भगवान शिव या महादेव हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय और पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं। भगवान शिव ब्रह्मा और विष्णु के साथ त्रिमूर्ति के तीन देवताओं में से एक हैं। उन्हें एक जटिल चरित्र वाला माना जाता है, जो सुरक्षा, परोपकार और अच्छाई का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव को हिंदू धर्म का सबसे उदार और परोपकारी देवता माना जाता है। उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है, जिनके पास सोने का दिल है और जो भक्ति और प्रेम से आशीर्वाद देते हैं। वह समय के साथ भी जुड़े हुए हैं और निर्माता भी हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार, यह माना जाता है कि ब्रह्मांड एक चक्र में काम करता है, और हर 2,16,00,00,000 वर्षों में पुन: उत्पन्न होता है। भगवान शिव हर चक्र में ब्रह्मांड को नष्ट करते हैं और एक नई शुरुआत के साथ उसका पुन:निर्माण करते हैं। भगवान शिव त्यागी हैं और संसार के किसी भी प्रकार के सुखों में लिप्त नहीं होते हैं। वह केवल पूर्ण सुख पाने के लिए ध्यान करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता होने के साथ-साथ, भगवान शिव ब्रह्मांड के काले तत्वों, जैसे कि बुरी आत्माओं, भूतों, चोरों और लुटेरों के भी स्वामी हैं।
भगवान शिव के कई नाम हैं। उनकी पूजा के समय इन नामों का उपयोग किया जाता है जैसे शंभू (सौम्य), शंकर (उपकारी), महेश (महान स्वामी), और महादेव (महान भगवान)। ऐसे कई रूप हैं, जो भगवान शिव के शांत मनोदशा का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसे पत्नी पार्वती तथा बच्चे गणेश और कार्तिकेय के साथ होते हुए उनके चेहरे पर खुशी के साथ मंद मुस्कुराहट, ब्रह्मांडीय नर्तक नटराज रूप में, एक भिखारी या योगी के रूप में, एक अछूत के रूप में, कुत्ते भैरव के साथ, एक तपस्वी ध्यानी के रूप में और कई अवसरों में अर्धनारीश्वर (आधे पुरुष-आधी महिला) के रूप में। सर्प पर उनकी उभयलिंगी शक्ति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भगवान शिव संन्यासी और प्रजनन क्षमता के प्रतीक हैं, साथ ही वह दवा तथा विष के स्वामी हैं। भगवान शिव के और भी कई रूप और शक्तियां हैं और उनका हर रूप अन्य की तरह पवित्र है।
भगवान शिव एक ही समय में विनाश और सृजन, दोनों के देवता हैं। दया और कृपा के प्रतीक हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा की जाती है। उनकी पूजा करने के कई तरीके मोजूद हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना बहुत आसान है। उनके लिए समर्पित कुछ अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिनमें विभिन्न मंत्रों का जाप भी शामिल है। इस पूजा-अर्चना के माध्यम से भक्त सहजता से जीवन में सफल होते हैं।
शिव मंत्रों के नियमित जाप से व्यक्ति भीतर रूप से अत्यंत बलवान हो जाता है, उसकी आत्मा मजबूत हो जाती है। कोई भी दुर्घटना उसके इस विश्वास को कमजोर नहीं बना सकती। जो लोग स्वच्छ मन के साथ शिव मंत्रों का जाप करते हैं, वे अपने जीवन की हर लड़ाई को सहजता से लड़ सकते हैं। साथ ही उनके संघर्ष उन्हें पहले से बेहतर तथा मजबूत व्यक्ति के रूप में उभारते हैं। ये मंत्र व्यक्ति के आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मकता में बदल देते हैं और अशुद्ध आत्मा को शुद्ध करने में भी मदद करते हैं।
