दीन दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।
ॐ जय बृहस्पति देवा।
हमारे सौरमंडल में मौजूद अनेकों ग्रह, तारे, नक्षत्र पृथ्वी पर जीवन बसर कर रहे लोगों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते रहे है। ठीक उसी प्रकार से सूर्य, मंगल, चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र, शानि, राहू, केतु आदि सभी ग्रह एक निश्चित अवधि में मनुष्यों की 12 राशियों में से घूमते हुए आते है, और उस दौरान वह मनुष्यों के जन्मकाल और लग्न कुंडली के हिसाब से उनपर अच्छा और बुरा प्रभाव डालते है।
नवग्रहों में सबसे भीमकाय होने के कारण इस ग्रह को बृहस्पति और गुरु के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति मूल रूप से धनु और मीन राशि के स्वामी है। साथ ही गुरु कर्क राशि में उच्च और मकर राशि में नीच माना गया है। जहां सूर्य, चंद्रमा और मंगल बृहस्पति के लिए मित्र ग्रह है तो वहीं बुध शत्रु और शानि तटस्थ है। साथ ही गुरु को समस्त ग्रहों में सबसे अधिक बलशाली और शुभ माना जाता है। बृहस्पति को सूर्य का चक्कर लगाने में पृथ्वी की भांति ही समय लगता है और इसका प्रभाव मनुष्य की कुंडली के विभिन्न भावों में अच्छा या बुरा हो सकता है।
जिस व्यक्ति की कुंडली के पहले भाव में गुरु होता है वह जातक स्वस्थ और निर्भीक होगा। साथ ही वह अपने स्वयं के प्रयासों से हर आठवें साल में सफलता पाएगा। वहीं यदि बृहस्पति पहले भाव में हो और शनि नौवें भाव में हो तो जातक को स्वाथ्य से संबंधित परेशानियां भी हो सकती हैं। इसके अलावा यदि बृहस्पति पहले भाव में हो और राहू आठवें भाव में, तो जातक के पिता की मौत दिल का दौरे पड़ने या अस्थमा के कारण होती है | वहीं जिस जातक के लग्न में बृहस्पति मौजूद होता है, ऐसा व्यक्ति धनवान और राजदरबार में मान-सम्मान पाने वाला होता है।
जिस मनुष्य की कुंडली के द्वितीय भाव में बृहस्पति होता है, उसका रूझान काव्य की ओर अधिक होता है। जातक को धन कमाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ जाता है। साथ ही परिवार में संतुलन बनाए रखने के लिए उसे काफी प्रयास करने पड़ते हैं। ऐसा जातक शत्रुरहित होता है। साथ ही वह दीर्घायु और होशियार होता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के तीसरे भाव में गुरु हो तो वह जातक को नीच स्वभाव का बना देता है। लेकिन वहीं तीसरे भाव का बृहस्पति जातक को समझदार और अमीर बनाता है। साथ ही नवम भाव में स्थित शनि जातक को दीर्घायु बनाता है। इसके अलावा जिस जातक के तृतीय भाव में बृहस्पति होता है, वह मित्रों के प्रति कृतघ्नपूर्ण होता है। वहीं यदि शनि दूसरे भाव में हो तो जातक बहुत चतुर और चालाक होता है। इतना ही नहीं यदि बृहस्पति तीसरे भाव में किसी पापी ग्रह से पीड़ित है तो जातक अपने किसी करीबी के कारण कर्जदार हो जाएगा।
किसी व्यक्ति की कुंडली के चौथे भाव में गुरु हो तो व्यक्ति लेखक, प्रवासी, योगी, आस्तिक, कामी, पर्यटनशील तथा विदेश प्रिय आदि होता है। साथ ही वह देवताओं और ब्राह्मणों में आस्था रखता है। बृहस्पति इस घर में उच्च स्थान पर होता है। इसलिए बृहस्पति चतुर्थ भाव में बहुत ही अच्छे परिणाम देता है। वहीं जैसे-जैसे जातक की उम्र बढ़ती जाएगी उसके धन में भी वृद्धि होगी।
जातक की कुंडली में यदि गुरु पांचवें भाव में हो तो जातक विलासी तथा आराम प्रिय होता है। साथ ही जिस जातक के पंचम स्थान में बृहस्पति होता है, वह बुद्धिमान, गुणवान, तर्कशील, श्रेष्ठ होता है। हालांकि पंचम भाव में गुरु के कारण संतान सुख कम प्राप्त होता है। वहीं कुंडली में पांचवां घर सूर्य का अपना घर होता है, जिस वजह से सूर्य, केतू और बृहस्पति मिश्रित परिणाम देते हैं। लेकिन यदि बुध, शुक्र और राहू दूसरे, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में हो तो सूर्य, केतू और बृहस्पति खराब परिणाम देते है।
