करवा चौथ एक विवाहित दम्पति के बीच प्यार और साथ की भावना का उत्सव मानाने का त्यौहार है। विवाह के उपरांत या विहाह के पहले भी जो भी स्त्री अपने पति या होने वाले पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करना चाहती हैं, वह यह व्रत रखती हैं। हिंदू कैलेंडर पंचांग के अनुसार, हर महीने कई व्रत होते हैं। इनमे से एक है कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाने वाला त्यौहार करवा चौथ। तथा, करवा चौथ 2019 गुरुवार, 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा और चंद्रमा के उदय का समय रात में लगभग 8:20 बजे है।
महिलाएं करवा चौथ के त्यौहार पर निर्जला व्रत रखती हैं। यथा, आइए जानते हैं कि इस दिन पूजा दिन किस प्रकार की जाती है।
सर्वप्रथम, जैसा की हम जानते हैं करवा चौथ व्रत के रीती-रिवाज़ प्रातः कल से पहले ही प्रारांभ होते हैं। परिणामस्वरूप, उस दिन सभी स्त्रियों को सूर्योदय के पहले ही जागना होता है।
जागने के बाद स्नान कर और अविलंब शुभ मुहूर्त के पहले सरगी के रूप में जो भोजन आपको आपकी सास द्वारा प्राप्त हो उसे ग्रहण कर लें। नियमनुसार आप व्रत के दौरान जल नहीं ग्रहण कर सकती। यथा, एक पर्याप्त मात्रा में व्रत प्रारम्भ होने के पहले ही पानी पी लें।
२०१९ में करवा चौथ का व्रत जितना लाभदायक है उतना ही कठिन भी। इस साल व्रत की अवधि १३ से १४ घंटे की होगी। शाम को एक मिट्टी की वेदी बनाकर वहीं देवताओं का आह्वान किया जाता है और करवा के रूप में उसकी पूजा होती है। साथ ही, थाली में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर रखें और घी का दीपक जलाएं।
प्रति वर्ष शुभ मुहूर्त को ध्यान रखते हुए पूजा चांद निकलने से एक घंटे पूर्व शुरू कर देनी चाहिए। साथ ही, पूजा के दौरान करवा चौथ कथा अवश्य सुनें। तत्पश्चात, चांद निकलने के बाद चांद को छलनी से देखते हुए अर्घ्य देें। अंत में पति के हाथ से पानी पीकर व्रत का पारण करें।
इस वर्ष, इस अवसर पर विशेष अनेक आकर्षण हैं। पहला, इस साल करवा चौथ का त्यौहार 70 साल बाद गुरुवार को पड़ रहा है जो इसे अत्यंत शुभ बनाता है। इसके अलावा, इस साल करवा चौथ रोहिणी नक्षत्र में पड़ रहा है। रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा योग के साथ मिलकर मार्कंडेय और सत्यभोग योग बनाते हैं।
हिंदू ज्योतिष में, यह मंगल योग है जो मंगलकारी है। खासकर नवविवाहितों के लिए, इस साल करवा चौथ खुशी और आनंद की लहर लाएगा।
यह प्राचीन हिन्दू युग की एक कहानी है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन थी करवा । सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को सारे भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत चिंतित थी। वह खाना खाने बैठे और साथ ही अपनी बहन को खाना खाने का अनुरोध करने लगे। इस पर, उसने बताया कि आज उसका करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखने के बाद उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। परन्तु, चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल है।
सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की स्थिति देखी नहीं जा रही थी और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। इससे, दूर से देखने पर वह ऐसा लगता कि जैसे चतुर्थी का चांद आकाश में उदित हो गया हो।
इसके बाद वह आ कर अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है और वह चाँद को अर्घ्य दे कर भोजन कर सकती हो। बहन खुशी से सीढ़ियों पर से चांद को देखती है। तत्पश्चात अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। परन्तु, जैसे ही वह पहला निवाला मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। इसके बाद वह दूसरा निवाला डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा निवला मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसे उसके पति की मृत्यु की सूचना मिलती है।
इसके उपरांत, उसकी भाभी उसे सत्य से अवगत कराती हैं। वह समझ जाती हैं कि करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे रुष्ट हो गए हैं। सत्य जानने के बाद करवा निश्चित करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। तत्पश्चात, वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
पुनः एक साल के पश्चात करवा चौथ का दिन आता है। त्यौहार पर उसकी सभी भाभियां उपवास रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है। परन्तु, हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह कर चली जाती है।
जब छठी भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि सबसे छोटे भाई के कारण उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही समर्थता है कि वह तुम्हारे पति को पुनः जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उससे आग्रह करना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे मत छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। तब करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह बात घूमने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है।
इस तरह ईश्वर कि कृपा और करवा की छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग पुनः प्राप्त हो जाता है।
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