हिंदू धर्म में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है, जो दो व्यक्तियों के बीच एक स्थायी संबंध स्थापित करता है। हिंदू धर्म में विवाह एक पवित्र बंधन होता है, जो दो व्यक्तियों को जीवन भर के लिए एक साथ जोड़ता है। विवाह न केवल दो लोगों को बल्कि दो परिवारों को एक करता है, इसलिए शादी में कई पवित्र और महत्वपूर्ण रस्में की जाती हैं, जो वर-वधू के आने वाले जीवन के लिए काफी शुभ मानी जाती हैं। उन्हीं में से एक रस्म विवाह में जयमाला पहनाना है, जो वर-वधू को और वधू-वर को पहनाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि विवाह में यह रस्म या वरमाला क्यों पहनाई जाती है? अगर नहीं, तो आपको यह लेख पूरा पढ़ना चाहिए ताकि आप जयमाला के बारे में यह जानकारी प्राप्त कर सकें।
धार्मिक दृष्टिकोण से विवाह एक बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य है। हिंदू धर्म के अनुसार, विवाह एक सांसारिक संस्कार है, जिससे दो व्यक्ति एक साथ जीवनभर के लिए जुड़ जाते हैं। विवाह को एक सामूहिक कर्म माना जाता है, जिसे दोनों पक्षों द्वारा सहमति से निर्धारित किया जाता है।
विवाह दो आत्माओं के एकत्व को संबोधित करता है, जो अनंत काल तक एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करते हैं। विवाह एक प्रतिज्ञा है, जो दो व्यक्तियों को एक दूसरे के साथ वफादारी, समझदारी, सहयोग और संवेदनशीलता के साथ जीवनभर के लिए बांधती है।
विवाह के धार्मिक महत्व के साथ-साथ, यह एक सामाजिक और आर्थिक प्रक्रिया भी है। विवाह से दो परिवारों के संबंध बन जाते हैं और समाज के अन्य लोगों के लिए यह दो आत्माओं के संगम का एक महत्वपूर्ण अवसर होता हैं।
यह भी पढ़ें: इस तरह रखें ज्येष्ठ अमावस्या 2023 पर व्रत, मिलेगा पुण्य
हिंदू धर्म में विवाह के समय कई रस्में की जाती है उनमें से एक जयमाला की रस्म भी होती है, जिसमें वर और वधू एक-दूसरे को फूलों से बनी माला पहनाते है। परंपरा के अनुसार यह माला काफी सौभाग्यशाली मानी जाती हैं। यही कारण है कि बड़ी-बड़ी हस्तियों से लेकर आम आदमी तक सभी अपने विवाह में वरमाला पहनते हैं।
धार्मिक परंपरा के अनुसार विवाह में वधू का वरमाला पहनना सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शादी में वर-वधू जयमाला के माध्यम से एक-दूसरे को नए जीवन की शुभकामना देते है और हमेशा साथ रहने का वादा करते हैं। यहीं कारण है कि भारतीय विवाह में वरमाला काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, क्योंकि यह फूल उत्साह और सुंदरता का प्रतीक होते हैं।
दरअसल, वरमाला में एक तरह की भावना छिपी होती है, जो वर-वधू को एक-दूसरे के दिल से जोड़ती हैं। वरमाला में जैसे धागा फूलों को बांधे रखता है, ठीक उसी प्रकार जयमाला रस्म के बाद वर-वधू भी एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। साथ ही जयमाला वर और वधू का साथ निभाने का प्रतीक माना जाता है।
वरमाला के माध्यम से वर-वधू एक दूसरे के बुरे और अच्छे वक्त को साझा तथा जीवन के उतार चढ़ाव को साथ निभाने की कसम खाते हैं। यह भी माना जाता है कि विवाह में जयमाला वर और वधू को विवाह स्वीकारने का प्रतीक होता है, इसलिए वरमाला का महत्व भारतीय विवाह में सबसे अधिक माना जाता है।
प्राचीन काल में राजा अपनी कुँवारी कन्या का विवाह करने के लिए स्वयंवर किया करते थे और जो भी राजा या राजकुमार उस स्वयंवर में सभी राजाओं में सबसे ज्यादा शक्तिशाली होता था या जिस राजा को कन्या पसंद करती थी, उसी के साथ राजा अपनी कन्या का विवाह करता था। जिसमें कन्या अपने पसंदीदा व्यक्ति को वरमाला पहनाकर अपने वर के रूप में स्वीकार कर लेती थी।
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती ने भी शादी के समय एक दूसरे को वरमाला पहनाई थी। साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी के विवाह में भी वरमाला की रस्म हुई थी। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी और उन्होंने भगवान विष्णु को माला पहनाकर अपने वर के रूप में स्वीकार किया था।
यह भी पढ़ें: जानें मेष राशि में राहु-बृहस्पति-बुध की युति 2023 प्रत्येक राशि को कैसे प्रभावित करेगी?
