कुंडलिनी शक्ती का रहस्य- कुंडलिनी शक्ती और षटचक्र

कुंडलिनी शक्ती का रहस्य- कुंडलिनी शक्ती और षटचक्र

कुंडलिनी शक्ती यह मनुष्य के देह में स्थित एक दिव्य शक्ती हैं। लेकीन, उसका अस्तित्व चिकित्सा या वैधशालाओं में सिद्ध नहीं हो सकता है। इसलिये मनुष्य की बुद्धि के परे कुंडलिनी शक्ती अभी तक एक रहस्य बना हुंआ हैं। परंतु, विविध प्राचीन योग ग्रंथों में कुंडलिनी शक्ती का बहुत सारे, विशेष ध्यान साधनाओं में वर्णन किया हुंआ मिलता है। यह शक्ती सोई हुई रहती है|इस शक्ती को जागृत करने हेतु बहुत सारे आचरणों का भी वर्णन किया गया है। यह शक्ती जागृत होने के बाद जो प्रभाव दिखता है, वह बुद्धि को न समझने जैसे रहता हैं, इसलिये यह शक्ती चमत्कार की तरह ही लगती है।

कुंडलिनी के बारे में महर्षी पतंजली की बाते

महर्षी पतंजली ने अष्टांग योग को बताते समय आखिर में तीन अंगों का विश्लेषण किया है। वह तीन अंग धारणा, ध्यान और समाधी हैं। इन तीनों अंगों को एकत्रित करके संयम कहकर बताया गया हैं। अलग अलग चक्रों पर समाधी स्थित करने से प्रज्ञलोक, नामक साधना की सिद्धता होती है। इस साधना से प्रज्ञ का प्रकाश फैलता हैं।और उससे ही विशेष ज्ञान की प्राप्ती होती हैं|

यह बताकर उन्होंने विविध प्रकारों से इसके परिणामों  का भी वर्णन किया हैं। उन सबको विभूति यानि सिद्धी कहा गया है। प्रज्ञ जागृती और कुंडलिनी शक्ती में बहुत ही समानता हैं। क्यों की दोनों ही परिणाम स्वरूप सिद्धी या फिर चमत्कार ही प्रदान करते हैं|प्रज्ञ का मतलब हे प्रकर्षेन ज्ञानम , यानि बुद्धि के भी उस पार का ज्ञान हैं। हमारी बुद्धि का ज्ञान पंचेंद्रियों के ज्ञान के आधार पर ही टिका रहता हैं। परंतु, प्रज्ञा यह सिद्धि ऐसी हैं जो इंद्रियों के बिना प्राप्त कीये हुंए ज्ञान के आधार पर स्थित रहती है।

कुंडलिनी शक्ती और षटचक्र

कुंडलिनी शक्ती के  संदर्भ में षटचक्रों का बडा महत्व हैं। क्योंकि इन षटचक्रों का मनुष्य के शरीर में प्रत्यक्ष अस्तित्व है। इन हर एक चक्र के ठिकाण पर मज्जातंतू दृष्यतः दिखाई पडते है।‌ यह चक्र और उनके स्थान हमारे शरीर के मज्जारज्जुओं के मज्जातंतूओं से  संबंधित रहते हैं। इन चक्रों का क्रम नीचे से उपर् की तरफ बताया गया हैं। इन सभी चक्रों को कमल के फूलों की उपमा दी गई है।

कौन-कौन से हैं वह चक्र

मूलाधार चक्र :

इस चक्र का स्थान पुरुषों में गुद्द्वार और जननेंद्रिय के मध्य पर स्थित रहता हैं। महिलाओं में यह गर्भाशय के मुख के पास स्थित रहता है। इसे चार पंखुडियां रहती हैं, वह भडकिले लाल रंग का होता है।

स्वाधिष्ठान चक्र :

यह चक्र पीठ के पीछे के हिस्से में नीचे के स्थान पर रहता है। इसे छह पंखुडिया रहती हैं, उसका रंग सिंदुरी रहता है। इस चक्र के देवता ब्रह्माजी हैं| इस चक्र के द्वारा बडे फेफडें और मलाशय का नियंत्रण किया जाता है|

मणिपूर चक्र :

यह चक्र नाभि से सरल रेखा में पीठ के पिछले स्थान में परंतु मज्जारज्जू के बाहर स्थित रहता हैं। इसमें दस पंखुडिया रहती हैं। उसका रंग पिला रहता है। इस चक्र के स्वामी भगवान विष्णू हैं। इस चक्र के द्वारा पंचेंद्रिय, मुत्रपिंडे, टेस्टिज, ओव्हरिज इन सभी अवयवों का नियंत्रण किया जाता है।

अनाहत चक्र :

यह चक्र हृदय के पिछले हिस्से में पीठ के अंदर और मज्जारज्जू के बाहर रहता है। इसे बारह पंखुडिया होती हैं। उसका रंग नीला रहता है। इस चक्र के स्वामी भगवान शिव शंकर हैं| इस के द्वारा हृदय और लंंग्ज पर नियंत्रण किया जाता है।

विशुद्धी चक्र :

यह चक्र गर्दन के मध्य भाग पर स्थित रहता है। यह भी पीठ व मज्जारज्जू के बाहर स्थित रहता है। इसे सोलह पंखुडिया रहती हैं। इसका जामुनी रंग रहता है। इस चक्र के देवता जीवात्मा हैं। इस के द्वारा स्वरयंत्र और थायरॉइड, हृदय और लंंग्ज पर नियंत्रण किया जाता है।

आज्ञाचक्र :

ये चक्र भूमध्य के सरल रेखा मे नीचे की और रहता है। यह स्थान साधारणत: पिनीयल ग्लँडस् के संबंध में आता हैं| इसे सिर्फ दो ही पंखुडिया रहती हैं। इस चक्र के स्वामी आत्मा रहता है। इस चक्र के द्वारा आँखो का नियंत्रण किया जाता है।

सहस्त्रार चक्र :

यह सबसे ऊपर और आखिर का चक्र है। ऊपर के सभी चक्र सहस्त्रार चक्र के साथ ही जुडे रहते हैं| इसे चक्र कों हजारों पंखुडिया रहती हैं। उन्हें विविध प्रकार के रंग रहते हैं। इनका संबंध मनुष्य के Brain से जुडा हुंआ रहता है। इस चक्र को सर्व नियंत्रक कहा गया है। इसे मनुष्य के अध्यात्मिक विकास का भो केंद्र माना गया है।

मूलाधार चक्र में सुप्तावस्था में स्थित  कुंडलिनी शक्ती को जागृत करने हेतु|हमे सुषुम्ना मार्ग से चल के एक-एक चक्र को जागृत करके आखिर में सहस्त्रार चक्र तक आना चाहिए| यही कुंडलिनी योग का विकास मार्ग हैं। कुंडलिनी शक्ती की जागृती से Brain के अंदर सुप्त पेशियों को कार्यरत किया जाता है। इस वजह से कुंडलिनी शक्ती की जागृतता को विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस साधना को सब लोग कर सकते हैं।

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Posted On - June 6, 2020 | Posted By - Gaurav Shelar | Read By -

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