पाँच मुखी रुद्राक्ष का प्रयोग और उत्पत्ति सभी रुद्राक्षों में सबसे अधिक होता है। रुद्राक्ष वृक्ष की 90% उपज पाँच मुख वाले रुद्राक्ष मनके की है। विभिन्न साधु और पुजारी द्वारा मंत्र जप के लिए उपयोग किए जाने वाली रुद्राक्ष मालाएं आम तौर पर पांच मुखी रुद्राक्ष की माला से बनी होती हैं।इस रुद्राक्ष का स्वामी बृहस्पति ग्रह होता है। इस रुद्राक्ष से जुड़े दो शक्तिशाली गुण मानसिक और आध्यात्मिक विकास हैं। इसका वास्तु में बहुत बड़ा उपयोग है जहाँ एक तरफ इसमें सुरक्षा करने की क्षमता है वहीं दूसरी तरफ परिवार के सदस्यों के बीच शुभता का प्रतीक भी है।
प्रकृति पंच तत्वों अर्थात वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बनी हुयी है। इनके बिना प्रकृति की कल्पना नहीं की जा सकती है। इस रुद्राक्ष में भी प्रकृति के इन पंच तत्वों के गुण निहित होते हैं। इस रुद्राक्ष के देवता कालाग्नि हैं, जो रुद्र का एक रूप हैं। इस रुद्राक्ष को पहनने से क्रोध, लोभ (लालच), काम (वासना), मोह (स्नेह) और अहंकार जैसे मानवीय चरित्र के विभिन्न रूपों को हटा दिया जाता है। इस रुद्राक्ष का मुख्य और प्रमुख लाभ यह है कि किसी भी आयु की बाधा के बिना सभी लोगों द्वारा पहना जा सकता है।
ज्योतिष, धार्मिक और धर्म, न्यायालय, अध्यापक, बैंकिग व्यवसाय, आभूषण के लेन-देन से जुड़े लोगों के लिए यह रुद्राक्ष काफी ज्यादा लाभदायक होता है। इस रुद्राक्ष की माला पहनने वाले के लिए अधिक शांति और शक्ति लाता है। ऐसा माना जाता है कि पांच मुखी रुद्राक्ष पहनने वाले लोग दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु से बच जाते हैं और सुख, धन और समृद्धि प्राप्त करते हैं।
रुद्राक्ष धारण करने के लिए नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए तदुपरांत गृह में स्थित मंदिर या किसी भी शिव मंदिर में विधिपूर्वक ध्यान करना चाहिए उसके बाद रुद्राक्ष के लिए मन्त्र का जप करना चाहिए।
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