यदि जातक की कुंडली के छठे भाव में गुरु हो तो ऐसा जातक सदा रोगी बना रहता है। परंतु वह न्यायिक मुकदमों आदि में जीत हासिल करता है और सदा अपने शत्रुओं को मुंह के बल गिराने की क्षमता रखता है। ऐसे जातक की संगीत विधा में भी रुचि होती है। वहीं यदि गुरु शनि के घर राहु के साथ स्थित हो तो मनुष्य पर रोगों का प्रकोप बना रहता है। पुरुष राशि में गुरु होने पर जुआ, शराब और वेश्या से प्रेम आदि होता है। वहीं यदि बृहस्पति शुभ होगा तो जातक पवित्र स्वभाव का होगा।
अगर किसी जातक की कुंडली के सातवें भाव में गुरु हो तो जातक की बुद्धि श्रेष्ठ होती है। साथ ही जिस जातक के जन्म लग्न से सप्तम भाव में बृहस्पति हो, तो ऐसा जातक, बुद्धिमान, सर्वगुण संपन्न, अधिक स्त्रियों में आसक्त रहने वाला, संतोषी, धैर्यवान, विनम्र और अपने पिता से अधिक और उच्च पद को प्राप्त करने वाला होता है। जातक का भाग्योदय शादी के बाद होगा और जातक धार्मिक कार्यों में शामिल होगा। वहीं यदि सूर्य पहले भाव में हो तो जातक एक अच्छा ज्योतिषी और आराम पसंद होगा। लेकिन यदि बृहस्पति सातवें भाव में नीच का हो और शनि नौवें भाव में हो तो जातक चोर भी हो सकता है।
जातक के नौवें भाव में यदि गुरु हो तो जातक एक सुंदर मकान का निर्माण करवाता है। जिस जातक के नवम स्थान में बृहस्पति हो, उसपर राजकृपा बनी रहती है. साथ ही जहां भी वह नौकरी करेगा, स्वामी की कृपा दृष्टि उसपर बनी रहेगी। साथ ही वह विद्वान, पुत्रवान, सर्वशास्त्रज्ञ, राजमंत्री एवं विद्वानों का आदर करने वाला होगा। नौवां घर बृहस्पति से विशेष रूप से प्रभावित होता है। इसलिए इस भाव वाला जातक प्रसिद्ध और एक अमीर परिवार में पैदा होगा। वहीं यदि बृहस्पति का शत्रु ग्रह पहले, पांचवें या चौथे भाव में हो तो बृहस्पति बुरे परिणाम भी दे सकता है।
जिस जातक के दसवें भाव में बृहस्पति हो, उसका प्रेम अपने पिता-दादा से कहीं अधिक होता है। वह धनी, यशस्वी, उत्तम आचरण वाला और राजा का प्रिय होता है। वहीं यदि दशम में रवि हो, तो पिता से और चंद्र हो, तो माता से धन की प्राप्ति होती है। साथ ही यदि गुरु दसवें भाव में हो तो व्यक्ति चित्रकला में निपुण होता है। वहीं यदि जातक चालाक और धूर्त होगा तभी बृहस्पति के अच्छे परिणाम का फल पाएगा।
कुंडली के ग्यारहवें भाव में गुरु हो तो जातक ऐश्वर्यवान, पिता के धन को बढ़ाने वाला, व्यापार में दक्षता लिए होता है। हालांकि जातक की पत्नी दुखी रहेगी। इसी तरह, बहनें, बेटियां और बुआ भी दुखी रहेंगी। बुध सही स्थिति में तो भी जातक कर्जदार होता है। जातक तभी आराम से रह पाएगा जब वह पिता, भाइयों, बहनों और मां के साथ एक संयुक्त परिवार में रहे। जिस जातक के एकादश भाव में बृहस्पति हो, वह सोना-चांदी आदि अमूल्य पदार्थों का स्वामी होता है। परंतु कारक भावों के कारण इस भाव के गुरु के फल सामान्य ही होते है।
जातक की कुंडली के बारहवें भाव में गुरु हो तो ऐसा जातक आलसी, कम खर्च करने वाला, दुष्ट स्वभाव वाला होता है। जातक लोभी और लालची भी होता है। जातक अमीर और शक्तिशाली होगा। वहीं जिस जातक के द्वादश भाव में बृहस्पति हो, तो उसका द्रव्य अच्छे कार्यों में व्यय होने के पश्चात् भी उसे यश प्राप्त नहीं होता है। वह रोगी होता है और अपने कर्मों के द्वारा शत्रु अधिक पैदा कर लेता है। उसके अनुसार यज्ञ आदि कर्म व्यर्थ और निरर्थक हैं।
इस प्रकार यह अनुभव में आता है कि गुरु कितना ही शुभ ग्रह हो, लेकिन यदि अशुभ स्थिति में है, तो अशुभ फल भी प्राप्त होते है।
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