ज्योतिष विद्या के अनुसार सभी भारतीय प्रथाओं में विवाह एक महत्वपूर्ण प्रथा है, जिसमें में युगल अपने नए जीवन की शुरुआत करते हैं। हिन्दू धर्म में विवाह को प्रवित्र अनुष्ठान के साथ-साथ देवीय अनुष्ठान भी माना जाता है। भारतीय शास्त्रों के अनुसार विवाह के समय वर को विष्णु रूप और वधु को माता लक्ष्मी के रूप में देखा जाता है। इस अनुष्ठान के पवित्रता को देखते हुए ही हमारे ऋषि मुनियों ने विवाह हेतु नियमावली निर्मित की थी जिनमें शुभ-अशुभ समय, मुहूर्त और कुंडली जसे नियम वर्णित हैं। वह इसलिए क्योंकि शुभ नक्षत्र में विवाह सम्पन्न होने से विवाहित जीवन में नकारात्मकता और अशुभ शक्तियाँ दूर रहती हैं। विवाह के लिए शुभ नक्षत्र जानना हिन्दू संस्कृति में विवाह प्रक्रिया एक अभिन्न हिस्सा है। इसके साथ इन सभी के पीछे वैज्ञानिक तर्क भी छुपे हैं।
ज्योतिष शास्त्र को ध्यान में रखें तो किसी भी प्रकार के मंगल कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के लिए सही नक्षत्र का होना अति-आवश्यक है। शादी के लिए खोजी जा रही तिथि के लिए भी शुभ नक्षत्रों का होना अनिवार्य होता है। ज्योतिष विज्ञान में कुल 27 नक्षत्रों को वर्णित किया गया है, वर्णित किए गए नक्षत्रों में कुछ विवाह के लिए उत्तम माने गये हैं जैसे – अनुराधा, मूल, माघ, रोहिणी, उत्तरा भाद्रपद, उत्तरा फाल्गुनी, स्वाति, मृगशिरा, उत्तरा आषाढ़, स्वाति, हस्त और रेवती इन नक्षत्रों को शुभ माना गया है। वहीं अन्य सभी नक्षत्रों को विवाह के लिए अशुभ माना गया है।
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ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुभ विवाह मुहूर्त में विवाह करने से वर – वधु का जीवन सकारात्मक रहता है और उनके बीच बेहतर तालमेल व प्रेम बना रहता है। इसलिए हिन्दू शास्त्रों में और हमारे बड़े बुजुर्गों द्वारा कहा गया है विवाह के लिए शुभ नक्षत्र के साथ शुभ महीने का होना भी आवश्यक है। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार वर्ष के बारह महीने में से केवल छः महीने ही विवाह के लिए शुभ व लाभकारी माने गए हैं। वह महीने हैं ज्येष्ठ, आषाढ़, माह, फाल्गुन, वैशाख और मार्गशीर्ष जिन्हे विवाह के लिए उपयुक्त माना गया है। अन्य सभी महीने को विवाह के लिए उतना लाभकारी नहीं माना गया है इसलिए उसमें विवाह जैसे मंगल कार्य करना उचित नहीं है।
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आपको अब तक विवाह की पवित्रता के विषय में ज्ञात हो गया होगा। इस अनुष्ठान को इसलिए भी पवित्र माना जाता है क्योंकि इस अनुष्ठान में आशीर्वाद हेतु देवताओं का आह्वाहन किया जाता है। इन्हीं के आशीर्वाद से विवाह बंधन को सफल माना जाता है। इसलिए देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपयुक्त नक्षत्र और महीने के अध्ययन बाद ही विवाह के शुभ मुहूर्त को निर्धारित किया जाता है। इस बीच साल में ऐसे भी कुछ महीने वर्णित हैं, जो इस कार्य में विघ्न उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए इन महीनों के मध्य में विवाह जैसा मंगल कार्य वर्जित होता है। आपको बता दें कि देवशयनी एकादशी के बाद से देवउठनी एकादशी तक विवाह करना पूरी तरह वर्जित रहता है। इसके साथ गुरु और शुक्र तारा अस्त होने के समय भी विवाह को अनुपयोगी माना गया है।
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देवताओं के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नक्षत्र व महीने के साथ त्रिबल मिलान की भी आवश्यकता होती है। इसीलिए विवाह के विषय में सभी तिथि और शुभ नक्षत्रों का पता लगाते समय त्रिबल मिलान का पता लगाना अत्यंत आवश्यक है। त्रिबल अर्थात तीन बल जिनमें सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का बल देखा जाता है। त्रिबल मिलान में लड़के के लिए सूर्य का बल, कन्या के लिए बृहस्पति का बल और वर – वधु दोनों के लिए चंद्रमा के बल का ज्योतिषियों द्वारा अध्ययन किया जाता है। आपको यह भी बता दें कि ग्रहों को परिजनों के रूप में भी देखा जाता है। जैसे – सूर्य को वर, शुक्र को कन्या, मंगल को भाई, चंद्रमा को मां, बृहस्पति को गुरु और राहु को ससुराल पक्ष के संदर्भ में देखा जाता है। इसलिए त्रिबल मिलान का अध्ययन विवाह से पहले आवश्यक माना जाता है।
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