कात्यायनी माता को मां दुर्गा के नौ अवतारों में से एक माना जाता है। इनकी भक्ति से व्यक्ति के जीवन से कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। मां दुर्गा का छटा स्वरुप मां कात्यायनी है। चूंकि माता कात्यायनी के पिता का नाम कात्यायन था इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा।
माता कात्यायनी को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है। यहां वर्षों से इनकी पूजा-अर्चना हो रही है। ब्रजमंडल में मान्यता है कि यहां कृष्ण को पाने के लिए गोपियों ने मां कात्यायनी की ही पूजा की थी। आज भी अच्छे वर की चाह में कन्याएं इनकी पूजा करती हैं।
वह लोग जो अभी तक कुंवारे हैं और किसी न किसी वजह से उनके विवाह में देरी आ रही है तो माता की पूजा के बाद नीचे दिए गए मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके साथ ही पूजा के दौरान 3 गांठ हल्दी भी माता को अर्पित करनी चाहिए। मंत्रोच्चारण के बाद हल्दी की गांठों को अपने पास ही संभालकर रख देना चाहिए।
कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।”
ज्योतिष और धर्म के जानकार मानते हैं कि इनका संबंध बृहस्पति ग्रह से है। इसकी वजह है कि बृहस्पति ग्रह विवाह का कारक माना जाता है और माता कात्यायनी की पूजा करके भी विवाह में आ रही दिक्कतें दूर हो जाती हैं। दांपत्य जीवन से भी इनका संबंध होता है और इनकी पूजा से पति-पत्नी के बीच आ रही परेशानियां भी दूर होती हैं इसलिए इनका सबंध शुक्र ग्रह से भी है। यह दोनों ही ग्रह शुभ और तेजस्वी हैं उसी तरह माता कात्यायनी भी तेज से भरी हुई हैं। इनकी पूजा से व्यक्ति भी ओज से भर जाता है।
माता कात्यायनी के आशीर्वाद से कुंडली में मौजूद दोषों से भी मुक्ति मिल सकती है। माता कात्यायनी की पूजा से कालसर्प दोष और राहु ग्रह से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं। इसलिए कुंडली के इन दोषों को दूर करने के लिए भी माता कात्यायनी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। माता की पूजा से संक्रमण, मस्तिष्क आदि संबंधी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
माता कात्यायनी का जन्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तेज से हुआ है, ऐसा माना जाता है। एक बार जब महिषासुन नाम के एक दैत्य का प्रकोप धरती पर बढ़ा तो त्रिदेवों ने उसका अंत करने के लिए माता कात्यायनी को भेजा। महर्षि कात्यायन ने यह इच्छा जाहिर की कि देवी उनके घर में जन्म लें। माता ने उनकी इच्छा मानी और अश्विन मास की कृष्ण चतुर्दशी को माता न कात्यायन के घर में जन्म लिया।
कात्यायन ने बहुत प्रेम से अपनी बेटी का लालन-पालन किया और आगे चलकर कात्यायन ऋषि की प्रार्थना पर माता ने महिषासुर का वध किया। इसके बाद भी माता ने कई बार देवताओं को असुरों के आतंक से बचाया।
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