जातक की कुंडली में कई प्रकार के शुभ और अशुभ योग बनते हैं, जिनके कारण व्यक्ति को जीवन में अच्छे और बुरे समय का अनुभव करना पड़ता हैं। कुछ अशुभ दोष ऐसे होते है, जो जातक के जीवन को बर्बाद कर देते है, उनमें से एक प्रेत दोष है, जो जातक के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है। बता दें कि जातक की कुंडली में प्रेत दोष उत्पन्न होने से व्यक्ति को स्वास्थ्य समस्याएं, विवाह में देरी, कारोबार में असफलता आदि परेशानी का सामना करना पड़ता हैं।
यह दोष भूत, पूर्वजन्म के पाप या किसी भयानक कार्य के कारण मृत्यु होने से संबंध रखता हैं। वहीं इस दोष के प्रभाव को पहचानने के लिए, कुंडली के द्वादश भावों में बुध या शनि या राहु-केतु होते हैं, तो उस भाव को देखा जाता है। इस दोष के सम्भावित संकेतों में शीर्ष स्थान पर राहु-केतु माने जाते हैं। यदि राहु-केतु के साथ शनि और बुध ग्रह भी होता हैं, तो प्रेत दोष का प्रभाव और भी अधिक बढ़ जाता हैं।
अगर कुंडली में यह दोष होता है, तो उसके लिए जातक को मंदिर जाकर पूजा करना, दान करना, भगवान शिव के मंत्र का जाप करना, नवग्रह स्तोत्र का पाठ करना, वस्तुओं को दान आदि करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह काफी अशुभ दोष होता है, जिसके कारण जातक को परेशानी का सामना करना पड़ता हैं। यह दोष जन्मकुंडली में सूर्य और चंद्रमा के एक साथ ग्रहण के समय होता है और इससे जातक के जीवन में कठिनाइयां और संकट आ सकते हैं। इस दोष का प्रभाव जातक की कुंडली में स्थित भावों पर भी पड़ता है।
यह दोष जन्मकुंडली में अधिक होने पर जातक के जीवन में संकट उत्पन्न कर सकता हैं। इस दोष के कारण जातक अकेला रहना पसंद करता है, दोस्तों और परिवार से दूरी बना लेता है, बुरे सपने देखता है, शरीर में अनेक तरह की बीमारियां हो जाती हैं आदि। इस दोष को ठीक करने के लिए कुछ उपाय होते हैं जैसे कि मन्त्र जप, दान, यज्ञ, रुद्राभिषेक आदि। ये उपाय जातक के ज्योतिषीय चार्ट और दोष के आधार पर तय किए जाते हैं।
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जातक की कुंडली में प्रेत दोष बनने के कुछ कारण हैं, जैसे कि अशुभ ग्रहों के दुर्बल होने से या कुंडली में कुछ विशेष योगों के बनने से या कुंडली में चंद्रमा या राहु की आश्रय स्थानों में बैठे ग्रहों के संयोग से प्रेत दोष बनता है। इस दोष को कुंडली में “पितृ दोष” भी कहा जाता है।
जब कुंडली में राहु या केतु किसी ग्रह के साथ युति पर होते हैं और उन ग्रहों से दूसरे ग्रहों का कोई सम्बन्ध नहीं होता है, तब प्रेत दोष बनता है। अक्सर यह दोष बुध और शुक्र ग्रह के साथ जुड़ा होता है। यह दोष जन्मकुंडली में स्थाई होता है और उसका प्रभाव जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ता है। अगर जातक की कुंडली में ग्रह दशा ठीक नहीं होती है, तब भी यह दोष बन जाता है, जिसके कारण व्यक्ति को कठिन समय का सामना करना पड़ता हैं।
प्रेत दोष जन्मकुंडली में बनने वाले अशुभ दोषों में से एक होता है। यह दोष जन्मकुंडली में तब बनता है, जब केतु और शुक्र ग्रह एक साथ होते हैं और ज्योतिष में इसे “शुक्र-केतु संयोग” के रूप में जाना जाता है। इस दोष का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ता है, जैसे कि विवाह, संतान सुख, धन, स्वास्थ्य आदि। इस दोष से बचने के लिए ज्योतिष में कुछ उपाय भी बताए गए हैं, जो आपको अपनी जन्मकुंडली के अनुसार करने चाहिए।
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इस अशुभ दोष का जातक पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इस दोष के कुछ मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं:
यह दोष जातक के जीवन पर अलग-अलग प्रभाव डालता है। कुछ लोगों को प्रेत दोष के कारण धन का नुकसान होता है, जबकि कुछ लोगों को सेहत संबंधी समस्याएं होती हैं। इसके अलावा, इस दोष के कारण जातक को मानसिक तनाव, अस्थिर मानसिक स्थिति, बुरी आदतों और अन्य नकारात्मक गुणों का सामना करना पड़ सकता है।
वैदिक ज्योतिष में, प्रेत दोष के जातक के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए उपाय बताए जाते हैं। ये उपाय मन्त्र जप, धार्मिक अनुष्ठान, दान-धर्म आदि हो सकते हैं। कुछ विशेष उपाय जैसे पितृ दोष शांति अनुष्ठान, तर्पण, पितृ दोष के लिए दान आदि भी किए जाते हैं। इन उपायों को करने से जातक के जीवन में धन, स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि में वृद्धि हो सकती है।
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