गुड़ी पड़वा वसंत के मौसम में आता है, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र या गोवा राज्यों में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन से मराठी नव वर्ष की शुरुआत होती है। साथ ही गुड़ी पड़वा चैत्र महीने में आता है और हिंदू चंद्र कैलेंडर के नए साल का पहला महीना माना जाता है। लूनी-सौर चैत्रदी हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह एक मराठी नव वर्ष है। चैत्रदी का अर्थ है ‘चैत्र से शुरुआत’ जो एक कैलेंडर प्रणाली को दर्शाता है और चैत्र के महीने को नए साल की शुरुआत के रुप में देखा जाता है। तिथि कैलेंडर के अनुसार गुड़ी पड़वा चैत्र शुद्ध पद्यमी पर पड़ता है, जिसका अर्थ है चैत्र के महीने में शुक्ल पक्ष का पहला दिन। आज आप इस लेख में जानेंगे कि गुड़ी पड़वा 2023 (Gudi Padwa 2023) में कब मनाया जाएगा, इसका महत्व और शुभ मुहुर्त।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार गुड़ी पड़वा चैत्र महीने में चंद्रमा के उज्ज्वल चरण (शुक्ल पक्ष) के पहले दिन मनाया जाता है। यह अमावस्या के बाद शुरू होता है और ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल अप्रैल के मध्य में पड़ता है। बता दें कि इस साल 2023 में गुड़ी पड़वा 22 मार्च 2023, बुधवार के दिन धूम-धाम से मनाया जाएगा।
सूर्योदय | 22 मार्च 2023, सुबह 06ः33 |
सूर्यास्त | 22 मार्च 2023 शाम 06ः34 |
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ | 21 मार्च 2023 को रात 10ः53 |
प्रतिपदा तिथि समाप्त | 22 मार्च 2023 को रात 08ः21 |
पूजा मुहूर्त | 22 मार्च 2023, सुबह 06:29 से सुबह 07:39 |
गुड़ी पड़वा वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है और कृषक समुदाय, विशेष रूप से महाराष्ट्र और गोवा में, गुड़ी पड़वा को अपने फसल उत्सव के रूप में मनाते हैं। कई भारतीय कैलेंडर ने चित्रादि वर्ष चक्र को अपनाया है और इस प्रणाली का पालन करने वाले सभी राज्य चैत्र महीने के पहले दिन गुड़ी पड़वा मनाते हैं।
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गुड़ी पड़वा किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण फसल कटाई के मौसम में से एक माना जाता है। यह रबी फसल के मौसम का अंत और खरीफ की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। साथ ही इस दौरान सूर्य ग्रह पहली राशि यानी मेष राशि में विराजमान होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी। इतना ही नहीं गुड़ी पड़वा के दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत भी होती है और इस दिन से 9 दिवसीय चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी का काफी महत्व होता है और इससे जुड़ी कई अलग-अलग मान्याएं भी होती हैं।
मान्याओं के अनुसार पहली बार गुड़ी को तब फहराया गया जब राजा शालिवाहन ने शकों को हराया और पैठन वापस आए, क्योंकि इसे जीत का प्रतीक माना जाता है। साथ ही कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजयों के उपलक्ष्य में भी गुड़ी फहराते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भगवान ब्रह्मा ने इस दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था और गुड़ी को ब्रह्म ध्वज (भगवान ब्रह्मा का ध्वज) भी माना जाता है। कुछ लोग इसे इंद्रध्वज (भगवान इंद्र का ध्वज) भी मानते हैं। जहां कुछ लोगों के लिए यह बसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। वहीं कुछ लोग भगवान राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने के प्रतीक के रूप में भी गुड़ी फहराते हैं।
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आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि गुड़ी फहराने से जीवन में समृद्धि आती है और गुड़ी को कई लोग धर्मध्वज भी कहते हैं। इसके प्रत्येक भाग का एक अलग अर्थ होता है। उल्टे बर्तन के सिर और छड़ी को रीढ़ माना जाता है (जैसे बांस में रीढ़ होती है, ठीक मानव रीढ़ की तरह)। किसानों के लिए गुड़ी पड़वा को रबी फसल के मौसम के अंत और नई फसल के मौसम की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। साल भर अच्छी फसल के लिए वे इस दिन अपने खेतों की जुताई करते हैं।
