श्रीमद्भागवत गीता हमें केवल धर्म के उपदेश नहीं देती यह हमें जीवन जीने का वह तरीका भी बताती है जिसे अपनाकर हम जीवन की बुराईयों और नकारात्कता को खुद से निकाल सकते हैं। आज के दौर में इंसान भावनात्मक और मानसिक रूप से इतना बीमार होता जा रहा है कि आत्महत्या तक करने से भी नहीं चूक रहा। ऐसे में यदि हम गीता में दी गई कुछ बातों को अपने जीवन में उतार लें तो जीवन के अंधकार से खुद को निकाल सकते हैं। आज हम अपने इस लेख में गीता में दी गई कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करेंगे।
व्यक्ति को अपने मन को नियंत्रित करने का निरंतर प्रयास करना चाहिए यह गीता की सीख है। मन को नियंत्रित करने के लिए योग-ध्यान, मौन आदि का सहारा लेना चाहिए। जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण पा लेता है वो कई मुश्किलों से खुद को बचा लेता है। हालांकि गीता में ही कहा गया है कि मन को नियंत्रित करना इतना आसान नहीं है लेकिन सत्य यह भी है कि यदि आप परिश्रम करें तो मन नियंत्रण में आ जाता है।
व्यक्ति को बुरे विचारों से दूर रहकर अपनी सोच को अच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए अच्छे लोगों की संगति और साथ करना चाहिए। बुरे लोगों के साथ रहकर पंडित भी धुर्तता सीख सकता है।
गीता के मुख्य उपदेशों में से एक है कर्म-फल का उपदेश। गीता में कहा गया है कि व्यक्ति को कर्म करना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति अगर फल की ही चिंता में लगा रहेगा तो उसके कर्म में सटीकता नहीं रहेगी और वो कर्म के प्रति एकाग्र भी नहीं रह पाएगा। इसलिए कर्म को पूजा मानकर निरंतर उसे करते रहना चाहिए और सत्य यही है कि जितने आपके कर्म अच्छे होंगे आपको फल भी उतना ही अच्छा मिलेगा। फल से ज्यादा यदि कर्म पर ध्यान दिया जाए तो फल अवश्य ही अच्छा होता है।
गीता के उपदेशों में यह बात भी कही गयी है कि व्यक्ति को मोह माया के बंधन में नहीं बंधना चाहिए। मोह-माया और इच्छाएं व्यक्ति को पीड़ा देती हैं। दूसरों के प्रति विनम्र रहना चाहिए और उनका भला करना चाहिए लेकिन मोहग्रस्त होकर उनसे किसी तरह की कामना नहीं करनी चाहिए।
जब भी मनुष्य तनाव में आता है तो उसका कारण होता है अपने चरित्र या प्रकृति से हटकर कोई काम करना। यदि आप खुद को पहचान जाएं और उसके अनुसार ही कार्य करें तो कभी भी आपको तनाव नहीं हो सकता यही गीता का संदेश है।
व्यक्ति का क्रोध उसके सबसे बड़े शत्रुओं में से एक है। क्रोध में आकर व्यक्ति कई बार ऐसे कार्य कर बैठता है जो वो होश में नहीं कर सकता। क्रोध एक तरह की बेहोशी है जो व्यक्ति को पागल बना देती है इसलिए क्रोध पर नियंत्रण करना जरूरी है।
बेवजह की चिंताओं से दूर रहने का संदेश गीता में मिलता है लेकिन इसके साथ ही गीता में यह भी कहा गया है कि व्यक्ति को आत्मचिंतन अवश्य करना चाहिए। अपने अंदर की खूबियों को पहचानना चाहिए और कमियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। जो व्यक्ति अपनी आत्मा को पहचान जाता है वह जीवन के कई कठिन प्रश्नों का उत्तर ढूंढ लेता है।
यदि हर व्यक्ति गीता में दी गई शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार ले तो जीवन सरल बन सकता है। आज के दौर में व्यक्ति दूसरों से ज्यादा अपनी वजहों से परेशान है, गीता के मार्ग पर चलने से हम अपना साक्षात्कार कर सकते हैं और जीवन को सरल और सुंदर बना सकते हैं।
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