भगवान श्री कृष्ण, भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली और सबसे प्रसिद्ध अवतारों में से एक हैं। "सोलह कला संपूर्ण" और "पूर्ण पुरुषोत्तम" दो शब्द उनका वर्णन करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। वह एक आदर्श साथी, एक प्रसिद्ध गुरु और एक संचारक हैं। भगवान श्री कृष्ण की ओर सबका स्वत: ही ध्यान चला जाता है। भगवान श्री कृष्ण के चेहरे को कुछ जगहों पर गहरे रंग का चित्रित किया गया है, तो कुछ जगहों पर नीले रंग का। खासकर उनकी मूर्तियां इसी स्वरूप में दिखती हैं। विभिन्न रूपों में भी कृष्ण की त्वचा का रंग नीला ही दिखाया जाता है। उन्हें जंबुल (जामुन) रंग की त्वचा के रूप में चित्रित किया जाता है। श्रीमद्भागवतम् की व्याख्या के अनुसार, उनके दाहिने पैर में जंबू फल के चार प्रतीक भी हैं। अष्टमी तिथि (आठवें दिन), भाद्रपद में कृष्ण पक्ष के समय जब रोहिणी नक्षत्र का सर्वोच्च शासन था, तब भगवान कृष्ण का जन्म माता देवकी से हुआ था।
पूरे भारत ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी नटखट श्री कृष्ण बालरूप में या उनके युवा रूप में पूजनीय हैं। भगवान श्रीकृष्ण अपने जीवन में प्राथमिक उद्देश्य दुनिया को दुर्जनों की दुष्टता से बचाना था। भगवद्गीता में विस्तार पूर्वक उल्लिखित है कि श्री कृष्ण भक्ति और सकारात्मक कर्म की अवधारणाओं को प्रचार करने वाले महाभारत में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। कृष्ण को अक्सर मोर पंख के मुकुट और रेशमी चमकीले पीले धोती के साथ दिखाया जाता है। वह आमतौर पर त्रिभंगा मुद्रा में खड़े होते हैं, जिसमें एक घुटना दूसरे घुटने के सामने मुड़ा हुआ होता है। इस दौरान वह मवेशियों से घिरे होते हैं। यह सब इस ओर इशारा करता है कि भगवान श्री कृष्ण ईश्वरीय चरवाहे के रूप में अपनी भूमिका पर जोर देते हैं।
अन्य चित्रणों में उन्हें गोपालकृष्ण के रूप में दिखाया गया है, जहां वे अपने आस-पास के घरों से मक्खन चुराकर खाते हैं। इसके अलावा उनके बाल अवस्था में अन्य रूपों को भी दर्शाया गया है जैसे गोपाल, गोकुलकृष्ण क्रूर सांप को वश में करते हैं या गिरिधर कृष्ण अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पहाड़ी को उठाते हैं। इसके अतिरिक्त इनके बचपन के अन्य कामों के बारे में भी बताया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म लगभग 5000 वर्ष पूर्व मथुरा में हुआ था। उनके जन्मदिन को ही जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी का समारोह आमतौर पर मध्यरात्रि में होता है, क्योंकि कहा जाता है कि श्री कृष्ण अपने मामा कंस के अत्याचार और क्रूरता को रोकने के लिए एक तूफानी रात में पैदा हुए थे। उस समय आसमान में काले बादल छाए हुए थे और तेज वर्षा हो रही थी। इस दिन को पूरे भारत में धार्मिक संगीत और प्रदर्शन, प्रार्थना, आरती के साथ मनाया जाता है। यही नहीं इस रोज श्रीकृष्ण के बाल्य अवस्था की मूर्ति को एक छोटे से पालने में बैठाया जाता है। इस पालने को सभी बच्चे, बड़े, बूढ़े, युवा पुरुष और महिला यह सोचकर झुलाते हैं कि वह बाल कान्हा को झुला रहे हैं।
मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी समारोह, जहां श्री कृष्ण ने अपनी युवावस्था बिताई, विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस दिन मंदिरों और घरों को दियों की मदद से खूबसूरती से सजाया जाता है। इतना ही नहीं हम सब उनकी कृपा की कामना करते हैं। हममें से अधिकांश लोग इसलिए तीर्थ यात्रा करते हैं ताकि उनके साथ विशिष्ट बंधन में बंध सकें। फिर चाहे, वह कुछ ही समय के लिए ही क्यों न हो। भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए और उनका आशीर्वाद लेने के लिए कोई भी कृष्ण मंत्रों का जाप कर सकता है।
श्रीकृष्ण की महिमा यह है कि वे हमारी कालातीत आस्था के सबसे बड़े वक्ता और हिंदू धर्म के सबसे बड़े व्याख्याकार थे। भगवान की करुणा, मानसिक नियंत्रण और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के लिए कृष्ण मंत्र का पाठ किया जा सकता है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति का विश्वास, आत्मविश्वास दृढ़ बनाता है। कलियुग काल में जब भ्रष्ट गतिविधियां अधिक प्रचलित हो जाती हैं, तब श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप कर इन गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती है। इस मंत्र की मदद से मन शांत होता है। भगवान कृष्ण के वचनों का संकलन ही भगवद्गीता में है, जिसमें मानव सभ्यता के लिए चिरस्थायी संदेश मौजूद है। श्री कृष्ण मानव जाति के मसीहा और सभी दुखों को दूर करने वाले के रूप में पूजनीय हैं।
