कोई भी ग्रह किसी भी राशि या स्थान पर होने से, वह ग्रह स्वतंत्र रूप से शुभ या अशुभ फल प्रदान नही करता| ग्रह कुंडली में कभी भी सोते नहीं है| कुंडली के सभी ग्रह हमेशा कार्यरत रहते हैं|आपने हमारी केमद्रुम योग शुभ या अशुभ ? यह पोस्ट तो देखी ही होगी|उसमे हमने जाना था की कैसे केमद्रुम योग की वजह से जातक को हमेशा के लिये गरिबी में जीवन बिताना पडता है|बहुत सारे परेशानियों का सामना करना पडता हैं और जिसकी वजह से मनुष्य को जिंदगी भर आर्थिक संकटों से जुझना पडता है। परंतु ज्योतिष शास्त्र में एक ऐसा भी योग हैं|जो गजकेसरी योग के नाम से जाना जाता है|जो यश, सम्मान, अर्थ और प्रशासनिक कुशलता प्रदान करता है|यह बहुत ही शुभ फलदायक योग है तथा व्यापार में उन्नति और सफलता दायक है|
ज्योतिषशास्त्र में जिस तरह से तिथि, वार, ग्रह,नक्षत्र आदि के संयोगों से कई प्रकार के योगों निर्मित होते हैं|उसी प्रकार इन्हीं की स्थिती के चलते कई सुुयोगों का भी निर्माण होता है|हमारे ऋषि मुनियों ने जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति, युति और दृष्टि के आधार पर अनेक ज्योतिष योगों की व्याख्या की है,उन्ही योगों में से एक गजकेसरी योग के बारे में जानिए|
गजकेसरी योग को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। प्रमुख योगों में जहां हम राजयोग, हंस योग, भद्रयोग, मालवीय योग, बुधादित्य योग आदि को जानते है| उसी तरह गजकेसरी योग को भी बहुत महत्त्वपूर्ण जाता है|
कई बार चंद्रमा और गुरु की युति भी गजकेसरी योग बनाती है| गुरू व चन्द्रमा बैठकर गजकेसरी योग का निर्माण करते है, उस भाव से सम्बन्धित शुभ फलों की प्राप्ति भी होती है|गजकेसरी योग जब चुतर्थ व दशम भाव में बनता है |तो व्यक्ति अपने व्यवसाय व करियर में ऊॅचे मुकाम हासिल करता है| इसका फल भाव, राशि, नक्षत्र और कुण्डली में बृहस्पति की स्थान पर आधारित होता है|
विवाह के समय कन्या के लिए इस ग्रह का विशेष रुप से अध्ययन करना चाहिए। कन्या की राशि में चतुर्थ,अष्टम और द्वादश गुरु बृहस्पति विवाह के लिए अमंगलकारी है|अन्य ग्रहों के विपरीत बृहस्पति स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उत्तम फल देता है|
बृहस्पति पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी, पुरुष जाति ग्रह है। लग्न में बृहस्पति यदि चंद्र के साथ हो तो गजकेसरी योग बनता है जो अत्यंत शुभ फल देने वाला होता है|यदि बृहस्पति अरिष्ट हो चर्बी कफ पर प्रभाव डालता है|लेकिन ये 6 ,8, व 12 वे भाव में फलदायक नही होता है|ये कई लोगों का अनुभव और पूर्णतः सत्य है भले ही कुंडली भली क्यो न हो|
बृहस्पति चंद्रमा से केंद्र भावमे अर्थात् प्रथम,चतुर्थ,सप्तम,दशम भावमे स्थित हो,शुभ ग्रहोसे दृष्ट हो तो गजकेसरी योग का निर्माण होगा बृहस्पति-चंद्रमा दोनो अस्त ना हो,ना ही नीच या शत्रु राशिमे हो न व्यय भाव मे हो,वरना योग बनने के बावजूद भी अच्छे फल देने मे सक्षम नही होता|
चतुर्थ भाव की बात करें तो यह भाव सुख का मन जाता है और इस भाव का स्वामी चन्द्र और कारक वृहस्पति को माना जाता है|ये दोनों गृह जब आपस में मिलते हैं| तो कुंडली में एक प्रकार का गजकेसरी योग बना देते हैं|
पंचम भाव मे गजकेसरी योग है यह बुद्धि के बलपर धन कमाने का संकेत करता है जातक स्कूल टीचर,वैज्ञानिक,इंजीनियर, नए अविष्कार करनेवाली नोकरी,लेखक भी हो सकते है इनको पूर्ण संतानका सुख मिलता है संतानके उच्च पदपर आसीन होने के योग भी बनते है|
भगवान श्री राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में कर्क लग्न में हुआ था। गुरु और चन्द्र लग्न में स्थित थे और शनि, मंगल, गुरु, शुक्र तथा सूर्य अपनी उच्च राशि में स्थित थे। गुरु लग्न में चन्द्र के साथ स्थित थे|शनि चतुर्थ भाव में अपनी उच्च राशि तुला में स्थित था और लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था। मंगल भी सप्तम में अपनी उच्च राशि मकर में स्थित लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था। कुंडली में गुरु एवं चन्द्र को शनि एवं मंगल अपनी अपनी उच्च राशि में स्थित होकर देख रहे थे | जिसकी वजह से श्री राम भगवान के कुंडली में भी गजकेसरी योग बना था|
देवी दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन देवी के इस रूप की आराधना करने से साधक को गजकेसरी योग का लाभ प्राप्त होता है। मां चंद्रघंटा की विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में उन्नति, धन, स्वर्ण, ज्ञान व शिक्षा की प्राप्ति होती है|
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