Marriage Prediction- Astrological Parameters of Multiple Marriages
आज के आधुनिक समाज में शादियां स्वर्ग में बनती हैं जैसी बातें पुरानी तानाशाही में गिनी जाने लगी हैं। हालाँकि हमारे देश में आज के नए समय में विवाह योग्य उम्र के लड़कों और लड़कियों के माता-पिता को अपने बेटे और बेटियों के लिए योग्य जीवनसाथी ढूंढने के लिए काफी मशक्कत करते हैं। चाहे एक सही व्यक्तित्व ढूंढना हो या कुंडली मिलान, दोनों में ही लंबे समय तक तनाव और तनाव से गुजरना पड़ता है।
शादी तय करने के बीच धार्मिक-विचार को उचित सम्मान देते हुए प्रत्येक परिवार सलाह के लिए अनुभवी ज्योतिषियों से परामर्श करते हैं। वह ज्योतिषी को खुशहाल शादी सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करते हैं पर यह देखा जाता है कि दुल्हन के हाथों मेंहदी-शादी मेहँदी से पहले ही शादियाँ टूटी हुई या गलत होती हैं।
तत्पश्चात, पुनर्विवाह जैसे नतीजे सामने आते हैं। ऐसा कभी तलाक तो कभी पति या पत्नी की मृत्यु के कारण होता है। ऐसा क्यों होता है?
ज्योतिष पर शास्त्रीय पुस्तकों में बहु विवाह के कई सिद्धांत दिए गए हैं।
यदि 7वें स्वामी एक हानिकर ग्रह राशि और हानिकर ग्रह के साथ हो जबकि 7वां भाव या 7वां नवमांशा एक नपुंसक ग्रह के पास हो तो भी यह स्थिति उत्पन्न होती है।
बृहत् पाराशर होरा शास्त्र केअनुसार यदि 7 वें स्वामी कमज़ोर हो तो एक व्यक्ति की दो पत्नियां अथवा बहु विवाह होगा।
मंगल और शुक्र ग्रह यदि 7वें भाव में हैं या यदि शनि ग्रह12वें भाव में है, जबकि लग्न स्वामी 8वें भाव में हैं, तो जातक की 3 पत्नियां होंगी।
यदि शुक्र ग्रह द्विस्वभाव राशि में हैं और उस राशि का स्वामी सप्तम भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो भी यह बहु विवाह का कारन होता है।
सर्वार्थ चिंतामणि प्राचीन भारत की महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक ज्योतिष शास्त्र की अभिप्रायपूर्ण पुस्तकों में से एक है। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार बहु विवाह के निम्न लिखित कारण हैं-
यदि 7वाँ भगवान अतिशयोक्ति, प्रतिशोध, आदि में है, तो वे एक व्यक्ति की कई पत्नियाँ होती हैं।
किसी व्यक्ति के जीवन में दो शादियां का योग तब होता है जब लग्न स्वामी 8वें भाव में स्थित है, 7वें भाव में एक हानिकारक ग्रह है और दूसरा स्वामी भी एक हानिकारक ग्रह के साथ है।
यदि 7वें स्वामी एक विरोधी राशि में हैं या दुर्बल राशि में एक लाभकारी ग्रह के साथ और 7 वें ग्रह एक हानिकारक ग्रह तो जातक की दो शादियां होती हैं।
अगर 7वें भाव और २ भाव में हानिकारक ग्रह हैं और उनके स्वामी कमज़ोर हैं तो ऐसे जातक उनकी पहली पत्नी को किसी भी स्थिति में खो सकते हैं और यह उन्हें दूसरी शादी की ओरे अग्रसर करता है।
यदि 7वें स्वामी और 11वें स्वामी एक साथ स्थित हैं या वे एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं या वह त्रिकोण में तो जातक की कई पत्नियां होती हैं।
किसी जातक की कुंडली में यदि 9वें स्वामी 7वें भाव में हैं और 7वें स्वामी 4वें भाव या 7वें भाव में हैं और 11वें स्वामी एक-दूसरे के केंद्र में हैं तो ऐसे व्यक्ति की कई पत्नियां होती हैं।
यदि द्वितीय और 12 वें स्वामी ३ भाव में और उन पर बृहस्पति का प्रभाव है तो जातक की कई पत्नियां होती हैं।
अगर २ भाव और 7 वें भाव में हानिकारक ग्रह हैं और 7वें स्वामी पर किसी हानिकारक ग्रह का प्रभाव है तो जातक को पत्नियों की मृत्यु के कारण तीन बार शादी करनी पड़ती है।
किसी कुंडली में यदि 7 वें भाव और 8वें भाव में हानिकारक ग्रह हैं, और 12वें भाव में मंगल ग्रह है और 7वें स्वामी अपने स्वयं के भाव पर प्रभाव नहीं डाल रहे तो जातक अपनी पहली पत्नी को खो देते हैं और इससे उन्हें दूसरी शादी करनी पड़ती हैं।
यदि जातक की कुंडली में हानिकारक ग्रह लग्न में हैं और २ भाव या 7वां भाव और 7वें स्वामी दुर्बल अथवा नीच हैं तो वह दूसरी शादी करते हैं।