माता पार्वती भगवान शिव की पत्नी थीं। उन्होंने ही मां काली और मां दुर्गा के रूप में अवतार लिया था। माता पार्वती ही सती का अवतार थीं, जो कि दक्ष की बेटी होने के कारण दक्षिणायनी के नाम से जानी जाती थीं। दक्ष ब्रह्मा के पुत्रों में से एक थे। उन्हें मानव संसार की खुशहाली की जिम्मेदारी दी गई थी। दक्ष ने भगवान शिव को अपनी पुत्री सती के पति के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया। एक बार उन्होंने एक यज्ञ अनुष्ठान की व्यवस्था की थी, जिसमें उन्हाेंने भगवान शिव को छोड़कर समस्त देवों को आमंत्रित किया था। सती अपने पिता के इस निर्णय से परेशान थी। उन्होंने अपने पति शिव से अनुरोध किया कि उन्हें उनके पिता दक्ष के घर जाने दिया जाए, ताकि वह उन्हें समझा सकें कि वह जो कर रहे हैं वह सही नहीं है। दुनिया के लिए विनाशकारी हो सकता है। लेकिन पिता दक्ष ने अपनी पुत्री की बात नहीं समझी बल्कि भगवान शिव का और अधिक अपमान किया। परिणामस्वरूप माता सती नाराज हो गईं। अपने पति शिव के प्रति अपने पिता के अनादर और बढ़ती घृणा के कारण, उन्होंने खुद को यज्ञ में झोंक दिया। यह भी माना जाता है कि माता सती ने अपनी शक्ति का उपयोग कर अपने देह को नष्ट कर दिया।
ॐ नमः शिवाय ||
अर्थ- मैं शिव को नमन करता हूं।
पंचाक्षरी शिव मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | सोमवार, सुबह-सुबह |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
पंचाक्षरी शिव मंत्र के मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर और पूर्व की ओर |
भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने अग्नि कुंड में कूदकर आत्मदहा कर लिया था। यह देख भगवान शिव बेहद क्रोधित हो गए थे। इस त्रासदी पर प्रतिक्रिया करते हुए, उन्होंने दो राक्षसों (वीरभद्र और रुद्रकाली) का निर्माण किया। इन राक्षसों के निर्माण का मुख्य उद्देश्य था, दक्ष को समाप्त करना। जो यज्ञ दक्ष करवा रहे थे, उन दोनों राक्षसों ने उसको नष्ट कर दिया और सबके सामने दक्ष का सिर काट दिया। जबकि दूसरी ओर, भगवान शिव अपनी पत्नी की मृत्यु पर विलाप कर रहे थे। वह सती का शव अपने कंधें पर उठाकर समूची दुनिया में भ्रमण कर रहे थे। भगवान शिव का क्रोध किसी भी तरह से शांत नहीं हो रहा था। सभी देवगण उन्हें शांत करने के लिए अथक प्रयास कर रहे थे। अंतत: भगवान शिव शांत हुए। शांत होने पर उन्होंने दक्ष को पुन: जीवित कर दिया, लेकिन एक बकरी के सिर के साथ। यह दक्ष के अभिमान के अंत का प्रतिनिधित्व है। साथ ही यह एक प्रतीक है कि अभिमान जीवन में हर चीज का अभिशाप है। खुशी से जीवन जीने के लिए अपने अभिमान को समाप्त करना होगा।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
अर्थ- त्रि-नेत्र वाले हम आपको पूजते हैं, आपका सम्मान करते हैं। आप हमारे लिए श्रद्धेय हैं। आप जीवन को परिपूर्ण कर समृद्ध करते हैं। स्थिति को सुपोषित करते हैं और फलने-फूलने देते हैं। आप शक्ति, स्वास्थ्य और आंनद प्रदान करते हैं। ककड़ी जिस प्रकार अपनी लता से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हमें मृत्यु से मुक्ति प्रदान करें ताकि हम कभी अमरता की धारणा से अलग न हो सकें।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने सर्वोत्तम समय | यज्ञ के दौरान, प्रातःकाल |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
महामृत्युंजय मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर और पूर्व की ओर |
भगवान शिव को हर कोई मूर्ति या चित्रों में सफेद रंग का ही चित्रित करता है। दरअसल भगवान शिव के शरीर पर भस्म लगा होता है। कंठ नीला है, क्योंकि उन्होंने सबको बचाने के लिए विष पिया था, सिर में जटा है, जिसकी गांठ में चंद्रमा और पवित्र नदी गंगा सुसज्जित हैं। गंगा सीधे स्वर्ग से आती है और उनके सिर को सुशोभित करती है। साथ ही एक खोपड़ी उनकी गर्दन को सुशोभित करती है। यह खोपड़ी ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक सिर है, जिसे भगवान शिव ने काट दिया था। वह खोपड़ी तब तक उनके साथ चिपकी रही, जब तक कि वह वाराणसी नहीं पहुंच गए। तभी से वहां कपाल-मोचन की स्थापना हुई, जहां सिर गिरा था। जहां सभी प्रकार के पाप धुल जाते हैं। भगवान शिव के गले में एक नाग भी है, जिसे नागराज के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने सांपों के राजा को आशीर्वाद दिया था।
