महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya mantra) हिंदू धर्म के ऋग्वेद से है और इसे सबसे शक्तिशाली शिव मंत्र माना जाता है। इसे ॐ त्र्यम्बकं मंत्र भी कहा जाता है। यह मंत्र लंबी आयु देता है और अकाल मृत्यु को टालता है। साथ ही कठिन परिस्थितियों से भी बचाता है। इस मंत्र के जाप से भय खत्म होता है, क्योंकि यह आत्मा को शांत करता है और जातक को मजबूत बनाता है। महामृत्युंजय मंत्र के नियमित जाप से जातक सुरक्षित महसूस करता है।
यह भी माना जाता है कि महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya mantra) का जाप करने से शारीरिक बीमारियां कम होती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है। हर धर्म में मंत्रों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। इसने समय की यात्रा की ताकि सबसे आधुनिक लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जा सके। ये मंत्र भक्तों को शांति और सांत्वना देते हैं। हिंदू धर्म के लिए, मंत्र बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि उनका उपयोग हर धार्मिक अनुष्ठान में बड़े या छोटे आयोजनों के लिए किया जाता है।
ऋषि मृकंदु और मरुदमती दोनों भगवान शिव के भक्त थे। उन्होंने भगवान शिव की लंबी तपस्या की और वर्षों तक पुत्र की कामना की थी। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा पूर्ण की। लेकिन भगवान शिव ने उनके सामने एक शर्त रखी। शर्त के रूप में भगवान शिव ने उनके सामने दो विकल्प रखे। पहला विकल्प, उन्हें एक ऐसा बेटा होगा, जिसकी अल्पायु होगी मगर वह बुद्धिमान होगा। दूसरा विकल्प, उन्हें एक ऐसा बेटा होगा, जिसकी जिंदगी तो लंबी होगी पर वह कम बुद्धिमान होगा। ऋषि मृकंदु और मरुदमती ने पहले विकल्प को चुना। उनकी बेटे प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हुई। हालांकि उन्हें यह सूचित कर दिया कि उनका पुत्र केवल सोलह वर्ष ही जीवित रहेगा। इस दंपति ने अपने पुत्र का नाम मार्कंडेय रखा, जो वह सब कुछ था, जिसकी ऋषि मृकंदु और मरुदमती ने इच्छा की थी। अपने पुत्र को सुखी जीवन देने के लिए ऋषि मृकंदु और मरुदमती ने उसके जीवनकाल के बारे में तथ्य को गुप्त रखने का फैसला किया। जब मार्कंडेय का 16वां जन्मदिन आया, तब उनके माता-पिता बेहद विचलित हो गए। वे दोनों बहुत दुखी हो गए। इतने दुखी के मार्कंडेय उनके दुख को समझ नहीं पाया। उसने अपने माता-पिता से उनके दुख का कारण पूछा तो ऋषि मृकंदु और मरुदमती ने उसे उसके भाग्य की पूरी कहानी बताई और यह भी कि उसका जन्म कैसे हुआ।
अपने जीवनकाल की पूरी कहानी सुनने के बाद मार्कंडेय ने भगवान शिव की तपस्या शुरू कर दी। जब यम उनकी आत्मा को लेने आए, तब उन्होंने शिवलिंग को गले से लगा लिया। मार्कंडेय की भक्ति और उनके प्रति प्रेम को देखकर भगवान शिव प्रकट हुए और यम को मार्कंडेय को छोड़ने का आदेश दिया। फिर उन्होंने मार्कंडेय को विशेष "महा मृत्युंजय मंत्र" दिया जो उन्हें लंबा जीवन जीने में मदद करेगा। मृत्यंजय मंत्र (Mahamrityunjaya mantra) से संबंधित कई अन्य कहानियां भी हैं। एक कहानी के अनुसार चंद्र देव ने राजा दक्ष की 27 बेटियों से विवाह किया था। लेकिन चंद्र देव उनकी बेटी रोहिणी का ही ज्यादा ध्यान रखते थे। इस कारण बाकी बेटियों को रोहिणी से ईर्ष्या होने लगी। वे अपनी