत्तम माना गया है। ऐसे समय में की गई पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
शास्त्रों के अनुसार पूजा-पाठ तथा यज्ञ के लिए आसन का प्रावधान बताया है । इसलिए आप यह सुनिश्चित कर लें कि जिस समय आप पूजा करें वह समय उचित होना चाहिए। आपका आसन साफ-सुथरा और धुला हुआ हो। यदि आप पूजा के समय मंत्र आदि पढ़ते हैं लेकिन आसन का प्रयोग नहीं करते तो आपकी पूजा का पृथ्वीकरण हो जाएगा। जिसके परिणाम स्वरूप आपकी पूजा की सारी ऊर्जा आसन के अभाव के कारण पृथ्वी में चली जाएगी और आपको इसका फल नहीं मिलेगा। कुछ लोग पूजा उपासना चारपाई पर बैठ कर भी कर लेते हैं या फिर नंगे फर्श पर बैठ जाते हैं। तो ऐसा करने से हमेशा बचें। यदि आपके पास आसन नहीं हो तो आप ऊनी कंबल को आसन की तरह प्रयोग कर सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार जप-तप और पूजा-पाठ हमेशा एकांत स्थान में करने के लिए कहा गया है। अगर उपासना करते समय कोई व्यक्ति आपको हाथ लगाकर छोड़ देता है तो भी पूजा के कारण पैदा हुई ऊर्जा का पृथ्वीकरण हो जाता है। इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि आप अकेले स्थान पर ही उपासना करें। इसके साथ ही हमेशा अपने पूजा स्थल को दूसरों की आंखों से छिपा कर रखें। इसीलिए ऐसा स्थान चुनें जहां पर किसी बाहर से आने वाले व्यक्ति की दृष्टि एकदम से न पड़े। अपने घर की सीढ़ियों के नीचे भी पूजाघर बिल्कुल भी नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह अच्छा नहीं होता।
भगवान की उपासना करने के बाद बिल्कुल भी गुस्सा नहीं करें। इसके साथ-साथ दूसरों की निंदा करने से भी बचें। यदि आप इनमें से कुछ भी करेंगे तो आपको, आपके द्वारा की गई पूजा का फ़ल बिल्कुल भी नहीं मिलेगा।
जब किसी के परिवार में किसी अविवाहित व्यक्ति की असमय मृत्यु हो जाती है तो उसे अतृप्त आत्मा माना जाता है। अतृप्त आत्मा अपनी मुक्ति के लिए हमेशा बाधाएं उत्पन्न करती हैं। अगर आप लगातार पूजा पाठ कर रहे हैं और उससे आपको बिल्कुल भी लाभ नहीं मिल रहा है तो आप एक बार इस बारे में भी अवश्य सोच लें कि कहीं आपके परिवार में कोई ऐसी घटना तो घटी नहीं है। अगर ऐसी कोई घटना घटी हो तो फिर आप शास्त्रों के अनुसार बताए गए नियमों के द्वारा अतृप्त आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयास करें।
अगर आप शास्त्रों के अनुसार पूजा-पाठ करना चाहते हैं तो आपको अपने खान-पान का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। अगर आप के खान-पान में शुद्धता नहीं होगी तो आपकी पूजा का फ़ल आपको बिल्कुल भी नहीं मिलेगा। अपने भोजन मे मांस-मदिरा आदि निषेध चीज़ों का बिल्कुल भी सेवन न करें। यह नियम केवल साधक के लिए नहीं है बल्कि साधक के परिवार वालों के लिए भी है।
अगर आपके घर में किसी भी प्रकार का वास्तु दोष है तो अपने घर में कभी भी पूजा उपासना नहीं करें। अपनी पूजा अर्चना के लिए आप किसी मंदिर का चुनाव कर सकते हैं। यदि आपने कोई नया घर खरीदा है तो इस बात को सुनिश्चित करें कि आपने अपना घर किसी ऐसे व्यक्ति से तो नहीं खरीदा है जो निःसंतान हो। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति निःसंतान रहता है तो उसके द्वारा प्राप्त हुई वस्तु दोष ग्रस्त होती है।
अगर आप यह चाहते हैं कि आपके द्वारा की गई पूजा का पूरा पूरा फल आपको मिले तो आपको इसके लिए सप्ताह में एक बार मौन व्रत अवश्य रखना चाहिए होगा। इसके द्वारा आपका आत्मबल बढ़ेगा और आपके अंदर सहनशक्ति का भी विकास होगा।
इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि जब भी आप पूजा करते हैं तो उसमें आपके द्वारा इस्तेमाल किया गया सारा सामान दूसरों से अलग रखें। इस बात का ध्यान रखें कि आपके पूजा के आसन और जप करने वाली माला तथा आपके पूजा के कपड़ों को दूसरे व्यक्ति बिल्कुल भी हाथ नहीं लगाएं ।
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