जब जब धरती पर अधर्म का बोझ बढ़ा है, तब-तब अपने भक्तो को कष्ट से उबारने के लिए दुनिया के पालन करता भगवान विष्णु ने जन्म लिया है। जिस प्रकार त्रेता युग में रामेश्वर, द्वापर युग में द्वारका और कलियुग का धाम जग्गन्नाथ पुरी को माना गया है।
उसी प्रकार सतयुग का धाम बद्रीनाथ को माना गया है। बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु, बद्री नारायण के रूप में आज भी तप कर रहे है। कहते है यहाँ जो भी आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के, चमोली नामक जिले में, अलखनंदा नदी के तट पर स्थित है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर, आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा चारो धाम में से एक के रूप में स्थापित किया गया है। यह मंदिर 3 भागो में विभाजित किया गया है।
गर्भ गृह, दर्शन मंडल और सभा मंडल। मंदिर परिसर में 15 मुर्तिया है, जिसमे सबसे प्रमुख है भगवान विष्णु की 1 मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है। यहाँ भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित है।
इसके दाहिनी ओर कुबेर, लक्ष्मी और नारायण की मुर्तिया है। इसे धरती का वैकुण्ठ भी कहा जाता है। शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। अप्रैल-मई से नवंबर-दिसंबर तक मंदिर दर्शन के लिए खुला रहता है।
धाम में बद्रीनारायण के 5 स्वरूपों की पूजा-अर्चना होती है। विष्णु के इन पांच रूपों को पंच-बद्री के नाम से जाना जाता है। कहते है जब गंगा जी पृथ्वी पर अवतरित हुई, तब पृथ्वी उनका प्रबल वेग नहीं सह सकी। गंगा की धारा 12 जल मार्गो में विभाजित हुई। उनमे से एक अलखनंदा नदी का उद्गम स्थान बना। यही स्थल भगवान विष्णु का विश्राम स्थल बना और बद्रीनाथ कहलाया।
एक और मान्यता है की एक समय पर यह स्थान बेर के पेड़ो से भरा होने के कारण बद्री वन भी कहलाया। कहते है वेदव्यास ने यही रामायण लिखी थी और स्वर्ग जाने से पहले पांडवो का अंतिम पड़ाव यही था। पुराणों के अनुसार, यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान् विष्णु ने बाल स्वरुप में अवतरण लिया था।
यह स्थान पहले शिवभूमि के रूप में विख्यात था। भगवान् विष्णु ने बाल रूप में जन्म लेकर, वहाँ रुंदन शुरू किया। रुंदन सुन कर शिव-पार्वती वहाँ आये और उनसे पुछा बालक तुम्हे क्या चाहिए? तो बालक ने वह स्थान मांग लिया। इस तरह रूप परिवर्तित कर भगवान् विष्णु ने, शिव जी से यह स्थान प्राप्त कर लिया|
एक बार जब विष्णु जी ध्यान मुद्रा में लीन थे, तब बहुत अधिक हिमपात होने लगा। विष्णु जी पूरी तरह हिम में डूब उठे थे। उनकी ये अवस्था देखकर माता लक्ष्मी का ह्रदय द्रवित हो उठा। लक्ष्मी ने खुद वहाँ खड़े होकर, वृक्ष का रूप ले लिया और हिमपात को अपने ऊपर सहने लगी। जब विष्णु जी ने अपना तप पूर्ण किया, तो पाया की लक्ष्मी जी हिम से ढकी हुई है।
विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा की “हे देवी आपने मेरे बराबर ही तप किया है, इसलिए आज से आपकी पूजा इस स्थान पर मेरे साथ ही की जाएगी। और आपने मेरी रक्षा बद्री वृछ के रूप में की है, इसलिए मुझे बद्री के नाथ – बद्रीनाथ नाम से सम्बोधित किया जायेगा।
धाम के कपाट ६ महीनो के लिए ही खुले रहते है। मंदिर के दर्शन यानि कपाट खुले की अवधि की घोसना बसंत पंचमी को की जाती है। कपाट हमेसा ही अक्षय तृतीया के दिन ही खोले जाते है और दीपावली के बाद बंद किये जाते है। अंतिम दिन विधि विधान से पूजा करने के उपरान्त, अखंड दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। कपाट बंद रहने की अवधि में, बद्रीनाथ की पूजा पांडुकेश्वर में की जाती है।
प्रमुख स्थानों से दूरी :
ऋषिकेश – 297 किमी. कोटद्वार – 327 किमी.
देहरादून – 314 किमी. दिल्ली – 395 किमी.
रेलवे : बद्रीनाथ के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है ऋषिकेश। यहाँ पर आप भारत के प्रमुख स्थानों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता से सीधे पहुंच सकते है।
हवाई मार्ग : बद्रीनाथ के सबसे निकटतम एयरपोर्ट है जॉली ग्रांट, जो की देहरादून में स्थित है।
सड़क मार्ग : ऋषिकेश तक पहुंचने के बाद, आप बद्रीनाथ प्राइवेट वाहनों से पहुंच सकते है।
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