ॐ नमो भगवते रुद्राय।
अर्थ- मैं रुद्राक्ष के सर्वशक्तिमान स्वामी को नमन करता हूं।
शिव रुद्र मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | सुबह-सुबह |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
शिव रुद्र मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर और पूर्व की ओर |
माता पार्वती के साथ, भगवान शिव के पास गणेश थे। भगवान गणेश को माता पार्वती ने बनाया था। उस समय भगवान शिव घर पर नहीं थे, जब माता पार्वती को स्नान के लिए जाना था। ऐसे में दरवाजे की रखवाली करने वाला उनके घर में कोई नहीं था। तब माता पार्वती ने भगवान गणेश को दरवाजे की रक्षा करने के लिए कहा। कुछ समय बाद भगवान शिव घर लौटे। लेकिन भगवान गणेश उन्हें घर के अंदर प्रवेश करने नहीं दे रहे थे। हालांकि वह माता पार्वती की रचना के बारे में जानते थे लेकिन भगवान गणेश को एक अतिक्रमी मान बैठे थे। बार-बार समझाने के बावजूद भगवान गणेश ने शिव जी को घर के अंदर प्रवेश करने नहीं दिया। चूंकि गणेश अपनी माता पार्वती की आज्ञा का पालन कर रहे थे इसलिए उन्होंने भगवान शिव को अंदर जाने से रोका था। इससे भगवान शिव बेहद क्रोधित हो गए। आवेश में उन्होंने अपने भूतगणों को बुलाया, जो कि राक्षस थे और भगवान शिव के प्रति समर्पित थे। शिव जी ने उन भूत गणों को भगवान गणेश की हत्या का आदेश दिया।
उन राक्षसों ने भगवान गणेश के साथ बहुत लंबी लड़ाई लड़ी। वह तब तक लड़ते रहे जब तक कि राक्षसों में से एक ने गणेश जी को अपनी माया में फंसाकर विचलित नहीं कर दिया। उसी मौके का लाभ उठाकर एक राक्षस ने भगवान गणेश का सिर काट दिया। जैसे ही माता पार्वती को इसके बारे में पता चला, वह इतनी क्रोधित हो गईं कि उन्होंने यह कह दिया कि यदि उनके पुत्र को पुन: जीवित नहीं किया गया, तो वह संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट कर देंगी। भगवान गणेश को वापिस लाने का एकमात्र उपाय उनके शरीर को एक अलग सिर से जोड़ना था। उस समय केवल एक हाथी के बच्चे के सिर की व्यवस्था की जा सकी थी। जैसे ही सिर की व्यवसथा हुई, भगवान शिव ने अपनी शक्ति से और अन्य देवताओं के साथ मिलकर भगवान गणेश के धर से हाथी का सिर जोड़ दिया। इस तरह भगवान गणेश दोबारा जीवित हो गए। तभी से भगवान गणेश हिंदू धर्म के हाथी के सिर वाले देवता बने।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्॥
अर्थ- ओम, हे महा पुरुष, देवों के देव, भगवान रुद्र मैं आपको नमन करता हूं। आप मुझे उच्च बुद्धि दो और मेरे मन को रोशन करो।
शिव गायत्री मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | प्रात:काल, सूर्योदय से पहले से सूर्योदय के बाद, शाम को, सूर्यास्त से पहले से लेकर सूर्यास्त के बाद तक |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
शिव गायत्री मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | पूर्व और उत्तर की ओर |