आजकल विवाह में अलग-अलग तरह की जयमाला का उपयोग किया जाता है। कुछ लोग गुलाब के फूलों की माला व कुछ लोग फूलों के बीच में पैसे, सोने आदि का उपयोग करके वरमाला बनवाते है और विवाह के समय पहनते है। लेकिन कहा जाता है कि तुलसी से बनी जयमाला जातक के वैवाहिक जीवन के लिए काफी शुभ मानी जाती हैं।
विवाह एक पवित्र संस्कार होता है और वरमाला इसमें और भी महत्वपूर्ण होती है, इसलिए इसे बनाने के लिए पवित्र चीजों जैसे तुलसी, चमेली के फूल, गुलाब के फूल, गेंदे के फूल आदि कई प्रकार के फूलों का इस्तेमाल वरमाला को बनाने के लिए किया जाता हैं।
यह भी पढ़ें: जानिए मेष राशि में बृहस्पति गोचर 2023 का सभी राशियों पर प्रभाव
जयमाला बनाने के लिए कई तरह के फूलों का उपयोग किया जाता है। इसमें लाल गुलाब, मोगरा, चमेली आदि के फूल शामिल होते है। दरअसल, माला बनाने के लिए खुशबूदार फूलों का उपयोग किया जाता है ताकि वर-वधू का जीवन भी खुशियों से भरा रहें। हिंदू धर्म में वरमाला बेहद ही पवित्र माला होती है, जो वर और वधू एक-दूसरे को पहनाते है और जीवन में हर सुख-दुख में साथ निभाने का वादा करते हैं।
यह भी पढ़ें- सूर्य ग्रहण 2023: साल 2023 के पहले सूर्य ग्रहण का सभी राशियों पर प्रभाव
हिंदू धर्मं मे विवाह सभी रीति-रिवाजों के साथ किया जाता है ताकि जातक को आगे आने वाले जीवन में परेशानी न हो। साथ ही विवाह में कई रस्में होती है, उनमें से कुछ वर के पक्ष की तरफ से तो कुछ वधू के पक्ष की तरफ से की जाती है।
वहीं वरमाला लाने की भी एक रस्म होती है, जो वर पक्ष के लोगों द्वारा की जाती है। विवाह में वरमाला दूल्हे की तरफ से लाई जाती है, जो वर और वधू एक-दूसरे के गले में डालते हैं।
यह भी पढ़ें: अक्षय तृतीय 2023 पर 6 योगों का संयोग, खरीदें सोना मिलेगा दोगुना लाभ
विवाह में जयमाला दूल्हा और दुल्हन के बीच के प्रेम का प्रतीक होती है। वरमाला विवाह में एक महत्वपूर्ण रस्म होती है, जिसमें दुल्हन अपने वर को फूलों से सजी माला पहनाती हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि वधू ने वर को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। साथ ही वरमाला प्यार, सम्मान और आदर का प्रतीक होती है। इसके अलावा, वरमाला दोनों परिवारों के बीच भी संबंध बनाती है, जो शादी के बाद एक दूसरे को समझने और समर्थन करने में मदद करते हैं।
यह भी पढ़ें: भूमि पूजन मुहूर्त 2023: गृह निर्माण शुरू करने की शुभ तिथियां
वरमाला विवाह में दोनों पक्षों के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसी कारण जब यह रस्म की जाती है, तो वधू सबसे पहले वर के गले में वरमाला डालती है, जो इस बात का प्रतीक है कि वधू ने वर को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। वधू के बाद वर जयमाला कन्या को पहनाता हैं। जो इस बात का प्रतीक है कि दोनों ने एक दूसरे को स्वीकार कर लिया हैं।
गंधर्व विवाह एक पुरानी हिंदू विवाह पद्धति है, जो धर्मशास्त्र में उल्लेखित है। इस विवाह पद्धति में दोनों पक्षों की अनुमति बिना किसी विधि-विधान के सीधे आपस में विवाह कर लिया जाता था। इस पद्धति में विवाहित जोड़े के बीच कोई विधि-विधान या रस्म नहीं होती हैं।
गंधर्व विवाह का अर्थ होता है ‘गन्धर्वों का विवाह’ यानि यह एक ऐसी विवाह पद्धति है, जिसमें दो लोग आपस में प्रेम करते हैं और एक दूसरे से विवाह करना चाहते हैं। इस पद्धति में दोनों पक्षों के बीच कोई शर्त नहीं होती है और वे अपनी इच्छा से आपस में विवाह कर लेते हैं। साथ ही एक प्राचीन कथा के अनुसार राजा दुष्यंत ने शकुन्तला नाम की एक कन्या के साथ गंधर्व विवाह किया था।
अधिक के लिए, हमसे Instagram पर जुड़ें। अपना साप्ताहिक राशिफल पढ़ें।
11,233
11,233
अनुकूलता जांचने के लिए अपनी और अपने साथी की राशि चुनें