वास्तु शास्त्र हमारे जीवन को सुगम बनाने एवं कुछ अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षा करने में हमारी मदद करता है। वास्तु शास्त्र एक प्राचीन विज्ञान है, जो हमें नकारात्मक ऊर्जा से दूर और सुरक्षित वातावरण में रखने का काम करता है। जिस प्रकार घर बनवाते समय वास्तु का विशेष ध्यान रखा जाता है ठीक उसी प्रकार घर के हर कमरे को वास्तु के अनुरूप बनवाना चाहिए। इसी के साथ हमारे घर का एक महत्पूर्ण स्थान पूजा कक्ष होता है, जो एक पवित्र स्थान है। इसलिए घर में पूजा कक्ष को वास्तु के नियमों के अनुसार बनाना बहुत जरूरी है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार पूजा कक्ष के बिना घर अधूरा माना जाता है। पूजा कक्ष को घरों में पवित्र और महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र होता है। पूजा कक्ष घर का वह स्थान है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा लाने का काम करता हैं। अगर वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में पूजा कक्ष बनाया जाए तो, यह घर और परिवार के लिए सुख-शांति के साथ समृद्धि भी लाता है। आइए जानते हैं कि कैसे होना चाहिए वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष।
वास्तु शास्त्र में पूजा कक्ष के स्थान का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि इस जगह हम भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं और अपनी मजबूरिया, चाहतें, जरूरतें बताते हैं। पूजा कक्ष के लिए उत्तर-पूर्व दिशा शुभ मानी जाती है क्योंकि यह दिशा घर में रहने वाले सभी सदस्यों के जीवन में सौभाग्य लाने का काम करती है।
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यदि आप किसी फ्लैट या अपार्टमेंट में रहते हैं तो ध्यान रखें कि पूजा कक्ष की छत पर पिरामिड जैसी संरचना होनी चाहिए, क्योंकि यह डिजाइन पूजा कक्ष के लिए शुभ होने के साथ-साथ सकारात्मकता ऊर्जा को आकर्षित करने का काम करती है। साथ ही आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पूजा कक्ष के दरवाजे और खिड़कियां उत्तर या पूर्व की ओर खुलती हो। अगर हम बात करें दीपक और अग्निकुंड की तो इसकी शुभ दिशा दक्षिण-पूर्व दिशा होती हैं। पूजा कक्ष में तांबे के बर्तन का प्रयोग करना काफी शुभ माना जाता है।
जिस तरह पूजा कक्ष को वास्तु के अनुरूप होना चाहिए, उसी तरह पूजा कक्ष में मूर्तियों का स्थान भी वास्तु सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। आपको बता दें कि मूर्तियों को इस तरह रखना चाहिए कि उनका मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो। मूर्तियों को कभी भी एक-दूसरे के सामने नहीं रखना चाहिए। दीवार और मूर्तियों के बीच थोड़ा सा गैप अवश्य रखें। पूजा क्षेत्र को साफ और स्वच्छ रखना चाहिए, जिससे सकारात्मक माहौल बना रहे। इसके अलावा, घर पर मंदिर की योजना बनाते समय अगरबत्ती से निकलने वाले धुएं को बाहर निकालने की व्यवस्था बनानी चाहिए।
पूजा कक्ष में अव्यवस्था और धूल दोनों ही घर में नकारात्मकता को बढ़ावा देते हैं और आपके पूजा कक्ष में ऊर्जा के प्रवाह को बाधित करते हैं। इसलिए अपने घर के इस पवित्र स्थान में साफ-सफाई बनाए रखना जरूरी होता है।
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वास्तु विज्ञान के अनुसार, पूजा कक्ष का रंग सकारात्मक उर्जा के लिए महत्पूर्ण माना जाता है। साथ ही हर रंग के अपने मायने हैं और उसका अपना महत्व है। रंग प्रकृति के तत्वों के प्रतिनिधि भी करते हैं। जब इन वास्तु के अनुसार घर में रंग करवाया जाता है तो यह घर में शुभता को लाने का काम करते हैं।
वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष के लिए सफेद, हल्का पीला और नीला रंग सबसे शुभ रंग माने जाते हैं। इन रंगों का अपना एक अलग महत्व होता है। सफेद रंग शुद्धता का प्रतीक होता है, तो वहीं नीला रंग शांति लाने का काम करता है। आपको बता दें कि पूजा कक्ष में काले, बैंगनी और गहरे रंगों से बचना चाहिए।