युवावस्था या वयस्क होने पर हम अपनी जीविका के लिए काम करना शुरू करते। इस उम्र में हमारे लिए कई चीजों के मायने बदल जाते हैं। समय के साथ हम सांसारिक कार्यों में अधिक संलग्न हाे जाते हैं, जो हमारे दृष्टिकोण को मौलिक रूप से बदल देता है। हम सांसारिक संपत्ति के नुकसान के बारे में अधिक चिंता करने लगते हैं। इस प्रक्रिया में हम अपनी अंतर्दृष्टि खो देते हैं। हम कृष्ण मंत्र का जाप करके अपने सच्चे ‘स्व’ से फिर से जुड़ सकते हैं। कृष्ण मंत्र का जाप करके इच्छाओं और चिंताओं को व्यक्त करने की क्षमता बढ़ जाती है।
कहा जाता है कि केवल भगवान ही पृथ्वी के सभी कष्टों को दूर कर सकते हैं। ऐसे में श्री कृष्ण मूल मंत्र हमारी जिंदगी को रोशन करने में हमारी मदद कर सकते हैं। जब हम इस मंत्र का जाप करते हैं तो हम ब्रह्मांडीय सार के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं। यह मंत्र हमारी नकारात्मक भावनाओं और व्यवहारों को मिटाने की क्षमता रखता है। मंत्र के जाप या श्रवण से आप सभी तरह की आंतरिक चिंताओं से छुटकारा पा लेते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की आंतरिक कठिनाइयों को ठीक करने की क्षमता है। वास्तव में यह एक मजबूत मंत्र है, जो आपको सही दिशा की ओर ले जाने के लिए मार्गदर्शन कर सकता है।
ॐ कृष्णाय नमः |
अर्थ- हे श्री कृष्ण, मेरा नमन स्वीकार करो।
कृष्ण मूल मंत्र का पाठ करने का सर्वोत्तम समय | सुबह 4 से 6 बजे के बीच (ब्रह्म मुहूर्त) |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
कृष्ण मूल मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर दिशा की ओर |
यह 16 शब्दों का एक प्रसिद्ध कृष्ण मंत्र है, जो मूल रूप से कलिसन्तरणोपनिषद में मौजूद है। यह मंत्र आपकी आत्मा और भगवान कृष्ण के बीच एक संबंध स्थापित करने में मदद करता है। यह बताता है कि आप चाहते हैं कि प्रभु आपको एक बड़े आध्यात्मिक आयाम की ओर ले जाएं और एक दिव्य क्षेत्र में स्थानांतरित करें। भक्त खुद को एक उच्च आध्यात्मिक क्षेत्र में ले जाने के लिए और एक अन्य दिव्य ब्रह्मांड में जाने के लिए इस वाक्यांश का उच्चारण करते हैं। इससे भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न होते हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
अर्थ- श्री कृष्ण और भगवान राम को प्रणाम। वे दो शरीर हैं लेकिन श्री हरि विष्णु के अवतार होने के कारण दोनों एक ही हैं।
हरे कृष्ण महा मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | सुबह 4 से 6 बजे के बीच (ब्रह्म मुहूर्त) |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
हरे कृष्ण महा मंत्र का पाठ कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | भगवान कृष्ण के चित्र या मूर्ति के सामने |
जब आप इस मंत्र को दोहराते हैं, तो आप भगवान श्री कृष्ण से अपनी सभी चिंताओं, दुखों को अपने विचारों और आत्मा से दूर करने का अनुरोध कर रहे होते हैं। इसका तात्पर्य यह भी है कि आप सर्वशक्तिमान से ज्ञान और उच्च बुद्धि प्राप्ति का आशीर्वाद का अनुरोध कर रहे हैं। इस वाक्यांश का अर्थ यह भी है कि जब आप प्रभु के सामने नतमस्तक हैं, तो आप चाहते हैं कि प्रभु आपके विचारों को रोशन करें। भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों द्वारा मंत्र का जाप बड़े श्रद्धा भाव के साथ किया जाता है।
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।
अर्थ- भगवान कृष्ण उपासकों के मन को ध्यानावस्था में लगातार नियंत्रित कर रहे हैं। श्रीकृष्ण की असीमता अथाह है। न तो देवता और न ही शैतान, इसकी व्याख्या कर सकते हैं। मैं ऐसे भव्य देवत्व को प्रणाम करता हूं। 'भगवान, कृपया मेरा नमन स्वीकार करें।
कृष्ण गायत्री मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | सुबह |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
कृष्ण गायत्री मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | भगवान कृष्ण के चित्र या मूर्ति के सामने |
भक्त इस मंत्र के जरिए भगवान श्री कृष्ण का आह्वान करते हैं। पूरे श्रद्धा भाव से इस मंत्र का जप कर भक्त श्री कृष्ण से आग्रह करता है कि वह उन्हें अपने संरक्षण में ले ले। यह मंत्र आपको शांति प्रदान करता है, आपके जीवन और विचारों से दर्द, दुखों को दूर करता है। पूरे श्रद्धा भाव से इस मंत्र का जाप करें। भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न होकर आप पर अपनी दया दृष्टि अवश्य बनाए रखेंगे।
ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः
अर्थ- मैं प्रिय भगवान कृष्ण से विनती करता हूं कि मुझे अपने संरक्षण में ले लो; हे भगवान, मैं आपको अपना सर्वस्व समर्पण करता हूं।
श्री कृष्ण सफल मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | सुबह 4 से 6 बजे के बीच (ब्रह्म मुहूर्त) |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
श्री कृष्ण सफल मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | भगवान कृष्ण के चित्र या मूर्ति के सामने |
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देवी चंद्रघंटा मंत्र
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