मातृत्व, एक महिला के लिए खुशियों से, आशाओं से भरा क्षण होता है। गर्भ धारण करना महिलाओं के लिए उसके जीवन का सबसे सुखद मोड़ होता है। हालांकि कई महिलाओं का यह सफर आसान नहीं होता है, क्योंकि इस दौरान उन्हें कई तरह की शारीरिक समस्याओं और असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, उन्हें अपनी अजन्मे शिशु के स्वास्थ्य की भी बहुत ज्यादा चिंता सताती रहती है। इसके साथ ही कई बार असुविधाओं के कारण शिशु को होने वाले हानिकारक नुकसान भी होने वाली मां के लिए चिंता का विषय बन जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि गर्भावस्था का सफर आसान नहीं होता है, महिलाओं को खट्टे-मीठे, कड़वे सब तरह के अनुभवों से होकर गुजरना पड़ता है।
ज्यादातर महिलाओं के लिए मातृत्व चुनौतीपूर्ण और विरोधाभासी सफर है। जहां एक ओर, गर्भवती महिला अपने भीतर एक जीवन को जन्म देने की तैयारी कर रही है, उसका भरण-पोषण कर रही है, उसकी देख-रेख कर रही है। ये सब करते हुए एक महिला सुपर वूमेन जैसी हो जाती है। लेकिन वहीं, दूसरी ओर इस सफर के दौरान शिशु के स्वास्थ्य के लिए संपूर्ण जवाबदेही गर्भवति महिला की होती है।
गर्भावस्था के दौरान मां का खुश रहना, सकारात्मक सोच होने से स्वस्थ शिशु का जन्म होता है। आपको बता दें कि गर्भावस्था भले ही चुनौतियों से भरा सफर होता है, इसके बावजूद एक मां इस सफर के दौरान खुद को बहुत भाग्यशाली और पवित्र महसूस करती है। असल में मातृत्व और बच्चे को धारण करने का यह अनुभव, मां को अत्यधिक आनंद और सकारात्मकता से जोड़ता है।
चिकित्सा अध्ययन से यह भी पता चलता है कि गर्भवती महिलाओं का मूड और उसकी भावनाओं का शिशु के व्यक्तितव पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। वेदों के अनुसार, यदि मां गर्भावस्था के दौरान वेद सुनती या पढ़ती है, तो इससे बच्चे पर बहुत अच्छ असर पड़ता है।
गर्भावस्था के दौरान महिला को गर्भ संस्कार संगीत, गर्भ संस्कार मंत्र और श्लोक, ध्यान, पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए। इससे गर्भावस्था बहुत सहज और आरामदायक हो जाती है। यही नहीं, गर्भावस्था के दौरान उक्त गतिविधियों को करने से गर्भवती महिलाओं का भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार बच्चे के जन्म के दौरान उसके अच्छे पोषण के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है, जिसे 'गर्भ संस्कार' के रूप में जाना जाता है। गर्भवती होने पर मंत्र जाप करने के लाभों के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ना जारी रखें।
हमारे आधुनिक समाज में भी गर्भवती मांओं के लिए मंत्र-शक्ति को काफी प्रभावी बताया गया है। ये मंत्र गर्भवती महिला और गर्भ में पल रहे उसके विकासशील शिशु को ऊर्जा, पवित्र ध्वनि और गहन प्रेमपूर्ण शांति प्रदान करता है।
मंत्रों का जाप आपकी आत्माशक्ति को बढ़ाने में मदद कर सकता है और गर्भवती होने पर कुछ मंत्रों की मदद से आपका लगाव बढ़ता है। भारतीय परंपरा के अनुसार, इस प्रक्रिया को 'गर्भ संस्कार' के रूप में जाना जाता है।
जब आप मंत्र जाप करते हैं, तो आपके शरीर के विभिन्न हिस्सों में तरंगें उत्पन्न होती हैं। ये स्पंदन आपको मंत्रों के साथ जुड़ने में मदद करती है। इससे आप में अद्भुत शक्ति का संचार होता है। ये शक्ति आपको मंत्रों के स्तर के साथ तारतम्य बैठाने में मदद करती है। ये मंत्र आपको उस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं, जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं।
