राम जन्म भूमि को लेकर लंबे समय तक कानूनी दाव पेच चले लेकिन। 5 अगस्त 2020 को राम जन्मभूमि पूजन के बाद अब इसका निर्माण कार्य शुरु हो जाएगा। भारत के प्रधानमंत्री ने राम मंदिर का भूमि पूजन किया। इस मौके पर पूरे भारत वर्ष में उत्साह का माहौल है, देश के लगभग सभी शहर जय श्रीराम के नारों से गूंज रहे हैं। खबरों की मानें तो साल 2024 तक भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। राम मंदिर निर्माण के इस पावन मौके पर आज हम आपको भगवान राम की जन्म कुंडली की कुछ खास बातें आपको बताएंगे।
ऊपर दी गई भगवान राम की कुंडली से पता चलता है कि उनका लग्न कर्क राशि का है। लग्न में दो शुभ ग्रह गुरु और चंद्र विराजमान है, एक तरफ जहां कर्क चंद्रमा की स्वराशि है वहीं गुरु इस राशि में उच्च का होता है।
भगवान राम की जन्म कुंडली में 5 ग्रह अपनी उच्च राशियों में विराजमान हैं। ऐसा संयोग बहुत दुर्लभ ही देखने को मिलता है। पांच महत्वपूर्ण ग्रह उच्च के हैं जो व्यक्ति को यशस्वी बनाते हैं।
बृहस्पति ग्रह को ज्ञान मर्यादा, शिक्षा आदि का कारक माना जाता है वहीं चंद्रमा आपके मन का कारक होता है। वहीं लग्न से आपकी आत्मा, स्वभाव और शरीर का पता चलता है। चूंकि लग्न में चंद्रमा और गुरु की युति हो रही है, दोनों ही शुभ ग्रह हैं इसलिए भगवान राम मर्यादित जीवन जीने वाले थे। हर व्यक्ति का परोपकार करना उनका स्वाभाविक गुण था। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। यही वजह है कि वह भक्तों के मन में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में आज भी विराजमान हैं।
भगवान राम की कुंडली में राहु ग्रह साहस और पराक्रम के तृतीय भाव में विराजमान है। राहु के तृतीय भाव में होना राम जी को साहसी और पराक्रमी बनाता है। अपने साहसे के बल पर उन्होंने अपनी और अपने भक्त जनों की विपत्तियों को भी दूर किया था।
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शनि देव जिन्हें न्याय का देवता भी माना जाता है भगवान राम की कुंडली में चतुर्थ भाव में अपनी उच्च राशि में विराजमान हैं। शनि वाहन, भवन आदि का सुख देते हैं, राम जी की कुंडली में चतुर्थ भाव में विराजमान शनि देव ने भी उन्हें यह सब सुख प्रदान किये। इसके साथ ही उनके अंदर ऐसे गुण भी भरे जो जनमानस के लिए भी महत्वपूर्ण थे।
भगवान राम लग्न और चंद्र दोनों से ही मांगलिक थे। यानि वह उच्च मांगलिक थे जिसकी वजह से उनको वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा था। विवाह के बाद माता सीता के साथ उनको वनवास जाना पड़ा और उसके बाद की कहानी हर राम भक्त जानता है।
मीन शुक्र की उच्च राशि है इस राशि में शुक्र के विराजमान होने से भगवान राम को आध्यात्मिक बल प्राप्त हुआ। केतु ग्रह भी आध्यात्मिकता का भान कराता है। शुक्र के तेज से राम जी ने अपने जीवन काल में कई आसुरी और नकारात्मक शक्तियों का नाश किया। उनके काल में कोई भी जन किसी भी नकारात्मक शक्ति से भयभीत नहीं था।
मेष राशिस्थ सूर्य उच्च का माना जाता है इसके साथ ही दशम भाव में यह दिगबली भी कहा जाता है। ज्योतिष में इस भाव को पिता का भाव भी कहा जाता है। अपने पिता के सम्मान के लिए राम जी ने जीवन भर काम किया था इसके साथ ही वह चक्रवर्ती सम्राट भी बने। अपने पिता के राज्य को उन्होंने भलीभांति चलाया और वहां धर्म और शांति की स्थापना की।
बुध ग्रह एकादश भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित है। यह लाभ का भाव कहा जाता है। बुध ने भगवान राम को ऐश्वर्य और धन-धान्य की प्राप्ति करवाई। बुध ग्रह की सप्तम दृष्टि पंचम भाव पर भी है जो दर्शाता है कि उन्होंने राम जी तार्किक भी थे और तथ्यों का गहनता से जांचते परखते भी थे।
राम जी की कुंडली को देखकर पता चल जाता है कि यह किसी साधारण पुरुष की कुंडली नहीं थी। ऐसा बहुत कम होता है या यूं कहें होता ही नहीं है कि किसी जातक की कुंडली में पांच मुख्य ग्रह उच्च के हों। लेकिन यह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की कुंडली थी। कुंडली के लग्न में विराजमान गुरु उनके शिक्षा के पंचम भाव और धर्म आध्यात्म के नवम भाव पर भी दृष्टियां डाल रहा है जिससे वह शिक्षा और आध्यात्म दोनों ही क्षेत्रों में आजीवन अग्रसर रहे। वहीं शनि की दष्टि दशम भाव पर होने से उन्होंने पिता के नाम को भी प्रसिद्धि दी। कुलमिलाकर कहें तो राम जी की कुंडली में वह सारे कारक हैं जो उन्हें महान शासक के साथ-साथ एक मर्यादित पुरुष भी बनाते हैं।
भूमि पूजन के बाद अब राम मंदिर का कार्य शुरु हो जाएगा। राम मंदिर बनने के बाद निश्चित तौर पर देश में भी एक सकारात्मकता आएगी। राम जी के जीवन से हमारी आनी वाली पीढ़ियां भी शिक्षा लेंगी। जिस तरह लोक परोपकार के लिए भगवान राम ने अपना जीवन समर्पित किया उसी तरह हम भी देश और समाज को सुधारने की कोशिश करें तो पूरा विश्व राम राज्य बन जाएगा। राम जी ने हमें मर्यादित जीवन जीने का संदेश भी दिया है और हमें यह गुण अपने अंदर समाहित करना चाहिए ताकि समाज में सकारात्मकता आए।
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