गौतम बुद्ध के बारे में हम सभी अच्छी तरह जानते हैं। एक युवराज जिसने ज्ञान की तलाश में अपने राजपाठ और परिवार सब को त्याग दिया। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद लोगों को उपदेश देने शुरू किये और समझाया कि व्यक्ति अपने अच्छे-बुरे का स्वयं जिम्मेदार है। उन्होंने अपने जीवन काल में कई शिक्षाएं दीं लेकिन कुछ ही लोग ऐसे थे कि जो उनकी शिक्षाओं को समझ पाए और सत्य को जान पाए। आज हम बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जो आज के दौर में भी प्रासंगिक है।
एक व्यक्ति जो प्रतिदिन भगवान बुद्ध के प्रवचन सुनने आता था उसने एक दिन भगवान बुद्ध से कहा कि, ‘मैं नियमित रूप से आपका प्रवचन सुनाता हूं लेकिन मेरे अंदर किसी भी तरह का कोई परिवर्तन नहीं आ रहा। क्या मेरे अंदर कोई कमी है, मैं कारण जानना चाहता हूं?’ आपको बता दें कि अपने उपदेशों में भगवान बुद्ध सच्चाई के मार्ग पर चलने को कहते थे, वह अहंकार, द्वेष, लोभ आदि को जीवन से दूर करने की सलाह देते थे।
खैर उस व्यक्ति की बात को सुनकर बुद्ध भगवान को किसी भी तरह का आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि सभा में बैठे बहुत से लोगों की स्थिति वैसी ही थी, इसलिए उन्होंने जवाब देते हुए उस व्यक्ति से पूछा ‘आप कहां रहते हैं?’ व्यक्ति ने जवाब दिया कि मैं श्रावस्ती का रहने वाला हूं।
पहले सवाल का उत्तर मिलने के बाद भगवान ने फिर पूछा ‘तुम अपने गांव कैसे पहुंचते हो?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया की वो कभी बैल गाड़ी और कभी घोड़े में बैठकर अपने गांव तक पहुंचता है। इसके बाद बुद्ध ने एक और सवाल किया कि, वहां पहुंचने में तुम्हें कितना वक्त लग जाता है? उसने आकलन लगाकर वक्त बता दिया। इसके बाद गौतम बुद्ध ने सवाल किया कि, ‘क्या अभी यहां बैठे हुए तुम अपने घर श्रावस्ती पहुंच सकते हो?’
वह व्यक्ति थोड़ा अचंभित हुआ और उसने जवाब देते हुए कहा कि, यहां बैठे में कैसे अपने घर पहुंच सकता हूं, घर पहुंचने के लिए तो मेरे को चलना पड़ेगा और फिर वाहन में बैठकर ही मैं घर तक पहुंच सकता हूं। उस व्यक्ति की बात पर जवाब देते हुए बुद्ध बोले की तुम सही कहते हो चलकर ही मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।
भगवान बुद्ध ने आगे समझाते हुए उस व्यक्ति से कहा कि, जिस तरह बिना चले मंजिल नहीं मिलती उसी प्रकार अच्छी बातों को केवल सुनकर कोई परिवर्तन नहीं आता। अच्छी बातों को अपने आचरण में ढालकर ही व्यक्ति को मंजिल मिलती है। इसके बाद वह व्यक्ति अपनी भूल को समझ गया और उसने बुद्ध के बताए मार्ग पर चलने का फैसला किया।
बुद्ध के जीवन के इस छोटे से वाकये से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऐसा नहीं है कि आज के दौर में उनकी शिक्षाओं के बारे में कोई जानता न हो और ना ही ऐसा है कि आज के समय में ऐसे लोग न हों जो सही मार्ग पर चलने के उपदेश देते हैं। लेकिन सवाल यही है कि शिक्षाओं पर चलने के लिए कौन तैयार होगा। ज्ञान सार्थक तभी होता है जब उसे व्यवहार में भी लाया जाए।
यदि आज भी हम हमारे मनीषियों की शिक्षाओं पर चलने को तैयार हो जाएं तो जीवन में सार्थक परिवर्तन अवश्य आ सकते हैं। जो लोग अपनी असफलताओं का रोना रोते हैं उनके लिए भी यह कहानी सीख देती है कि, क्या आप उस मार्ग पर चले जिसपर चलकर आप मंजिल पाना चाहते थे।
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