भारतीय संस्कृति में तिलक या टीका लगाने को बहुत महत्व दिया जाता है। हमारी परम्पराएँ अपने पीछे बहुत गहरे वैज्ञानिक रहस्य छिपाए हुए है। शास्त्रों में तिलक को कितना महत्व दिया गया है इसका भान आपको इस बात से हो जाएगा की शास्त्रानुसार तिलक विहीन व्यक्ति का मुख तक नहीं देखना चाहिए, पूजा यदि तिलक के बिना हो तो निरर्थक मानी जाती है। आज हम इस लेख में तिलक के प्रकार के बारे में बताएंगे।
शब्द तिलक का अर्थ मात्र माथे पर लगाए वाला चिन्ह मात्र नहीं, मनुष्य की आत्मिक स्थिति से भी इसका सम्बन्ध है। तिलक माथे पर दोनो नेत्रों के बीच लगाया जाता है, इसका बहुत गहरा अर्थ है और हम बिना सोचे-समझे बचपन से ऐसा करते आ रहे है। हमारे सम्पूर्ण शरीर के सभी भाग महत्वपूर्ण है किंतु यदि किसी भाग को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाए तो वह मस्तिष्क है।
मस्तिष्क में हमारी चेतना वास करती है। यही आत्मा का निवास स्थान है जहां हमारी सम्पूर्ण शक्ति केंद्रित रहती है। भृकुटी के मध्य में आज्ञाचक्र पर टीका किया जाता है। तिलक लगाने से आत्मिक भान में वृद्धि होती है, यह मनुष्य के अवचेतन मन पर प्रभाव करता है।
इस लगाने को यदि वर्गीकृत करना है तो यह दो आधारों पर किया जा सकता है। जिसमें पहला है किस वस्तु से टीका किया जा रहा है और दूसरा है तिलक लगाने वाला किस मनोभाव से तिलक कर रहा है।
अपने माथे पर इसे लगाने वाले व्यक्ति की मनोदशा का भी गहरा प्रभाव तिलकधारी पर पड़ता है। इसलिए तिलक लगाते समय किस सामग्री का टीका किया जा रहा है और किस उँगली से तिलक कर रहे है इसका ध्यान रखना तो आवश्यक है ही किंतु स्वयं की मनोभावों को भी नियंत्रित रखना अनिवार्य है।
तिलक लगाते समय जो भी संकल्प किए जाते है वह तिलकधारी के लिए अत्यधिक प्रभावशाली होते है। आशा है भविष्य में आप तिलक लगाते समय इन सब बातों का स्मरण रखेंगे।
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