भारतीय विवाह प्रथा में सही साथी चुनना एक अपने में ही अलग महत्व रखता है, सही जोड़ी ढूंढने के पीछे कई कारण हैं किन्तु मुख्य कारण होता है सौभाग्यशाली भविष्य का। जीवन में कोई भी मार्ग सीधा या सरल नहीं होता इसमें अक्सर कठिनाई आती-जाती रहती हैं। शादी के बंधन में बंधने के बाद हर दिन उस रिश्ते में दो भाव जुड़ते रहते हैं। साथ ही हर दिन उनके जीवन में भाव और मानसिकता के दो हिस्से निकल कर आते हैं और किन्तु इन सभी के बीच यह जरूरी है कि हम हमेशा अपने साथी की जरूरतों और खुशियों को प्राथमिकता दें। अपना सही जीवन-साथी कैसे चुने, यह आज तक का सबसे उलझा हुआ और महत्वपूर्ण सवाल है। सही जीवन कैसे चुने, इस सवाल के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
आपको बता दें कि एक सफल शादी के लिए 2 मुख्य चीजों की अनिवार्यता आवश्यक होती है, एक समझदार व सही साथी चुनने की और दूसरा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विवाह के लिए सही समय । एक बार जब कोई व्यक्ति नौकरी या व्यवसाय में रम जाता है, तो उसे जीवन में एक प्रगतिशील और खुशहाल दिशा में साथ चलने के लिए एक साथी की जरूरत होती है। और हो भी क्यों न क्योंकि शादी एक व्यक्ति और परिवार के सदस्यों के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना होती है।
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इसके साथ आदर्श साथी को चुनने से जीवन का आनंद दोगुना हो जाता है। हालाँकि, आज के आधुनिक युग में जहाँ छोटी सी नोक-झोंक के बाद तलाक आम सा हो गया है उस समय में एक अच्छा जीवन साथी खोजना आसान काम भी नहीं है। इसके साथ वर्तमान युग पुरुष प्रधान समाज का युग नहीं है। आज जब कोई व्यक्ति अपने जीवन साथी की खोज करता है तो वर और वधू दोनों को चुनने का समान अवसर मिलता है। उनकी आकांक्षाएं समान रूप से मायने रखते हैं।
इसलिए जीवन में अब सिर्फ शादी कर लेना ही जरूरी नहीं है बल्कि शादी के लिए सही साथी ढूंढना भी जरुरी है। नहीं तो जीवन में कई ऐसे पड़ाव आते हैं जहां व्यक्ति को अकेलेपन का सामना करना पड़ता है। भारतीय प्राचीन ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन से जुड़ी ऐसी खास बातें जानना चाहता है उसके लिए व्यक्ति की कुंडली का बहुत योगदान होता है, आगे पढ़ें।
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इन परिस्थितियों के अलावा कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जो व्यक्ति के विवाह में बाधा उत्पन्न करते हैं-
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कुंडली विश्लेषण में, ऐसे कई कारण सामने हैं जो अथक प्रयासों के बाद भी शादी में बाधा पैदा करते हैं। नकारात्मक दृष्टि वाला लग्न और कलंकित लग्नेश विवाह में रुकावट के प्रमुख कारण हो सकते हैं। हालांकि, बहुत कम लोग होते हैं जो इस कमी को दूर करने पर काम करते हैं।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में छठे, आठवें और बारहवें भाव को अशुभ माना गया है। यह भाव अन्य भावों के विकास में बाधक बनते हैं। जब जातक का विवाह और जीवन साथी का घर लग्न से 7वां हो तो इस भाव से द्वितीय भाव और 12वां भाव और लग्न से छठा भाव अशुभ होता है। यह सभी भाव सप्तम भाव (विवाह और जीवनसाथी के भाव) पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यदि कोई ग्रह इस भाव में है तो यह समस्या और भी जटिल हो जाएगी।
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पुरुष के लिए शुक्र ग्रह, लग्न की दृष्टि है जबकि महिलाओं के लिए बृहस्पति लग्न का कारक है। यदि कुंडली में यह ग्रह सप्तम भाव में लाभकारी स्थिति में न हों तो विवाह में देरी हो सकती है। इस मामले में या हर उद्देश्य के लिए शनि सबसे बड़ा कारक है। यदि शनि सप्तम भाव में या लग्न कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी हो या नवांश में हो तो निश्चित रूप से व्यक्ति को सिद्ध पुरुष मिलने में कुछ देरी होगी।
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