देवी चंद्रघंटा माता पार्वती या देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक है और नवरात्रि के तीसरे दिन व्यापक रूप से देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। जो कोई भी इस रूप में देवी दुर्गा की पूजा करता है, उसे जीवन में शाश्वत सुख और सफलता प्राप्त होती है। उन्हें जीवन की हर समस्या से निपटने की शक्ति प्राप्त होती है। वह मणिपुर चक्र की देवी हैं, जो नाभि में स्थित है और सूर्य द्वारा शासित है।
देवी दुर्गा (devi durga) को नारी शक्ति माना जाता है, जो ब्रह्मांड की मां हैं। वह ब्रह्मांड में सभी चीजों के निर्माण, संरक्षण और विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। युगों से मां दुर्गा को सर्वोच्च शक्ति के रूप में देखा गया है और कई हिंदू शास्त्रों जैसे यजुर्वेद, वाजसनेयी संहिता और तैत्तिरीय ब्राह्मण में इसका उल्लेख किया गया है। मां दुर्गा माता पार्वती की ही अभिव्यक्ति हैं। उनमें देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और देवी काली की संयुक्त शक्ति मौजूद है। मां चंद्रघंटा, मां दुर्गा का शांतिपूर्ण रूप हैं। उन्हें समर्पित मंत्र की मदद से आंतरिक और बाहरी नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
माना जाता है कि देवी चंद्रघंटा (Devi Chandraghanta) ने दुनिया में अनुशासन और न्याय की स्थापना की थी। उनका वाहन सिंह है, जो 'धर्म' का प्रतिनिधित्व करता है। उनका शरीर सोने के रंग का है। उनके दस में से आठ हाथों में विभिन्न अस्त्र हैं, जो अलग-अलग चीजों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाकी शेष दो हाथ भक्तों को आशीर्वाद और वरदान देने तथा किसी भी नुकसान को रोकने के लिए हैं। उनकी तीसरी आंख माथे के बीचों बीच स्थित है, जिससे वह सबको देखती हैं। देवी चंद्रघंटा सर्वोच्च सुख और संतुष्टि का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह अपने भक्तों के बीच ज्ञान और शांति की वर्षा करती हैं। देवी चंद्रघंटा दुखों को दूर करती है और व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ाती हैं। बढ़े आत्मविश्वास की मदद से व्यक्ति अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकता है।
ग्रह शुक्र देवी चंद्रघंटा द्वारा शासित है। ज्योतिष के अनुसार, देवी चंद्रघंटा की पूजा करने और उन्हें समर्पित मंत्रों का जाप करने से पारिवारिक सुख और संतुष्टि मिलती है, भाग्य खुलता है। चंद्रघंटा मंत्र (Chandraghanta Mantra) पारिवारिक जीवन को नुकसान पहुंचाने वाली बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। जिन्हें अपनी जिंदगी में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र की मदद से सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। चंद्रघंटा मंत्र का जाप करने से जातक का जीवन समृद्ध होगा और उसे कभी धन की कमी नहीं होगी। उसका स्वास्थ्य भी सही रहेगा और जीवन में आईं बाधाएं कम हो जाएंगी। यही नहीं, इस मंत्र की मदद से जातक विलासितापूर्ण जीवन जी सकेगा और घर में कभी भी खाने-पीने का संकट नहीं होगा।
देवी चंद्रघंटा (devi Chandraghanta) देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं। भगवान शिव से विवाह के बाद मां पार्वती ने अपने माथे को अर्धचंद्र के आकार की बिंदी से सजाना शुरू कर दिया। तभी से, देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। देवी पार्वती का यह विशेष रूप अपने भक्तों के कल्याण के प्रति ज्यादा चिंतित रहता है। यह रूप तुलनात्मक रूप से काफी शांत प्रकृति का है। लेकिन देवी चंद्रघंटा हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहती हैं, दुनिया के लिए बुराइयों से लड़ती हैं, उनके दस हाथों में विभिन्न अस्त्र हैं, जो विशेष चीजों का प्रतिनिधत्व करते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनके माथे पर चंद्रमा के घंटी की आकृति उनके भक्तों के जीवन से सभी प्रकार की आत्माओं को दूर रखती है।
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
चंद्रघंटा मंत्र का जाप करने का सबसे अच्छा समय | नवरात्रि का तीसरा दिन, सुबह जल्दी, शुक्रवार या मंगलवार, अष्टमी, नवमी तिथि, अमावस्या या पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 9 बार, 27 बार, 45 बार या 108 बार |
कौन चंद्रघंटा मंत्र का जाप कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर या पूर्व की ओर |
ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती को भगवान शिव को शादी के लिए काफी मनाना पड़ा था, जिसके लिए उन्हाेंने काफी संघर्ष भी किए थे। लेकिन भगवान शिव ने ब्रह्मचर्य बनाए रखने और अपनी पहली पत्नी देवी सती की मृत्यु के बाद कभी शादी न करने की कसम खाई थी। देवी पार्वती ने भगवान को यह समझाने की पूरी कोशिश की कि वह देवी सती का ही अवतार हैं। हालांकि लंबे संघर्ष और तपस्या के बाद देवी पार्वती भगवान शिव को मनाने में कामयाबी रहीं और भगवान शिव ने देवी पार्वती के साथ शादी के लिए हामी भर दी। जब वह विवाह हेतु अन्य कुछ देवताओं के साथ, देवी पार्वती के पिता और हिमालय के शासक राजा हिमवत के महल पहुंचे, तो भगवान शिव ने अपना अत्यंत उग्र रूप प्रदर्शित किया, जिससे देवी पार्वती की मां मैनावती डर गईं और बेहोश हो गईं। फिर, देवी पार्वती ने देवी चंद्रघंटा (devi Chandraghanta) का रूप धारण किया, जिसने भगवान शिव सहित सभी देवताओं को चौंका दिया। उन्होंने भगवान शिव से उनके शांत और आकर्षक रूप में लौटने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी आवश्यकताओं पर ध्यान दिया और अपने आकर्षक और सुखद रूप में लौट आए। इससे माता मैनावती प्रसन्न हुईं और उनका विवाह संपन्न हुआ।
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
चंद्रघंटा ध्यान मंत्र का जाप करने का सबसे अच्छा समय | नवरात्रि का तीसरा दिन, सुबह जल्दी, शुक्रवार या मंगलवार, अष्टमी, नवमी तिथि, अमावस्या या पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 9 बार, 27 बार, 45 बार या 108 बार |
कौन चंद्रघंटा ध्यान मंत्र का जाप कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करना चाहिए | उत्तर या पूर्व की ओर |
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