गर्भावस्था के दौरान मंत्रों का जाप करने से अजन्मे शिशु के साथ विशेष और गहरा संबंध स्थापित कर सकेंगी। आप दोनों एक-दूसरे को गहराई तक अनुभव करेंगे। यही नहीं, मंत्रों की मदद से गर्भावस्था के दौरान महिला की मानसिक स्थिति अधिक स्थिर होगी, जिससे शिशु को अधिक सुरक्षित वातावरण मिलेगा और उसका विकास बेहतर तरीके से हो सकेगा। मंत्रों का पाठ करने से महिला को गर्भावस्था के दौरान अधिक सहज और आनंदित महसूस करने में मदद मिल सकती है। इससे गर्भवती महिला के जीवन में स्थिरता आती है, जो उसे किसी भी बात पर बेचैन होने से रोकती है। नतीजतन वह किसी भी बात पर नाराज नहीं होती। मंत्रों की मदद से गर्भवती महिला अपने शिशु के साथ बेहतर संबंध स्थापित कर सकेगी।
पाठ करते समय, शिशु मां के स्वर के कंपन के संपर्क में आता है, जो उसे ज्यादा शांत और सहज बच्चे के रूप में विकसित करता है। दरअसल, मंत्र हमारे लिम्बिक सिस्टम (मस्तिष्क में नसों और तंत्र की एक जटिल प्रणाली) को शांत करके शरीर पर प्रभाव डालते हैं। जब आप उदासीन महसूस कर रहे होते हैं तो लिम्बिक सिस्टम अति सक्रिय हो जाता है। मंत्र जाप से लिम्बिक सिस्टम निष्क्रिय हो जाता है ताकि मन शांत रह सके।
गर्भ संस्कार सदियों पुरानी आयुर्वेदिक सांस्कृतिक प्रथा है, जिसका वेदों में पालन किया जाता रहा है। संस्कार 'नैतिकता या आदर्श' को दर्शाता है। जबकि गर्भ मां के गर्भाशय को दर्शाता है। गर्भ संस्कार एक गर्भावस्था दर्शन है। एक विज्ञान जिसका उद्देश्य गर्भ में रहते हुए बच्चे को तालीम देना है।
गर्भ संस्कार में वह सब कुछ शामिल होता है, जो गर्भवती महिला और उसके शिशु दोनों के लिए अच्छी गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। जैसे स्वस्थ खानपान, बेहतरीन उत्पाद का उपयोग, ध्यान करना, कलात्मक कार्य करना, योगिक श्वास और सकारात्मक विचार रखना। ये सभी गर्भ संस्कार के अंग हैं।
आमतौर पर गर्भधारण करने के क्षण से शिशु विशेष के व्यक्तित्व और उसकी क्रियाओं की शुरुआत मानी जाती है। यही कारण है कि गर्भावस्था का सफर शिशु के विकास और उसके बेहतर इंसान बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसके विकास का समर्थन करने वाले वातावरण के आधार पर, वह दयालु, संवेदनशील, संतुलित और सहानुभूतिपूर्ण हो सकता है या फिर ठीक इसके विपरीत भी हो सकता है।
आप गर्भ संस्कार का उपयोग करके अपने होने वाले बच्चे को मजबूत, समझदार और बोधगम्य बनने में मदद कर सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान मंत्रों का जाप करने से आपके बच्चे के मनोवैज्ञानिक, बौद्धिक और मस्तिष्क के विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
भारतीय संस्कृति में गर्भावस्था का एक महीना 4 सप्ताह के समान होता है। भारतीय रीति-रिवाजों के अनुसार गर्भावस्था 280 दिनों या दस महीने तक चलती है।
गर्भ संस्कार मान्यता के अनुसार, प्रत्येक माह किसी न किसी ग्रह की शक्ति से ढका होता है। आपको गर्भावस्था के हर महीने में प्रभावशाली ग्रह के लिए सही मंत्र का पाठ करना चाहिए।
यह मंत्र गर्भावस्था के पहले महीने के लिए शक्ति और दृढ़ इच्छा शक्ति प्रदान करने के लिए कहा जाता है। यह मंत्र मां और बच्चे की भलाई पर केंद्रित है और बुरी नजर से बचाता है। आपका शिशु इस मंत्र के स्पंदनों के साथ-साथ आपकी आवाज को भी पहचानना सीखता है। मंत्र आपके होने वाले शिशु को विकसित होने में अधिक सहज माहौल प्रदान करता है। जब आप मंत्र का उच्चारण करेंगे या पूजा करेंगे, गर्भ में पल रहा आपका शिशु उन स्पंतदनों को महसूस कर सकेगा। उस स्पंदन के संग आ रही धुन आपके शिशु को सुखद अहसास देगी।
