सकारात्मक बन स्वयं को समर्थ और शक्तिशाली बनाएं

सकारात्मक बन स्वयं को समर्थ और शक्तिशाली बनाए

मनुष्य आत्माओं की सबसे बड़ी भूल यदि कोई है तो वह है स्वयं को निर्बल करने में अपना सारा जीवन लगा देना। यह कोई नहीं मानेगा की कोई खुद को निर्बल बनाना चाहेगा, किंतु यदि सोचा जाए तो आज चारों ओर यही हो रहा है। निर्बलता की निशानियाँ क्या है? निर्बलता की निशानी है दूसरों पर निर्भर रहना फिर चाहे वह सुख के लिए हो, शांति के लिए हो या शक्ति के लिए हो।हमारी प्राथनाएँ भी इसी प्रकार की हो गयी है जिसमें हम स्वयं को अपने ईस्ट देवी देवताओं के सम्मुख कोसते रहते है। मैं पापी, खल कामी जैसे शब्दों से हम खुद को अपने आदर्श देवों के सम्मुख लज्जित करते है। उनके गुणों का बखान तो करते है लेकिन उन गुणों को धारण करने के लिए कुछ नहीं करते।

अपने संकल्पों को सकारात्मक व शक्तिशाली बनायें

हम जो भी शब्द बोलते है या जो भी कर्म करते है वो पहले हमारे संकल्पों के पटल पर निर्मित होते है। जिस व्यक्ति ने अपना पूरा ध्यान अपने संकल्पों को श्रेष्ठ बनाने में लगा दिया उससे शक्तिशाली व्यक्ति कोई हो ही नहीं सकता। सोचते सभी है, विचारों की निरंतर बहती धारा में हम बहते चले जाते है, ज़रूरत है कुछ पल रुककर देखेंगे कि, कहाँ बह रहा हूँ मैं। ऐसा करना अपने जीवन की नाव की पतवार थामने जैसा है।

एक बार आपको रुककर अपने संकल्पों को देखने का अभ्यास हो गया, फिर अपने संकल्पों को सकारात्मक बनाने के लिए प्रयास करें। मन में शुभ भावनाएँ उत्पन्न होने दे, खुद के लिए भी और सर्व के लिए भी। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराए जब तक आपके संकल्प आपके वश में ना आ जाए। मन को नियंत्रित करने का यह एक उत्तम मार्ग है जिसमें सम्पूर्ण जीवन भी लग जाए तो लाभकारी ही है।

देने वाले बने लेने वाले नहीं

हम जीवनभर पूजा तो करते है देवताओं की लेकिन खुद लेवता बने रहते है। सुख, शांति, प्रेम यह सब ऊर्जा है जो सभी आत्माओं की आवश्यकता है लेकिन सबको यह दूसरों से चाहिए। यह तो ऐसा हुआ जैसे सभी अपने फ़ोन की बैटरी एक दूसरे के फ़ोन से चार्ज करना चाहते है। हम सब करते भी ऐसा ही है। हमारी अपेक्षाओं की कोई सीमा नहीं है, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार दूसरों में स्पष्ट दिखता है लेकिन स्वयं में नहीं। दूसरों के लिए हम न्यायाधीश बने फिरते है ओर खुद के लिए वकील का कोट पहने सदा तत्पर रहते है।

स्वयं की ज़िम्मेवारी लेकर जो व्यक्ति चलता है वही देवता स्वरूप है। मैं दूसरों को क्या दे सकता हूँ, यह विचार जिसके मन में है वही महान है। मैं सदा दूसरों को शांति का अनुभव कराऊँ, मेरे द्वारा सबको सुख प्राप्त हो, मुझे किसी से प्रेम की आशा ना हो सभी के लिए मेरा हृदय सदा प्रेम से भरा हुआ हो। ऐसी वृत्ति जब हो तब देवताओं को भी अपने भक्तों पर गर्व करने का अवसर प्राप्त होगा।

समर्थ बनने के साधन

स्वयं को समर्थ और शक्तिशाली बनाने से पहले आवश्यक है जीवन में उच्च आदर्शों को धारण करना। समर्थ आत्मा बनने का अर्थ है स्वयं को हर परिस्थिति में अचल अडोल रहना, अपने आस पास के लोगों के लिए सम्बल बनना। सबको शांति, सुख का दान देते रहे। समर्थ आत्मा बनना एक निरंतर चलने वाली क्रिया है क्यूँकि इस विश्वमंच का हर पल एक दूसरे से अलग है। किस पल हमारे लिए कौनसी परीक्षा प्रतीक्षा में है कोई नहीं जानता। स्वयं को जीवन की प्रत्येक परिस्थिति के लिए तैयार रखने का मंत्र है माइंडफ़ुलनेस (सचेत अवस्था) ।

अपने कर्म, वचन और संकल्पों के प्रति सचेत रहना। हमारे कर्म किसी को दुःख पहुँचने वाले ना हो, बोल किसी के मन को आघात ना करे और मन में किसी में प्रति बैर ना हो। महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने है जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार करने वालों के प्रति कभी मन में मैल नहीं रखा बस निस्वार्थ भाव से अपने कर्म करते रहे। जिस प्रकार दवाई मनुष्य के शरीर को स्वयं ठीक नहीं करती बल्कि शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ा देती है वैसे ही ज्योतिष विज्ञान के लाभ भी उसी व्यक्ति को अधिक प्राप्त होते है जिसके मन में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार हो।

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Posted On - June 8, 2020 | Posted By - Ritu | Read By -

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