इस शिकायत को अपने पिता के समक्ष ले गए। चिंतित पिता ने चंद्र देव को समझाया कि वे सबको बराबर स्नेह-प्यार दे। लेकिन चंद्र देव नहीं समझे। क्रोधित होकर उनके स्वसुर ने चंद्र देव को श्राप दिया कि उन्हें जिस रंग-रूप और तेज पर इतना अभिमान है, वह एक दिन खत्म हो जाएगा। इस श्राप से मुक्त होने के लिए चंद्र देव ने भगवान शिव की उपासना की। भगवान शिव उनकी उपासना से प्रसन्न हुए। उन्होंने चंद्रमा को दर्शन भी दिए। लेकिन उन्होंने चंद्रमा से कहा कि वह राजा दक्ष के द्वारा दिए गए श्राप को वह पूरी तरह विफल नहीं कर सकते। हालांकि इसके प्रभाव को कम अवश्य किया जा सकता है। तभी से चंद्र देव की चमक 15 में बढ़ती और घटती है।
मृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya mantra) को रुद्र मंत्र भी कहा जाता है, शिव के क्रोधी पहलू का जिक्र करते हुए, त्र्यम्बकं मंत्र, भगवान शिव की तीन आंखों का जिक्र करते हुए, और मृत-संजीवनी मंत्र, जो ऋषि शुक्राचार्य को दी गई 'जीवन-पुनर्स्थापना' का एक हिस्सा है। इस मंत्र का हिंदू वेदों में तीन बार उल्लेख किया गया है, ऋग्वेद (VII.59.12), यजुर्वेद (III.60), और अथर्ववेद (XIV.1.17)।
गायत्री मंत्रों की तरह, महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya mantra) हिंदुओं के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली मंत्र है। यह मजबूत मंत्र भगवान शिव को समर्पित है। धार्मिक रूप से इस मंत्र का जप करने से बीमारी और मृत्यु का भय कम हो जाता है। महामृत्युंजय मंत्र का अस्तित्व सबसे पहले ऋग्वेद के माध्यम से खोजा गया था और ऋषि मार्कंडेय द्वारा मानव जाति के लिए इस मंत्र को लाया गया था।
माना जाता है कि इस मंत्र में विशेष शक्तियां हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखती है और भावनात्मक-शारीरिक संतुलन बनाए रखती है। इस मंत्र का जाप करने से एक प्रकार की अमरता भी प्राप्त होती है, जो दूसरे शब्दों में आयु को बढ़ाती है और अकाल मृत्यु की आकांक्षा को कम करती है।
विभिन्न कहानियां, महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya mantra) की कहानी और उसके बनने के तरीके को दर्शाती हैं। ऋषि मार्कंडेय की कहानी पर गौर करें तो उन्हें अल्पायु के लिए जीवन मिला था। लेकिन उन्होंने भगवान शिव की उपासना की और अपने भाग्य को बदल दिया। इसके बाद से महामृत्युंजय मंत्र को मृत्यु पर विजय प्राप्त के लिए जाना जाने लगा। इसी तरह राजा दक्ष द्वारा चंद्र देव को कैसे श्राप दिया गया था, और उनकी जान बचाने के लिए कैसे इस मंत्र का जाप किया गया था, यह भी लोकप्रिय कहानी है।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
अर्थ-
“हम भगवान शिव की पूजा करते हैं। तीन आंखों वाले भगवान शिव सभी प्राणियों का पोषण करते हैं। आप हमें उसी प्रकार बंधन से मुक्त करें जिस तरह एक फल अपनी शाखा से अलग होता है ताकि हम अमरता को प्राप्त हो सकें।”
महा मृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का सबसे प्रिय मंत्र है। वह मृत्यु के विजेता हैं। इस मंत्र का ऋग्वेद में उल्लेख किया गया है, जो सबसे पुराने हिंदू मंत्रों में से है। इसका उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल के सूक्त 59 में मिलता है।
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