सनातन धर्म में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों का वर्णन किया गया है। जिनमें विवाह, गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, उपनयन, कर्णवेध, समावर्तन तथा पितृमेध आदि प्रमुख हैं। ठीक इसी प्रकार से हिंदू धर्म में विद्यारंभ संस्कार का भी विशेष महत्व है। बच्चे के जन्म के बाद उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा बनी रहे, उसके लिए विद्यारंभ संस्कार को विधि विधान से पूर्ण किया जाता है।
विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाअयु: प्रवर्धते।
विद्यया सर्वसिद्धि: स्याद्विद्ययामृतमश्नुते।।
अर्थात् वेद विद्या से सारे पापों का लोप होता है, आयु में बढ़ोत्तरी होती है, सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है, साथ ही विद्यार्थी के समक्ष अमृतरस पान के रूप में उपलब्ध होता है।
विद्यारंभ यानि विद्या का प्रारंभिक चरण। मुख्य तौर पर यह हिंदू धर्म में वर्णित संस्कारों में दशम संस्कार है। गुरुओं और आचार्य़ों का मत है कि अन्नप्राशन के बाद ही बच्चे का विद्यारंभ संस्कार करवाना चाहिए। क्योंकि इसी वक्त बच्चे का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाता है। प्रारंभ में जब गुरुकुल हुआ करते थे, तो उस दौरान बालकों को यज्ञोपवीत धारण कराकर वेदों का अध्ययन कराया जाता था। तभी से इस संस्कार का प्रयोजन किया जाने लगा।
सा विद्या या विमुक्तये
अर्थात् विद्या वही है जो मुक्ति दिला सके।
1. हिंदू धर्म में किसी भी अच्छे काम की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से होती है। इसी प्रकार से विद्यारंभ संस्कार के समय भी भगवान गणेश और मां सरस्वती की पूजा की जाती है।
2. इस संस्कार में बच्चे के लिए पट्टी, दवात और लेखनी की पूजा की जाती है।
3. इस संस्कार समारोह के दौरान बच्चे में अध्ययन के प्रति उत्साह पैदा किया जाता है। साथ ही बच्चे को अक्षरों और जीवन के श्रेष्ठ सूत्रों का ज्ञान कराया जाता है।
4. इस समारोह के वक्त नारियल को गुरु पूजन के लिए रखा जाता है।
5. विद्यारंभ संस्कार के लिए बच्चे की उपयुक्त आयु 5 वर्ष मानी जाती है।
विद्यारंभ संस्कार के दौरान गणेश पूजन, सरस्वती पूजन, लेखन पूजन इत्यादि विधि विधान से किया जाता है।
बच्चे के हाथ में अक्षत, रोली, फूल देकर गणेश जी के मंत्र के साथ उनके चित्र के आगे अर्पित कराएं। गणेश पूजन से बच्चा मेधावी और विवेकशील बनेगा।
बालक के हाथों में रोली और फूल देकर भाव से मां सरस्वती के चित्र के सामने अर्पित कराएं। मां सरस्वती की कृपा से बच्चा विद्या की ओर सकारात्मक कदम बढ़ाएगा।
तत्पश्चात् बच्चे से पट्टी, दवात और लेखनी की श्रृद्धा पूर्वक तरीके से पूजा करवानी चाहिए। क्योंकि इस संस्कार में विद्या के लिए जरूरी संसाधनों का शामिल किया जाना भी विशेष महत्व है।
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