देवी दुर्गा और उनके नौ रूप के विषय में विस्तार से जानिए

देवी दुर्गा के नौ रूप, Nine Avatars of Goddess Durga

माँ दुर्गा, प्रमुख हिंदू देवी-देवताओं में से एक हैं। किंवदंतियों में वर्णित है कि भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव ने सामूहिक रूप से देवी दुर्गा को दैत्य महिषासुर का वध करने के लिए निर्मित किया था क्योंकि सभी देवगण शक्तिहीन हो गए थे और राक्षस को मारने में असमर्थ थे। आपने माँ दुर्गा को एक शेर की सवारी करते हुए और दस अस्त्रों को अपनी दस भुजाओं में उठाए हुए चित्रित किया होगा, जिनसे माँ दुर्गा ने महिषासुर को मारने के लिए विभिन्न देवताओं से प्राप्त किया था। 

महिषासुर का वध करने के लिए अवतरित हुईं निडर, सुंदर, प्रतिभाशाली और दयालु माँ दुर्गा को महिषासुरमर्दिनी के रूप में जाना जाता है। किन्तु महिषासुर से युद्ध करते समय ‘देवी दुर्गा के नौ रूप’ असुरों के संहार के लिए अवतरित हुए। माँ दुर्गा के नौ रूप आपको शक्ति, बुद्धि, धन एवं अनेकों गुणों का ज्ञान देते हैं। शारदीय नवरात्रि(2021) वह त्योहार है जिसे हम देवी दुर्गा के नौ रूपों के प्रति आदर प्रकट करने के लिए बड़े धूम-धाम से मानते हैं। यह सभी माँ दुर्गा के नौ रूप हिन्दू संस्कृति में अलग-अलग महत्व रखते हैं।

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मां दुर्गा के नौ रूप

(१) देवी शैलपुत्री

माँ शैलपुत्री जिनके नाम का अर्थ ‘पहाड़ों की बेटी’ है, उन्हें लोग शारदीय नवरात्रि के नौ पवित्र दिनों के दौरान पहले दिन पूजते हैं। देवी शैलपुत्री के कई नाम हैं जैसे सती, भवानी, पार्वती और हेमावती।

इसके अलावा, वह पहाड़ों के राजा की बेटी हैं और देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों में सबसे शुद्ध हैं। प्रकृति की देवी शैलपुत्री बैल पर सवार होकर और एक हाथ त्रिशूल धारण कर जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को दर्शाता है और एक हाथ में कमल का फूल जो शांति का प्रतीक है, धारण किए भक्तों के कष्टों का निवारण करती हैं।

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(२) देवी ब्रह्मचारिणी

माँ ब्रह्मचारिणी जिनके नाम का शाब्दिक अर्थ ‘तपस्या करने वाली कन्या है’। नौ दिनों तक चलने वाले शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति के घर देवी ब्रह्मचारिणी का जन्म हुआ था। हिन्दू कथाओं में उन्हें देवी दुर्गा के अविवाहित रूप जाना जाता है। वह तपस्या की प्रतीक हैं। इसके अलावा, वह देवी तपस्विनी जैसे कई नाम हैं।

देवी ब्रह्मचारिणी एक हाथ में माला और दूसरे में कमंडल रहता है और माँ नंगे पैर चलती हैं। इन सभी गुणों के अतिरक्त देवी ब्रह्मचारिणी निष्ठा और ज्ञान की भी प्रतीक हैं।

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(३) माँ चंद्रघंटा

देवी चंद्रघंटा जिनका शाब्दिक अर्थ है ‘वह जो घंटी के आकार में अर्धचंद्र धारण किए हुए देवी’। शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन भक्त माँ चंद्रघंटा की आराधना करते हैं। किंवदंतियों के अनुसार, माँ चंद्रघंटा की तीसरी नेत्र हमेशा खुली रहती है वह इसलिए क्योंकि माँ राक्षसों का संहारकरने के लिए हमेशा सजग रहती हैं।

माँ चंद्रघंटा के आठ हाथ हैं जिनमें एक त्रिशूल, एक में गदा, एक में धनुष और तीर, तलवार, कमल, घंटी एवं एक कमंडल धारण किए हुए हैं। देवी चंद्रघंटा वीरता एवं साहस का प्रतीक हैं। अपने सुनहरे रंग के साथ, वह सुंदरता, अनुग्रह और लालित्य की मूरत भी हैं। परंपराओं के अनुसार, लोग नौ दिवसीय उत्सव के तीसरे दिन उनकी पूजा करते हैं।