प्रसाद के रूप में मीठे नीम के पत्ते खाने के बाद उत्सव शुरू होता है। आमतौर पर नीम के पत्ते, गुड़, इमली आदि का पेस्ट बनाया जाता है। माना जाता है कि यह पेस्ट खून को साफ करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। साथ ही श्रीखंड, पूरन पोली, खीर (मराठियों द्वारा शकरकंद, नारियल के दूध, गुड़, चावल के आटे आदि को मिलाकर मिठाई बनाई जाती है) और सना जैसे व्यंजन पकाए जाते हैं।
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नीचे दिए गए मंत्रों का जाप आपकी पूजा प्रक्रियाओं की प्रासंगिकता के अनुसार किया जा सकता है। कुछ लोग इस दिन उपवास रखते हैं, उनके लिए भी नीचे मंत्र दिए गए हैं:
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजः श्रीब्रह्मणः प्रसादाय व्रतं करिष्ये।
प्रातः व्रत संकल्प:
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजो भगवतः श्रीब्रह्मणः षोडशोपचारैः पूजनं करिष्ये।
षोडशोपचार पूजा संकल्प:
ॐ चतुर्भिर्वदनैः वेदान् चतुरो भावयन् शुभान्।
ब्रह्मा मे जगतां स्रष्टा हृदये शाश्वतं वसेत्।।
पूजा के बाद व्रत रखने वाले जातक को इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
महाराष्ट्र में इस दौरान, प्रत्येक स्थानीय घर में एक पारंपरिक ‘गुड़ी’ रखी जाती है। यह एक लंबी बांस की छड़ी होती है, जिसे ब्रोकेड के काम से अलंकृत एक सुंदर हरे या पीले कपड़े से सजाया जाता है। इसके ऊपर एक उल्टा तांबे का बर्तन, कुछ नीम के पत्ते, आम के पत्ते, लाल फूल और चीनी क्रिस्टल परंपरा अनुसार रखे जाते हैं और इसे घर के दाहिनी ओर रखा जाता है। आमतौर पर गुड़ी को घर की खिड़की या छत की ऐसी जगह पर रखा जाता है, जहां से आसपास के सभी लोगों आसानी से इसे देख सकें। ऐसा माना जाता है कि यह बुराई को दूर रखती है और घर में सौभाग्य और समृद्धि लाती है।
ब्रह्म पुराण में गुड़ी का विशेष महत्व है, इसे भगवान ब्रह्मा के ‘ध्वज’ के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने धरती बनाने के बाद गुड़ी को रखा था। कई ऐतिहासिक कथाओं में, ‘गुड़ी’ को खुशी के साथ भी जोड़ा जाता है, जब भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अपने राज्य में वापस आए थे, तब गुड़ी फहराई गई थी।
इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं। वे घर को रंगोली से सजाते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। गुड़ी पड़वा पर्व में दावत एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस दिन विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं। लोग अपने दिन की शुरुआत एक विशेष पेस्ट के सेवन से करते हैं, जिसमें नीम की पत्ती का अर्क, इमली और गुड़ होता है।
गुड़ी पड़वा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई अलग नाम से जाना जाता हैं।
इस दिन मराठी लोग गुड़ी फहराते हैं, इसलिए इस पर्व को गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। बांस की छड़ी पर चांदी, तांबे या कांसे का उल्टा कलश रखकर गुड़ी बनाई जाती है और बांस को एक सुंदर कपड़े से सजाया जाता है (आमतौर पर, यह केसरिया रंग का होता है और ब्रोकेड बॉर्डर के साथ रेशम से बना होता है)। इसके बाद गुड़ी को गाथी (शक्कर के क्रिस्टल की माला), नीम के पत्ते, एक आम की टहनी और लाल फूलों की माला से सजाया जाता है।
गुड़ी को घर में ऊंचे स्थान जैसे छत पर फहराया जाता है ताकि वह सभी को दिखाई दे। कई लोग इसे अपनी खिड़कियों या अपने दरवाजों के दाहिनी ओर भी लगाते हैं। इस दिन आपको सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों परिवार आदि के साथ यह त्यौहार मनाना चाहिए। साथ ही आपको इस दिन किसी के साथ झगड़ा आदि नहीं करना चाहिए।
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