महाधनी योग: जानें कैसे बनता है कुंडली में महाधनी योग
आज आर्थिक युग का दौर चल रहा है। इस समय धन के बगैर भौतिक समाज में जीवन का बिताना काफी असम्भव है। साथ ही आज लोग पैसे कमाने के लिए दिन – रात कड़ी मेहनत करते है। लेकिन कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी लोगों को पैसों से जुड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वहीं हर व्यक्ति यह चाहता है कि वह अपने जीवन में अधिक से अधिक धन दौलत कमा कर ऐशो आराम से अपना जीवन व्यतीत करें। लेकिन ऐसा सबके नसीब में नही होता है। आपको बता दें कि काम करके दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया जा सकता। लेकिन लजीज व्यजंनो का स्वाद चखने के लिए जातक का भाग्य का प्रबल होना जरूरी है।
वहीं जातक की कुंडली में दो तरह के योग बनते है शुभ और अशुभ। अगर किसी जातक की कुंडली में शुभ योग जैसे महाधनी योग बनता है, तो जातक को अपने जीवन में काफी लाभ होता है। इस तरह के व्यक्ति को धन के मामलों में काफी लाभ मिलता है। साथ ही यह लोग अपने जीवन में काफी धन – दौलत कमाते है। वही दूसरी तरफ किसी व्यक्ति की कुंडली में अशुभ योग बनने से उस जातक को कई परेशानियों का सामना करना होता है। अशुभ योग से जातक अपने जीवन में कई परेशानियों में घिर जाता है। लेकिन अगर किसी जातक की कुंडली में महाधनी योग बनता है, तो उसे इस योग से काफी फायदा होता है। चलिए जानते है कि इस योग से जातक को क्या लाभ होता है। साथ ही यह योग जातक की कुंडली में कैसे बनता है-
क्या होता हैमहाधनी योग?
आपको बता दें कि जातक की जन्मपत्री में दूसरा भाव धन का कारक माना जाता है। इसके अलावा चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम भाव व एकादश भाव भी धन प्राप्ति के योगों का निर्माण करते है। वहीं प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम और दशम भाव की भूमिका भी धन प्राप्ति में काफी महत्वपूर्ण होती है। साथ ही दूसरा भाव यानि धन के कारक भाव की बहुत अहम भूमिका होती है।
आपको बता दें कि ऐसे कई योग है जैसे राजयोग, गजकेसरी योग, महापुरूष, चक्रवर्ती योग आदि जिनपर माता लक्ष्मी की विशेष कृपा या जातक को विपुल धन प्राप्त होने के प्रबल संकेत होते है। सबसे महत्वपूर्ण बात ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि निम्न प्रकार के सम्बन्ध धनेश, लग्नेश, पंचमेश, नवमेश और दशमेश आदि के मध्य बनते है, तो जातक की कुंडली में महाधनी योग बनता है।
कैसे बनता है कुंडली में महाधनी योग
लग्न और लग्नेश द्वारा बनता है महाधनी योग
आज के समय में धन के बिना व्यक्ति का जीवन गुजारना काफी मुश्किल हो जाता है। उसे अपनी मूलभूत की चीजों के लिए धन अवश्य चाहिए होता है।
अगर लग्नेश धन भाव में और धनेश लग्न भाव में स्थित होता है, तो यह योग विपुल धन योग का निर्माण करता है। वहीं अगर लग्नेश की लाभ भाव में स्थिति या लाभेश का धन भाव, लग्न या लग्नेश से किसी भी प्रकार का सबंध जातक को अधिक मात्रा में धन की प्राप्ति करता है।
साथ ही इन भावों या भावेशों पर नीच या शत्रु ग्रहों की दृष्टि नही पड़ती चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो योग खण्डित हो सकता है।
धन भाव या धनेश
अगर धनेश लाभ स्थान में हो और लाभेश धन भाव में यानि लाभेश, धनेश का स्थान परिवर्तन होता है, तो जातक की कुंडली में महाधनी योग बनता है और जातक काफी धनी होता है।
साथ ही जब धनेश या लाभेश केन्द्र में या त्रिकोण में मित्र भावस्थ हो तथा उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होती है, तो जातक की कुंडली में महधनी योग बनते है।
