भारत में आज भी कन्याएं अच्छे वर की चाह में भगवान शिव की पूजा आराधना करती हैं। विशेषकर शिव जी की पूजा सोमवार के दिन की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से मनोवांछित फल मिलते हैं। हालांकि बहुत कम ही लोग हैं जो शिव-सती की प्रेम कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं। आज हम अपने इस लेख में इसी कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे।
शिव जी की पत्नी सती दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। बजपन से ही सती में अलौकिक शक्तियां थीं। दक्ष प्रजापति ने ऐसी ही पुत्री की चाह में तप किया था जिससे प्रसन्न होकर देवी आद्या ने उन्हें वरदान दिया था कि वह स्वयं दक्ष प्रजापति के घर में जन्म लेंगी। आद्या देवी ही दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं। सती ने बाल्यकाल में ऐसे-ऐसे चमत्कार दिखाए कि जिन्हें देखकर प्रजा औऱ दक्ष प्रजापति भी दंग रह गए।
जब सती विवाह योग्य हो गईं तो पिता को उनकी विवाह की चिंता सताने लगी। इस विषय में विचार विमर्श करने के लिए दक्ष प्रजापति भगवान ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा जी ने कहा कि, देवी सती आदि शक्ति का अवतार हैं इसलिए उनके लिए भगवान शिव से योग्य वर और कोई नहीं हो सकता। हालांकि दक्ष को शिव जी का नाम सुनकर प्रसन्नता नहीं हुई, क्योंकि दक्ष शिव के रूप और उनके संन्यासी वेश को पसंद नहीं करते थे। हालांकि ब्रह्मा जी की बात को सुनकर वह इस विवाह के लिए राजी हो गए।
इसके पश्चात धूमधाम के साथ शिव-सती का विवाह हुआ और दक्ष ने अपनी पुत्री को भगवान शिव के साथ विदा किया। हालांकि शिव-सती के विवाह के बाद भी दक्ष प्रजापति को शिव भगवान को लेकर संशय बना रहा।
एक बार ब्रह्मा भगवान ने एक सभा का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सभी देवताओं और आदरणीय जनों को बुलाया। इस सभा का मकसद धर्म का निरूपण करना था। इस सभा के दौरान जब सती के पिता दक्ष प्रजापति वहां पहुंचे तो सभी देवता और वह उपस्थित अन्य लोग उनके सम्मान में खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव ने ऐसा नहीं किया वह अपनी जगह पर बैठे रहे। शिव का ऐसा करना दक्ष को बहुत चुभा और भगवान शिव के प्रति उनके दिल में ईष्या उत्पन्न हो गई। दक्ष ने इसको अपना अपमान समझा और मन ही मन शिव भगवान से बदला लेने की ठान ली।
भगवान शिव से बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति एक बार एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया और जानबूझकर भगवान शिव को न्योता नहीं दिया। जब देवी सती को यह बात पता चली तो उन्होंने भगवान शिव से वहां जाने की बात कही लेकिन शिव जी ने कहा कि बिना बुलाए जाना गलत है। शिव जी के समझाने पर भी देवी सती नहीं मानी और हठ करने लगी कि उन्हें अपने पिता के घर जाना है। भगवान शिव ने अंत में हार मानकर वीरभद्र के साथ सती को उनके पिता के घर जाने की आज्ञा दे दी।
देवी सती अपने पिता के घर बहुत ही खुश मन से पहुंची। लेकिन जो उनको उम्मीद नहीं थी वह वहां हुआ। उनके पिता दक्ष प्रजापति ने जो ईष्या शिव भगवान के लिए अपने मन में जमा की थी वह सती के सामने प्रदर्शित कर दी। उन्होंने शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। सती को यह सुनकर बुरा लगा इसके बाद जब उन्होंने यज्ञ के मंडप की ओर देखा और उसमें भगवान शिव का भाग नहीं पाया तो अपने पिता से प्रश्न किया कि, मेरे भगवान शिव का भाग यज्ञ में क्यों नहीं है?
दक्ष प्रजापति ने रोक्ष में आकर सती से कहा कि वह शिव को देव नहीं मानते। ना हीं उन्हें देवताओं में गिनते हैं। वह भूतनाथ, हड्डियों की माला पहनने वाला है। उसको देवताओं की श्रेणी में कौन रखेगा।
पिता की बातों को सती को क्रोध आ गया। उन्होंने अपने पिता से कहा कि पति नारी का सबकुछ होता है और उसके खिलाफ जो स्त्री गलत बातें सुनती है उसे नर्क का भोगी होना पड़ता है, इसलिए मैं भी अब जीवित नहीं रह सकती। इन शब्दों के साथ ही सती यज्ञ की अग्नि में कूद पड़ी और आत्मदाह कर दिया। हवन की अग्नि के साथ ही उनका शरीर भी जलने लगा।
देवी सती के आत्मदाह के बाद वीरभद्र क्रोध में आ गए और उन्होंने दक्ष के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। शिव जी को जब यह बात पता चली तो वह क्रोध में आ गए और प्रचंड रूप में वहां पहुंचे। उन्होंने सती के शरीर को अपने कंधे पर रखा और चारों दिशाओं में आकाश मार्ग से जाने लगे। वह सती के वियोग में बेसुध हो चुके थे। उनके इस रूप को देखकर देवता भी कांपने लगे, सिर्फ इतना ही नहीं पृथ्वी भी ठहर गई। शिव-सती का यह प्रेम देखकर देवता चकित थे।
इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के अंग काट दिये। इसके बाद भगवान शिव को कुछ होश आया। उनका क्रोध जब शांत हुआ तो पृथ्वी ने गति पकड़ी। देवता भी शांत हुए। लेकिन शिव का सती के प्रति प्रेम देखकर और उनके रूद्र रूप को देखकर हर किसी को अचंभा हुआ।
हिंदू धर्म की कन्याएं आज भी भगवान शिव जैसा पति चाहती है। इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वह सोमवार को शिवजी की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं।
शिव-सती की प्रेम कथा के विषय में यह कुछ महत्वपूर्ण तथ्य थे।
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