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(४) देवी कुष्मांडा

माँ कूष्मांडा के नाम को तीन अलग-अलग भागों में बांटकर उनके नाम का अर्थ जाना जा सकता है:
कु = थोड़ा
उष्म = ऊर्जा
अंडा = ब्रह्मांडीय गोला

पौराणिक कथाओं में, माँ कूष्मांडा की मुस्कान से संसार का निर्माण हुआ है। साथ ही, वह भगवान सूर्य की शक्ति का कारण है। इसके अलावा, माँ कुष्मांडा के द्वारा ही महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती अवतरित हुई हैं। किंवदंतियों का कहना है कि माँ कुष्मांडा की पूजा करने से स्वास्थ्य और शक्ति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए लोग नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा करते हैं।

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(५) माँ स्कंदमाता

देवी स्कंदमाता के नाम का शाब्दिक अर्थ स्कंद की माँ, जो वास्तव में भगवान कार्तिकेय हैं। हिंदू कथाओं के अनुसार, माँ स्कंदमाता युद्ध की देवी के रूप में भी प्रचलित हैं।

नवरात्रि के पांचवे दिन लोग उनकी पूजा करते हैं। अग्नि की देवी के रूप में लोकप्रिय, उनका रंग दूध के समान निर्मल एवं सफेद है और उनके हाथों में कमल और गोद में उनका पुत्र स्कंद अर्थात कार्तिकेय हैं।

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(६) देवी कात्यायिनी

माँ कात्यायिनी की आराधना नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। देवी कात्यायिनी को देवी पार्वती का दूसरा नाम प्राप्त है। प्राचीन कथाओं में, देवी कात्यायनी का जन्म सभी देवताओं के क्रोध से हुआ था। मार्कंडेय पुराण में उनका उल्लेख है। पुराणों में, देवताओं की दुर्दशा सुनकर, माता कात्यायिनी ने क्रोधित होकर लाल रंग के वस्त्र और आभूषण धारण किए और अपनी क्रोधित दृष्टि से महिषासुर का वध किया।

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(७) माँ कालरात्रि

माँ कालरात्रि का शाब्दिक अर्थ है जिनके नाम का अर्थ है ‘कल्याण करने वाली देवी’। देवी कालरात्रि माँ दुर्गा की सातवीं स्वरूप हैं और स्वयं का पहला रूप है जिनका उल्लेख दुर्गा सप्तशती में किया गया है। मार्कंडेय पुराण में भी माँ कालरात्रि के विनाशकारी स्वरूप का व्यापक रूप से वर्णन किया गया है।

वह देवी दुर्गा का सबसे उग्र रूप हैं और सभी बुराईयों का नाश करने वाली देवी के रूप में प्रचलित हैं। उन्हें एक भयानक काले रंग और चार भुजाएं और तीन ऑंखें व बिखरे बालों के साथ वर्णित किया गया है। वह एक देवी है जिनसे प्रेम और डर दोनों होना चाहिए।

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(८) देवी महागौरी

माँ महागौरी के नाम का शाब्दिक अर्थ “अत्यंत सफेद व निर्मल” है। वह देवी दुर्गा के आठवीं स्वरूप हैं और उन्हें भक्तों को सभी पापों के लिए क्षमा प्रदान करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है।

माता महागौरी सफेद कपड़े पहनती हैं और एक बैल की सवारी करती हैं। देवी महागौरी की भक्ति से व उनकी पूजा करने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है। नवरात्रि के आठों दिन उनकी पूजा की जाती है।

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(९) माँ सिद्धिदात्री

माता सिद्धिदात्री के नाम का शाब्दिक अर्थ ‘अलौकिक शक्तियों की देवी या सिद्धि की देवी’ है। कहा जाता है कि देवी दुर्गा के इस नौवें स्वरूप में भगवान शिव के शरीर का अर्ध-भाग भी शामिल है, इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता है।

वास्तव में, देवी देवताओं में सर्वोच्च त्रिमूर्ति, अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश की जन्म दाता हैं। इसके अलावा, अपने सचित्र प्रतिनिधित्व में, माता सिद्धिदात्री शेर की सवारी करती हैं और सुदर्शन चक्र, शंख, कमल और त्रिशूल रखती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी पूजा की जाती है।

तो यह थे माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों का विस्तार पूर्वक वर्णन इस नवरात्रि हम कामना करते हैं कि आपके घर माँ दुर्गा अपार आशीर्वाद प्रदान करें और यदि आप अपने घर पर शारदीय नवरात्रि में घर पर पूजा कराना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करें।

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Posted On - October 6, 2021 | Posted By - Shantanoo Mishra | Read By -

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