यदि किसी व्यक्ति को सुख ओर दुःख के बीच चुनाव करने को कहा जाए तो वह स्वाभाविक है सुख ही चुनेगा। अब ज़रा सोच कर देखिए आपको अपने चारों ओर किस प्रकार के लोग ज़्यादा दिखते है, उनका अधिकतर व्यवहार कैसा होता है, वे सदा सुखी रहते है या दुखी। आप कहेंगे ये तो स्वाभाविक है इंसान के जीवन में सुख-दुःख दोनो होता है, दुःख के अनुभव के बिना सुख का अनुभव कैसे प्राप्त होगा? अगर आप इन बातों से इत्तेफ़ाक रखते है तो इसका मतलब कोई व्यक्ति सदा सुखी रह सकता है, यह आपको गले उतरने वाली बात नहीं लगती। लेकिन आपसे कहा जाए हमेशा सुखी रहा जा सकता है, आपको बस अपने विश्वास प्रणाली को परिवर्तित करने की ज़रूरत है। सबसे पहले तो ये ग़लत धारणा हमने बना ली है की कोई हमेशा ख़ुश नहीं रह सकता, इस सोच को बदलना है।
अगर आप इन बातों से इत्तेफ़ाक रखते है तो इसका मतलब कोई व्यक्ति सदा सुखी रह सकता है, यह आपको गले उतरने वाली बात नहीं लगती। लेकिन आपसे कहा जाए हमेशा सुखी रहा जा सकता है, आपको बस अपने विश्वास प्रणाली को परिवर्तित करने की ज़रूरत है। सबसे पहले तो ये ग़लत धारणा हमने बना ली है की कोई हमेशा ख़ुश नहीं रह सकता, इस सोच को बदलना है।
हमारे जीवन में जो कुछ भी हम करते है, ओर जो कुछ भी हमारे साथ होता है वो सब हमारे विश्वास प्रणाली के आधार पर होता है। विश्वास प्रणाली का अर्थ है हमारे जीवन के हर पहलू के विषय में कैसी धारणा है। जीवन के अनेक पहलू होते है जैसे हमारे रिश्तेदारों के प्रति कैसी सोच है, मित्रों के प्रति, ऑफ़िस के सहकर्मियों के प्रति कैसे सोच है, मदद करने के विषय में, स्वयं के प्रति, परमात्मा के प्रति, धर्म के प्रति, समाज के प्रति, राजनीति की विषय में, धन के विषय में, सेहत के विषय में, अध्यात्म के विषय में आदि आदि।
जितने भी आयामों के विषय में आप सोच सकते है सकते है सभी आयामों के प्रति हमारी एक विश्वास प्रणाली होती है। यह विश्वास प्रणाली जिसे हम ‘बिलीव सिस्टम’ भी कहते है, इसका निर्माण हमारे जीवन भर के अनुभवों, स्वभाव, निर्णयों, ज्ञान, धारणाओं व विचारों के आधार पर होता है।
आप सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है की अपनी विश्वास प्रणाली को कैसे बदले। हम अपने जीवन के प्रत्येक पहलू को बदले का प्रायः करें तो हम बेशक बेहतर इंसान बनते जाएँगे। हम सब करते भी ऐसा ही है, हम व्यायाम करते है, पूजा-पाठ करते है, योग करते है, अच्छी नौकरी करने के लिए दिन-रात की पढ़ाई करते है, ज्ञान अर्चन के लिए इस प्रकार के लेखों की तलाश में रहते है। हमारी बुद्धि जानती है की हमें सुख प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी है ओर उसके फलस्वरूप हमें सुख की प्राप्ति होती। आप भी ऐसा ही सोचते है ना।
यही विश्वास प्रणाली हमें सदा सुख का अनुभव करने नहीं देती। हमें यह विश्वास है कि सुख परिणाम में है वो भी मन चाहे परिणाम में। लेकिन ऐसा नहीं है, चिरस्थायी सुख के लिए परिणाम नहीं प्रक्रिया पर अपना मन लगाना होगा। जो भी कर रहे है उसका भरपूर आनंद ले। स्वयं को किसी भी कार्य शुरू करने से पहले समझाएँ मुझे इस कार्य का आनंद लेना है। यदि आनंद की अनुभूति नहीं हो रही है तो अपने तरीक़े को बदलिए, उसे रोचक बनाएँ।
सबसे महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता है स्वयं को बदलने की। स्वयं के प्रति आपकी क्या विश्वास प्रणाली है उसपर आपके जीवन का सब कुछ निर्भर करता है। आप चाहते है आप अपने पति या पत्नी पर क्रोधित ना हो तो, बच्चों पर क्रोधित ना हो तो पहले आपको यह स्वयं में यह विश्वास जागृत करना होगा की क्रोध के बिना भी मैं उन्हें अपनी बात समझायी जा सकती है। हमारा विश्वास इस बात पर है की ग़ुस्सा किए बिना तो कोई कार्य हो ही नहीं सकता और फिर हम चाहते है की हमें ग़ुस्सा कभी ना आए। ऐसा होना सम्भव नहीं है।
हमारा ध्यान सदा दूसरों से अपेक्षा पर लगा रहता है, स्वयं की सोच को देखने का हम प्रयत्न नहीं करते। यदि हम स्वयं के स्वभाव, निर्णयों, ज्ञान, धारणाओं व विचारों में सकारात्मक परिवर्तित करने में प्रयासरत हो जाए तो जीवन में दुःख का स्वतः नाश होता रेहेगा और हम चिरस्थायी सुख को अनुभव कर पाएँगे।
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