सोना ओर फिर जागना, इस चक्र के कोई मुक्त नहीं हो सकता, लेकिन इस चक्र को अपने लिए कल्याणकारी अवश्य बना सकता है। आज तक इस विषय में बहुत कुछ बताया गया है, लगभग सभी इस आदत के लाभ जानते ही है। यहाँ हम बात करेंगे हिंदू धर्म के अनेक ग्रंथों और धार्मिक पुस्तकों में लिए विषय में क्या कहा गया है। ब्रह्म मुहूर्त का महत्व सदा से ही हिंदू समाज में रहा है, प्राचीन काल से ही ऋषि मुनि प्रातः काल का सदुपयोग करते रहे है, साथ ही अपने शिष्यों में भी यह गुण हस्तांतरित करते रहे है।
ब्रह्म मुहूर्त का समय प्रातः 4:00 से 5:30 बजे तक का माना गया है। ब्रह्म मुहूर्त में मनुष्यों के विचार शांत रहते है जिससे वातावरण में अशांति, दुःख, चिंता के प्रकंपन बहुत कम मात्रा में होते है। इस समय प्रकृति अपने सतो गुण में विध्यमान रहती है जो हमें शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर अनेक लाभ पहुँचाती है। ब्रह्म मुहूर्त की वायु चंद्रमा की रोशनी के कारण अमृत तुल्य शीतल हो जाती है। वायुमंडल में ऑक्सिजन की मात्रा अत्यधिक होती है जो सारे शरीर को तरोताज़ा कर देती है। इस समय का वातावरण शांत, शीतल, आनंदप्रद व स्वास्थ्य वर्धक होती है। भ्रम मुहूर्त के समय यौगिक, मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं के लिए सर्वोत्तम होता है।
हमारी धार्मिक पुस्तकों में भी ब्रह्म मुहूर्त की उपयोगिता के विषय में श्लोकों के माध्यम से बताया गया है। हमारे वेद हो या महान ऋषियों द्वारा लिखी हुई स्मृतियाँ, सभी लेखों में ब्रह्म मुहूर्त के महत्व को बताया गया है।
प्रा॒ता रत्नं॑ प्रात॒रित्वा॑ दधाति॒ तं चि॑कि॒त्वान्प्र॑ति॒गृह्या॒ नि ध॑त्ते।
तेन॑ प्र॒जां व॒र्धय॑मान॒ आयू॑ रा॒यस्पोषे॑ण सचते सु॒वीर॑: ॥
प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठने वाले को उत्तम स्वास्थ्य रतन की प्राप्ति होती है, इसलिए बुद्धिमान उस समय को व्यर्थ नहीं खोते। प्रातः जल्दी उठने वाला स्वस्थ, बलवान, सुखी, दीर्घायु और वीर होता है।
यदद्य सूर उदितेऽनागा मित्रो अर्यमा ।
सुवाति सविता भगः ॥
मनुष्य को प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व शौच व स्नान से निवृत होकर ईश्वर की उपासना करनी चाहिए। सूर्योदय से पूर्व की शुद्ध व निर्मल वायु से स्वास्थ्य और सम्पदा की वृद्धि होती है
अथर्ववेद में ब्रह्म मुहूर्त के हमारे तेज पर प्रभाव के विषय में लिखा गया है कि-
उघन्तसूर्य इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे ।
अर्थात्- सूर्योदय तक जो नहीं जगत उसका तेज नष्ट हो जाता है।॰
महाभारत जैसी महागाथा के शांति पर्व में स्पष्ट रूप से लिखा है कि-
न च सूर्योदये स्वपेत् ।
इसका अर्थ है की सूर्य उदय हो जाने पर सोए नहीं रहना चाहिए।
महा ऋषि वाधूल द्वारा रचित ‘वाधूल स्मृति’ में ब्रह्म मुहूर्त के विषय में विस्तार से बताया गया कि कैसे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर हमें श्रेष्ठ आचरण द्वारा अपना कल्याण करना चाहिए । उन्होंने बताया हैं कि-
ब्राह्मो मुहूर्ते सम्प्राप्ते व्यक्तनीद्र: प्रसन्नधी: ।
प्रक्षाल्य पादावाचम्य हरिसंकीर्तनं चरेत् ।।
ब्राह्मो मुहूर्ते निन्द्रा च कुरूते सर्वदा तु यः ।
आशुचिं तं विजानीयदनर्ह: सर्वकर्मसु ।।
ब्रह्म मुहूर्त में जग जाना चाहिए और बिंद्रा का त्याग कर प्रसन्न मन रहना चाहिए। हाथ-पाँव धोकर आचमन से पवित्र होकर प्रातः कालीन मंगल श्लोकों का पाठ करना चाहिए और भगवान का कीर्तन करना चाहिए। ऐसा करने से सब प्रकार का कल्याण होता है।
हिंदू धर्म में वेदों,पुराणों, स्मृतियों आदि का बहुत महत्व है। जैसा कि हमने देखा हिंदू धार्मिक पुस्तकों में सुबह के समय उठने के विषय में अनेक ऐसी बातें लिखी है जिनके विषय में हमें जानकारी ही नहीं है। यह सब श्लोक उस समय बनाए गए जब सभ्यता का विकास तक विश्व में ठीक से नहीं हो सका था। आज का वैज्ञानिक अनुसंधान भी हमारे प्राचीन ज्ञान के सामने बौना प्रतीत होता है। उस समय अति सरलता से जनमानस तक लाभकारी सीख पहुँचाई गयी, ब्रह्म मुहूर्त में उठना भी उनमें से एक सबसे महत्वपूर्ण सीख थी, आवश्यकता है तो बस इन सीखों को अपने जीवन में उतारने की।
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