विज्ञान की परिभाषा तो अत्यंत सरल है, यदि किसी विषयवस्तु का अध्ययन नियमानुसार, निश्चित चरणों में किया लाए, जिसका तार्किक और प्रयोगात्मक प्रमाण दिया जा सके ऐसे शास्त्र को विज्ञान कहा जाता है। ज्योतिष भी इन सभी मानकों को पूर्ण करता है, ज्योतिष कई मायनों में विज्ञान से बढ़कर व प्राचीन है।
ज्योतिष शास्त्र के सम्पूर्ण ज्ञान को प्रयोग द्वारा अभी सिद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि महान ऋषियों ने इसकी आवश्यकता नहीं समझी और आज के वैज्ञानिक उपकरणों में इतना सामर्थ्य नहीं है। ज्योतिष शास्त्र हज़ारों वर्ष पूर्व से अस्तित्व में है जब पाश्चात्य विज्ञान का जन्म तक नहीं हुआ था। ज्योतिष को वेदों का छटा अंग कहा जाता है।
प्राचीन काल से आज तक लाखों भारतीय आचार्यों द्वारा इस शास्त्र पर अध्ययन व शोध का कार्य निरंतर रूप से चलता रहा है। बारंबार विदेशी आक्रांताओं के क्रूर दमन ने भले ही इस महान ज्ञान को अपूरणीय क्षति पहुँचाई है किंतु इसके अस्तित्व को नहीं मिटा पाए है। रही सही कसर अंग्रेजों की मिथ्या अहंकार पूर्ण शासन ने पूर्ण की। पाश्चात्य सभ्यता को इस क़दर भारतीयों पर थोपा गया की हमें अपने ही महान धरोहरों पर लज्जा आने लगी। अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रसार करने के लिए हमारी सभ्यता और ज्ञान को मिथ्या व अंधविश्वास बताया गया। जिसके वे बहुत हद तक सफल भी रहे। आज ज्योतिष जैसे महान विज्ञान को अंधविश्वास कहने वाली की कमी नहीं है किंतु समय बदल रहा है।
आज की नौजवान पीढ़ी अपने पूर्वजों के दिए इस ज्ञान पर पुनः विश्वास करने लगी है। किंतु वे ज्योतिष को विज्ञान के पटल पर तौलकर परखना चाहते है। यह कार्य वर्तमान समय तो लगभग असम्भव ही है, वह इसलिए क्योंकि ज्योतिष जैसे उन्नत ज्ञान को वर्तमान विज्ञान के ज्ञान के आधार पर नहीं परखा जा सकता। विज्ञान के आयाम सीमित है, वही ज्योतिष शास्त्र के आयाम इस खगोलीय ज्ञान से भी परे है। ज्योतिष का विस्तार आध्यात्म, काल, तंत्र, मंत्र, अंक, हस्थ-रेखा जैसे अनेकों आयामों में देखने को मिलता है।
खगोलविदों ने अभी तक जितनी जानकारी एकत्रित की है वे इससे इतना तो जान गए है की ब्रह्मांड में अनेकों तारामंडल व खगोलीय पिंड उपस्थित है किंतु उन्होंने इनके मानवों पर इनके प्रत्यक्ष प्रभाव पर अभी तक विचार नहीं किया है। वे सूर्या, चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर होने वाले प्रभावों को तो जानते है किंतु इसके अतिरिक्त अन्य खगोलीय पिंडो का हम पर क्या प्रभाव है यह नहीं जानते। ज्योतिष शास्त्र इन खगोलीय पिंडो की स्तिथि के आधार पर किसी मनुष्य के जीवन काल में इन पिंडो की क्या स्तिथि होगी और इनका क्या प्रभाव होगा इसका अध्ययन कर सटीक जानकारी देता है।
काल या समय के गुण व प्रकृति को विज्ञान अभी तक सम्पूर्ण रीति नहीं समझ पाया किंतु आर्यभट्ट जैसे महान ऋषियों ने आज से हज़ारों वर्ष पूर्व अपनी गणनाओं के आधार पर सूर्य, चंद्र, तारा, तक्षत्रों की गति की सटीक गणना कर कालांतर में इनकी स्तिथि क्या होगी यह ज्ञान दिया है। इस ज्ञान का उपयोग प्राचीन काल से आज दिन तक भारतीय ज्योतिष शास्त्री कर रहे है ओर इसके आधार पर पंचांग का निर्माण किया जाता है। पंचांग की सहायता से किसी मनुष्य पर किसी विशेष काल खंड में नक्षत्रों के योग से होने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
यह तो हम सभी जानते है की सभी मनुष्य भिन्न होते है, यह तो सर्वविदित है की दो मनुष्यों के उँगलियों के निशान और आँखों की पुतली समान नहीं होती फिर हम मानुषों की हस्तरेखा के आधार पर ज्योतिषों के ज्ञान को अंधविश्वास क्यों मान लेते है। सभी मनुष्यों की हस्थ-रेखाएँ भिन्न है इनके वैज्ञानिक प्रमाण तो अभी उपलब्ध नहीं है किंतु रेखाओं के अतुल्य होने का कोई तो अर्थ अवश्य है। यदि कोई उस छुपे हुए अर्थ को समझ लेता है तो वर्तमान प्रमाणिकता के साधनो के अभाव में इस ज्ञान को नकारा नहीं जा सकता।
यह भी पढ़ें- नाड़ी दोष और इससे बचने के कारगर उपाय
3,731
3,731
अनुकूलता जांचने के लिए अपनी और अपने साथी की राशि चुनें