आपको बता दें कि अगर धनेश या लाभेश दोनों ही केन्द्र स्थान या त्रिकोण में युति कर लें, तो यह अति शक्तिशाली महाधनी योग बनता है।
जब महाधनी योग जातक की कुंडली में बनता है, तो जातक को काफी धन लाभ होता है।
साथ ही इस योग से जातक धनेश या लाभेश की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में भी काफी धन कमाता है।
तृतीय भाव या भावेश
अगर तीसरे भाव का स्वामी लाभ घर में हो या लाभेश और धनेश में स्थान परिवर्तन होता है, तो जातक अपने पराक्रम से बहुत धन कमाता है।
साथ ही अगर यह योग किसी क्रूर ग्रहों के मध्य होता है, तो अधिक शक्तिशाली माना जाता है। वहीं इस योग में सौम्य ग्रह कम फलदायी होते है।
चतुर्थ भाव या भावेश
चतुर्थेश और धनेश का स्थान परिवर्तन योग हो या धनेश और सुखेश धन या सुख भाव में परस्पर युति कर रहे हो, तो जातक बड़े- बड़े वाहनों और प्रापर्टी का मालिक बन जाता है।
साथ ही ऐसे जातक अपनी माता से विरासत में बहुत धन -दौलत प्राप्त करते है।
पंचम भाव या पंचमेश
पंचम भाव का स्वामी यदि धन, नवम अथवा लाभ भाव में होता है, तो जातक धनवान होता है।
अगर पंचमेश, धनेश और नवमेश लाभ भाव में अथवा पंचमेश धनेश और लाभेश नवम भाव में अथवा पंचमेश, धनेश और नवम भाव में युती होती है, तो जातक महाधनी बनता है।
साथ ही पंचमेश, धनेश, नवमेश और लाभेश चारों की युति होती है, तो सशक्त महाधनी योग बनता है। लेकिन यह योग बहुत कम बनता है।
षष्ठ भाव और षष्ठेश
षष्ठेश के लाभ या धन भाव में होने से शत्रु दमन द्वारा जातक को धन की प्राप्ति होती है।
साथ ही ऐसे योग में धनेश का षष्ठमस्थ होना बिल्कुल भी शुभ नहीं माना जाता है। वहीं ये योग बहुत कम ही घटित होता है।
सप्तम और सप्तमेश
अगर सप्तमेश धन भावस्थ हो या धनेश सप्तमस्थ हो अथवा सप्तमेश नवमस्थ या लाभ भावस्थ होता है, तो जातक ससुराल पक्ष से काफी धन प्राप्त करता है।
साथ ही ऐसे जातकों का उनके विवाह के बाद भाग्य काफी साथ देता है।
वहीं इस तरह के व्यक्ति काफी धनी व्यक्ति के दामाद बनते है।
नवम भाव और नवमेश
आपको बता दें कि नवमेश यदि धन या लाभ भाव में हो या धनेश नवमस्थ हो अथवा नवमेश और धनेश युक्त होकर द्वितीयस्थ, लाभस्थ, चतुर्थस्थ या नवमस्थ होता है, तो जातक महाभाग्यशाली होते है।
साथ ही वह किसी भी कार्य में अपना हाथ डालकर अपार धन प्राप्त कर सकते है।
अगर यह युति जातक के भाग्य में बनी रहें, तो वह अधिक बलवान हो जाता है।
दशम और दशमेश
धनेश और दशमेश की युति होने से जातक पिता के द्वारा या अपने किसी विशेष कार्य से धन प्राप्त करता है।
आपको बता दें कि ऐसा जातक काफी धनवान राजनेता होता है।
लाभ और लाभेश
आपको बता दें कि लाभेश का धन भावस्थ, पंचमस्थ या नवमस्थ होना या इन भावों के स्वामियों की केन्द्रों या त्रिकोण स्थानों में युति से जातक महाधनी बनता है।
धन प्राप्त करने के लिए आपको मां लक्ष्मी के आगे 11 दिनों तक अखंड ज्योति जलानी चाहिए। वहीं आपको 11वें दिन ग्यारह कन्याओं को भोजन करा कर एक सिक्का व मेहंदी भेंट करनी चाहिए।
आपको सवा पांच किलो आटा और सवा किलो गुड़ के मिश्रित आटे की रोटियां बनाकर गुरुवार के दिन शाम के समय गाय को खिलाना चाहिए।
अगर आप नियमिततीन गुरुवार तक यह उपाय करते है, तो आपके जीवन से धन का अभाव खत्म हो जाता है।
साथ ही धन लाभ के लिए आपको बरगद की जटा में एक गांठ लगा देनी चाहिए। वहीं धन लाभ होने के बाद इसे अवश्य ही खोल दें।
इसी के साथ आपको काली हल्दी को सिंदूर और धूप देकर लाल कपड़े में लपेटकर एक-दो सिक्कों के साथ अपनी तिजोरी में रखना चाहिए।