इंसान कई बार निराशा के सागर में डूब जाता है और यह निराशा उसे आत्महत्या तक करने पर मजबूर कर देती है। दनिया में बिखरे जीवन के रंग भी उसे फीके लगने लगते हैं। लेकिन किसी भी सूरत में आत्महत्या करना सही नहीं ठहराया जा सकता। आज हम आप लोगों के लिए एक ऐसी कहानी लेकर आए हैं जो आत्महत्या जैसे विचार को आपके दिमाग से निकाल सकती है। यह एक संत की कहानी है जिसने आत्महत्या करने वाले एक व्यक्ति की आंखें खोल दीं।
काफी पुराने समय की बात है, एक व्यक्ति जिसके पास काफी धन दौलत थी और जीवन में हर तरह का सुख था वह एक दिन जीवन से निराश हो गया, क्योंकि उसकी सारा धन किसी न किसी वजह से समाप्त हो गया। धन के लालच में जो लोग उसके आसपास रहते थे उसकी खैरख्वाह पूछते थे वह भी दूर हो गए। अपने जज्बातों को चाहकर भी वह किसी से व्यक्त नहीं कर पाता था। इसी ऊहापोह में उसने जीवन से निराश होकर मरने का फैसला ले लिया।
निराशा के कारण यह व्यक्ति आत्महत्या करने के लिए पहाड़ की एक ऊंची चोटी पर पहुंच गया। वहीं से एक संत भी गुजर रहा था उसने इस व्यक्ति को देखकर सारा मामला समझ लिया। संत उस व्यक्ति के पास गया और पूछा ‘क्या कर रहे हो यहां?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया की अब जीवन में मेरे पास कुछ भी नहीं बचा इसलिए मैं आत्महत्या कर रहा हूं। उस संत ने कहा तुम मरना ही चाहते हो तो उससे पहले मेरा एक काम कर दो।
उस व्यक्ति ने पूछा ‘क्या काम?’ संत ने कहा कि पास के राज्य का जो राजा है उसको अजीब सी चीजें जमा करने का शौक है और वो उन चीजों की अच्छी कीमत भी देता है। वैसे भी तुम अब मरने वाले हो तो अगर तुम अपनी दोनों आंखें उस राजा को बेच दो तो वो अच्छी रकम दे देगा। वह रकम मुझे मिल जाएगी मेरा कुछ वक्त तक काम चल जाएगा, आंखों के तो वो एक लाख तक दे सकता है।
संत की बात सुनने के बाद वह व्यक्ति रा़जा के दरबार की तरफ चलने तो लगा लेकिन कई सवाल अब उसके मन में दौ़ड़ने लगे। मौत का विचार तो मन से निकल ही गया अब आंखें जाने का भय सताने लगा।
संत ने राजा के दरबार के बाहर व्यक्ति को रोका और अंदर जाकर आंख बेचने की बात करने चला गया। जब वो बाहर आया तो प्रसन्नता से उसने उस व्यक्ति को कहा कि राजा तैयार है और वो केवल आंख ही नहीं तुम्हारे कान, हाथ, पैर सब खरीद लेगा और मुझे दस लाख रुपये तक दे देगा। संत की बात सुनकर व्यक्ति के हाथ पांव फूल गए।
उसने संत से कहा कि मैं अपने अंग नहीं बेचूंगा। संत ने कहा कि तुम तो मरना चाहते हो ना फिर क्यों तुम्हें अपने अंग नहीं बेचने, इससे मेरा भला हो जाएगा और मैं कुछ और लोगों का भी भला कर पाऊंगा। लेकिन वह व्यक्ति नहीं माना। उसको समझ आ गया कि उसके पास बहुत कुछ है।
संत की बातों से व्यक्ति को समझ आ गया कि जीवन कितना बहुमूल्य है। ईश्वर ने हमें जितना भी दिया है वह बहुत ज्यादा है और हम बाहरी चीजों से लगाव लगाकर अपने असली स्वरूप को भूल जाते हैं। बाहरी चीजें जब छूटती हैं तो हमें लगता है कि हमारे जीवन में अब कुछ नहीं रहा लेकिन यह नासमझी से ज्यादा कुछ नहीं है। मानव शरीर ही अपने आप भी बहुत बड़ी पूंजी। है कोई भी अपने अंगों को लाखों रूपये में भी नहीं बेचना चाहता, इसलिए आत्महत्या जैसा काम करना और अपनी देह को नुक्सान पहुंचाना गलत है।
कभी सोचिये कि आपके पास आंखें न होती तो आप इस दुनिया को देखने के लिए कितना तरसते, आपके कान नहीं होते तो जीवन के संगीत को सुनने के लिए आप क्या कुछ नहीं कर सकते थे। इसलिए कभी भी यह विचार नहीं आना चाहिए कि आपके पास कोई नहीं या आपके पास कुछ नहीं है।
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