साथ ही हल्के रंग पूजा कक्ष के फर्श के लिए लाभकारी साबित होते हैं इसलिए आप इस स्थान के लिए सफेद संगमरमर या क्रीम रंग की टाइलें चुन सकते हैं।
जैसा कि आप सब जानते हैं कि घर के लिए मंदिर एक पवित्र स्थान है, जिसे वास्तु शास्त्र के अनुसार अच्छी तरह से प्रकाशित किया जाना चाहिए। हिंदू परंपरा के अनुसार, घर को रोशन करने और अधंकार को मिटाने के लिए तेल के दीयों का उपयोग किया जाता है। प्रकाश सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है और यह बहुत महत्वपूर्ण होता है कि पूजा कक्ष में प्राकृतिक प्रकाश का स्रोत मौजूद हो।
आपको बता दें कि पूजा कक्ष को हमेशा रोशन और उज्ज्वल रखना चाहिए इसलिए आप कृत्रिम रोशनी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, जिनका उपयोग सूर्यास्त के बाद रोशनी करने के लिए किया जा सकता है। इतना ही नहीं, आप चाहें तो स्पॉटलाइट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
घर का मंदिर पूजा कक्ष की दहलीज के माध्यम से पवित्र ऊर्जा को घर में फैलाता है। जिस तरह घर के मुख्य द्वार से आप अंदर बाहर जाते हैं, उसी तरह पूजा कक्ष के दरवाजे से भी पवित्र ऊर्जा पूरे घर में फैलती है। वास्तु के अनुरूप ही पूजा कक्ष के दरवाजे को बनाना चाहिए ताकि आपके जीवन में आपको सौभाग्य की प्राप्ति हो।
पूजा कक्ष में सिर्फ एक ही दरवाजा होना चाहिए। दरवाजे के बिना मंदिर, घर के अन्य कमरों की तरह ही समझा जाता है। इसी के साथ दरवाजों का चयन करते समय, लकड़ी को प्राथमिक सामग्री के रूप में चुनना चाहिए। लेकिन यह सुनिश्चित अवश्य करें कि पूजा कक्ष में एक ही दरवाजा हो, जोकि कीड़े-मकौड़ों को मंदिर से दूर रखे।
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पूजा कक्ष एक ऐसा स्थान होता है, जहां भगवान का वास होता है इसलिए इस जगह कूड़ेदान रखने से बचना चाहिए। साथ ही वास्तु के अनुसार, पूजा कक्ष में मृत्यु, युद्ध आदि जैसी अनिष्ट शक्तियों को प्रदर्शित करने वाली तस्वीरों को इस स्थान पर नहीं रखना चाहिए। अगर आप यहां पर पानी रखना चाहते हैं, तो तांबे के बर्तन में ही रखना शुभ माना जाता है।
माना जाता है कि घर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में मंदिर बनाने पर आमतौर पर कई दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। घर का दक्षिण-पश्चिमी कोना उत्तर-पूर्वी कोने से बिल्कुल विपरीत होता है, इसलिए यहां की ऊर्जा देवी-देवताओं के पूजा-पाठ के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है।
दक्षिण-पश्चिमी कोना वास्तु के अनुसार पित्र पूजन के लिए निर्धारित किया गया है। इस दिशा में भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी की जाती है, जिससे कर्मचारियों को अपनी काबिलियत बढ़ाने और बेहतर ट्रेनिंग करने में सहायता मिलती है, परंतु इनकी जगह किसी अन्य देवी-देवता की स्थापना इस जगह नहीं करनी चाहिए क्योंकि वास्तु शास्त्र में ऐसा माना जाता है कि यदि अन्य देवी-देवताओं का मंदिर इस दिशा में बनाया जाता है तो लोगों को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ सकता है।
साथ ही उनके बिजनेस में बड़ा घाटा हो सकता है या किसी प्रकार की हानि भी हो सकती है। इसलिए घर के दक्षिण-पश्चिमी कोने में अपने पित्रों के चित्र स्थापित करने चाहिए और उनसे संबंधित पूजा पाठ को इस दिशा में किया जा सकता है। इस दिशा में मंदिर बनाना उचित नहीं माना जाता हैं।
यदि आप अपने घर में मंदिर बनाते समय इन विशेष बातों का ध्यान रखें तो निश्चित ही आपके घर में सुख समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आएगी। घर के लोग भी प्रसन्न रहेंगे। मुसीबतें और दुःख तकलीफ भी आसानी से दूर हो जाएंगी। इस तरह आप एक आप एक सुखी जीवन जी पाएंगे।
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