देवी गंगा को गंगा नदी के रूप में जाना जाता है, जिसे हिंदू धर्म के अनुसार पृथ्वी पर सबसे पवित्र नदी माना जाता है। ऐसी कई कहानियां हैं, जो बताती हैं कि कैसे गंगा को भगवान शिव की जटा पर जगह मिली और वह किस तरह पृथ्वी पर उतरीं। इन्हीं में से एक है भागीरथ की कथा। भागीरथ, अंशुमन के पुत्र थे। उन्हें गंगा को धरती पर लाने का कार्यभार उनके पिता ने दिया था। ऐसा करके वह अपने पूर्वजों के पापों को दूर करने में सक्षम होते, जिन्हें ऋषि कपिल ने दुर्व्यवहार के कारण शाप दिया था। अंशुमन भगवान ब्रह्मा को देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए प्रसन्न नहीं कर सके थे, लेकिन जब उन्होंने भागीरथ को कार्य दिया, तो वे भगवान ब्रह्मा को समझाने में सफल रहे। उसके बाद भागीरथ ने देवी गंगा को उनके साथ पृथ्वी पर चलने का आदेश दिया, जिससे गंगा नाराज हो गईं। दरअसल, भागीरथा द्वारा आदेश दिया जाना गंगा को अपना अपमान लगा।
क्रोध वश गंगा ने अपनी पूरी ताकत से पृथ्वी पर उतरने का फैसला किया, जो निश्चित रूप से भूमि देवी (पृथ्वी) को नष्ट कर देती। भागीरथ को जल्द ही अपनी गलती का अहसास हो गया। वह जानते थे कि गंगा के क्रोध को शांत करना होगा। हालांकि यह उनके बस की बात नहीं थी। इसलिए वह भगवान शिव के पास इस संदर्भ में मदद मांगने पहुंचे। भगवान शिव अकेले ऐसे देव थे, जो देवी गंगा की शक्ति का सामना कर सकते थे। जैसे ही गंगा पृथ्वी पर उतर रही थी, भगवान शिव ने अपनी जटा आगे कर दी ताकि गंगा सीधे पृथ्वी पर न उतर सके। इस तरह गंगा का प्रवाह भी कम हो गया। इसके बाद भगवान शिव ने गंगा को सात धाराओं में विभाजित कर किया, जिनका नाम है भागीरथी, जाहन्वी, भिलंगना, मंदाकिनी, ऋषिगंगा, सरस्वती और अलकनंदा। इस प्रकार देवी गंगा को भगवान शिव के मस्तक पर स्थान मिला।
करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥
अर्थ- शरीर, मन और आत्मा को सभी तनावों, अस्वीकृति, असफलता, अवसाद और अन्य नकारात्मक शक्तियों से शुद्ध करने के लिए सर्वोच्च ईश्वर को प्रणाम।
शिव ध्यान मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | सुबह-सुबह स्नान के बाद |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
शिव ध्यान मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | पूर्व और उत्तर की ओर |
कुल मिलाकर 11 एकादश मंत्र हैं, जो भगवान शिव के 11 रूपों को श्रद्धांजलि है। वे हैं-
कपाली– “ॐ हुमूम सत्रस्तम्भनाय हूम हूम ॐ फट”
पिंगला– “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं सर्व मंगलाय पिंगालय ॐ नमः”
भीम– “ॐ ऐं ऐं मनो वंछिता सिद्धाये ऐं ऐं ॐ”
विरुपक्ष– “ॐ रुद्राय रोगनशाय अगाच्छ च राम ॐ नमः”
विलोहिता– “ॐ श्रीं ह्रीं सं सं ह्रीं श्रीं शंकरशनाय ॐ”
शस्ता- “ॐ ह्रीं ह्रीं सफलायै सिद्धाये ॐ नमः”
अजपाड़ा– “ॐ श्रीं बं सौं बलवर्धान्य बालेश्वराय रुद्राय फट् ॐ”
अहिरभुदन्य- “ॐ ह्रं ह्रीं ह्रीं हं समस्थ ग्रह दोष विनाशाय ॐ”
संभु– “ॐ गं ह्लौं श्रौं ग्लौं गं ॐ नमः”
चंदा– “ॐ चुं चण्डीश्वराय तेजस्य चुं ॐ फट”
भव– “ॐ भवोद भव संभव्या ईष्ट दर्शन ॐ सं ॐ नमः”
शिव एकादश मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | महाशिवरात्रि, रुद्र यज्ञ के दौरान, सुबह-सुबह, माह अनुसार मंत्र |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
शिव एकादश मंत्र का जाप कौन कर सकता है? | कोई भी |
किस ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | पूर्व दिशा क ओर |
सफलता मंत्र
देवी चंद्रघंटा मंत्र
साबर मंत्र
साईं मंत्र
काली मंत्र
बटुक भैरव मंत्र
काल भैरव मंत्र
शक्ति मंत्र
पार्वती मंत्र
बीज मंत्र
ऊँ मंत्र
दुर्गा मंत्र
कात्यायनी मंत्र
तुलसी मंत्र
महा मृत्युंजय मंत्र
शिव मंत्र
कुबेर मंत्र
रुद्र मंत्र
राम मंत्र
संतान गोपाल मंत्र
गायत्री मंत्र
हनुमान मंत्र
लक्ष्मी मंत्र
बगलामुखी मंत्र
नवग्रह: मंत्र
सरस्वती मंत्र
सूर्य मंत्र
वास्तु मंत्र
मंगल मंत्र
चन्द्र मंत्र
बुद्ध मंत्र
बृहस्पति मंत्र
शुक्र मंत्र
शनि मंत्र
राहु मंत्र
केतु मंत्र
गर्भावस्था मंत्र
गृह शांति मंत्र
गणेश मंत्र
राशि मंत्र
कृष्ण मंत्र
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