ओशो की कुंडली- जानें सबसे चर्चित आध्यात्मिक गुरु की कुंडली क्या कहती है

ओशो की कुंडली

ओशो ने भारत समेत विश्व के लाखों लोगों को अपने व्यख्यान और ज्ञान से प्रभावित किया। उनकी शख्सियत से प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह पाता था। स्वच्छंद विचार और तार्किक बुद्धि ने उन्हें विश्वविख्यात बना दिया। आज अपने इस लेख में हम ओशो के जीवन पर नजर डालेंगे और ज्योतिषीय दृष्टि से जानने की कोशिश करेंगे कि वह कौन सी ग्रह स्थितियां थीं जिन्होंने उन्हें आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलायी। 

रजनीश ओशो की लग्न कुंडली 

ओशो की कुंडली
ओशो की कुंडली

कुंडली में ग्रहों की स्थिति

जन्म कुंडली का लग्न देखें तो वह वृषभ राशि का है। बृहस्पति ग्रह कर्क राशि में विराजमान है तृतीय भाव में केतु ग्रह कन्या राशि में विराजमान है। सूर्य वृश्चिक राशि में विराजमान है और चंद्रमा, मंगल, बुध, शुक्र और शनि यह सारे ग्रह धनु राशि में विराजमान है। राहु ग्रह मीन राशि में विराजमान है।

लग्न के स्वामी की अन्य ग्रहों के साथ युति

आध्यात्मिक गुरु रजनीश की कुंडली का लग्न वृषभ राशि का है जिसका स्वामी ग्रह शुक्र अष्टम भाव में शनि, मंगल, बुध और चंद्रमा के साथ विराजमान है। यानि अष्टम भाव में पांच ग्रहों की युति हो रही है। लग्न के स्वामी की चार ग्रहों के साथ युति दर्शाती है कि ओशो का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होंने संन्यास ग्रहण किया लेकिन उसके बाद यह संदेश भी दिया की जंगलों में जाकर या दुनिया से दूर रहकर कोई संन्यासी नहीं हो जाता, असली संन्यास लोगों के बीच रहकर ही लिया जा सकता है।  

प्रवज्र राजयोग

जब भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चार या चार से अधिक ग्रहों की युति होती है तो उसे प्रवज्र राजयोग कहा जाता है जोकि एक प्रबल राजयोग है।यहां रजनीश की कुंडली में भी यह ग्रह स्थिति है, यह योग संन्यास योग की तरह ही प्रबल होता है। ओशो ने भी अपना जीवन संन्यस्त होकर बिताया हालांकि वह आम लोगों के बीच ही रहे।

अष्टम भाव में पांच ग्रहों की युति 

हालांकि कई विद्वान षष्ठम, अष्टम और द्वादश भावों को शुभ नहीं मानते लेकिन ऐसा पूरी तरह से सच नहीं है। यह ऐसे भाव है जो व्यक्ति से चमत्कार भी करवा सकते हैं। ज्योतिष में अष्टम भाव को मृत्यु, सेक्स, छुपे राज और ज्ञान का होता है। ओशो ने भी अपने जीवन में इन्हीं विषयों पर अपनी शिक्षाएं दीं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों में से एक सम्भोग से समाधि तक आज भी चर्चाओं में है। अष्टम भाव में स्थित ग्रहों ने ओशो को गूढ़ रहस्यों को खोलने के लिए आतुर किया। 

द्वितीय भाव का प्रभाव

ज्योतिष में द्वितीय भाव को वाणी का भाव कहा जाा है। इस भाव पर अष्टम भाव में बैठे सभी ग्रहों की दृष्टि पड़ रही है इसलिए उनकी वाणी में भी तेज देखा गया। वह अलग-अलग विषयों पर स्पष्टता के साथ अपनी बात रख सकते थे। उनके द्वारा कहे गये प्रवचनों पर पुस्तकें लिखी गईं और आज भी यह पुस्तकें बिकती हैं और हजारों पाठकों द्वारा पढ़ी जाती हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अष्टम भाव में बैठे पांच ग्रहों की सप्तम दृष्टि ने उनको गूढ़ रहस्यों के प्रति जिज्ञासू तो बनाया ही साथ ही अपनी वाणी से उस ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने की क्षमता भी दी।

तृतीय भाव में मजबूत बृहस्पति

ज्योतिष में तृतीय भाव को साहस और पराक्रम का भाव कहा जाता है। इस भाव में मजबूत बृहस्पति व्यक्ति को निडरता और स्पष्टता प्रदान करता है। ऐसे लोग साहसी होते हैं। ओशो भी एक निर्भक वक्ता थे और अपनी वाणी से उन्होंने देश-दुनिया के करोड़ो लोगों को प्रभावित किया। उन्होंने राजनीति पर भी तीखे कटाक्ष व्यंग किये जिसकी वजह से उन्हें परेशानियों का सामना भी करना पड़ा लेकिन बावजूद इसके भी वह रुके नहीं। कुंडली में बृहस्पति की पंचम दृष्टि सूर्य पर और नवम दृष्टि राहु पर पड़ रही है इसलिए यह दोनों ग्रह भी मजबूत हो रहे हैं। बृहस्पति जहां ज्ञान का कारक है वहीं सूर्य आत्मा का और राहु तांत्रिक विद्याओं का जिसके कारण ओशो ने कई रहस्यों से पर्दा हटाया। 

ओशो की शिक्षाएं

अपने जीवन काल में ओशो ने लोगों को जागरुक करने के लिए कई संदेश दिए। उन्होंने बताया कि संसार में रहकर भी निर्वाण हासिल किया जा सकता है। बुद्ध, कृष्ण, महावीर, नानक, ईसा मसीह, पैगम्बर मोहम्मद की शिक्षाओं को उन्होंने अपने तरीके से लोगों के समक्ष रखा। उनका मानना था कि इंसानियत का विकास तभी होगा जब हर किसी के अंदर चेतना जागृत हो जाएगी। उन्होंन कहा कि शास्त्रों को पढ़ने से ज्ञान प्राप्त नहीं होगा बल्कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्वयं सत्य का अनुभव करना होगा। उनकी शिक्षाएं आज भी समाज में जाग्रति ला रही हैं। आज इंटरनेट पर उनके कई वीडियो हैं जो हर रोज देखे जाते हैं।

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Posted On - August 13, 2020 | Posted By - Naveen Khantwal | Read By -

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