एहैही भगवान ब्रह्म, प्रजा कर्ता, प्रजा पाथे,
प्राग्रुहशीनिवा बलिम चा इमाम, आपथयम रक्षा गर्भनीम || 1 ||
अर्थ - हे भगवान ब्रह्मा, दुनिया के रचयिता, सृष्टिकर्ता, इस गर्भवती महिला की पवित्र श्रद्धांजलि को कृपापूर्वक स्वीकार करें। वह तमाम कष्टों को स्वीकारते हुए इस पारिवारिक पथ पर चल पड़ी है।
इस श्लोक को पढ़ने का सबसे अच्छा समय | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करें | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
कौन इस श्लोक का पाठ कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
यह श्लोक गर्भवती महिला को सकारात्मक और मानसिक रूप से मजबूत होने में मदद कर सकता है। साथ ही इस श्लोक के सहयोग से गर्भवती महिला अपने शरीर में हो रहे बदलाव को सहजता से स्वीकार पाती है और उसके अनुकूल खुद को ढाल पाती है। यह मंत्र होने वाली माँ के अस्थिर मन को शीघ्र शांत करता है। यही नहीं, गहरे स्तर पर यह मंत्र दिव्यता को पहचानने, आपके द्वारा चुने गए जीवन को बनाने की आपकी आंतरिक क्षमता के बारे में जागरूक होने और ब्रह्मांड द्वारा सहज और संरक्षित महसूस करने में आपकी सहायता करता है। अवचेतन स्तर पर, आपके बच्चे को वही संकेत प्राप्त होते हैं।
अश्विनी देवेसौ, प्रग्रनीथम बलिम द्विमं,
सपथ्यं गर्भनीम चा इमाम, चा रक्षथम पूजा यनया ||
अर्थ - हे अश्विनी देव कृपया इस गर्भवती महिला की पवित्र श्रद्धांजलि और पूजा को स्वीकार करें और उसकी रक्षा करें जो अपने परिवार को पूरा करने के लिए सभी संकटों और जोखिमाें से जूझ रही है।
इस श्लोक को पढ़ने का सबसे अच्छा समय | स्नान के बाद किसी भी समय |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करें | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
कौन इस श्लोक का पाठ कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
गर्भावस्था के तीसरे महीने में इस मंत्र का जाप किया जाता है। तीसरी तिमाही के अंत तक इस मंत्र का जाप करना महिला के लिए फायदेमंद होता है। यह उत्पन्न होने वाली किसी भी अनावश्यक बाधाओं को समाप्त करता है। यह गर्भवती महिला के आस-पास के सभी अज्ञात लोगों के कारण होने वाले तनाव और चिंता को कम करने में सहायता करता है। इस मंत्र के सहयोग से गर्भवती महिला मानसिक रूप से अधिक शांत रहती है। आपको बात दें कि गर्भवती महिला जितनी शांत और स्वस्थ होगी, शिशु उतना ही स्वस्थ और बेहतर होगा।
रुद्राश्च एकादश प्रोक्था, प्रग्रुहन्थु बालिम द्विमम्,
युष्माकम प्रीथाये वृथम, नित्यं रक्षथु गर्भनीम ||
अर्थ - हे ग्यारह पवित्र रूद्र ! कृपया हमारी प्रार्थना और प्रसाद को स्वीकार करें, जो आपकी इच्छा के अनुकूल है। कृपया इस गर्भवती महिला की रक्षा करें, जो अपने परिवार को पूर्ण करने के लिए तमाम कष्टों और जोखिमों से गुजर रही है। आप अपनी दया और आशीर्वाद उस पर बनाए रखें।
इस श्लोक का जाप कब करें | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए? | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
इस श्लोक का पाठ कौन कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
यह एक वैदिक मंत्र है। यह मंत्र उसकी रक्षा करता है, जो इस मंत्र का जाप करता है। जीवनदायिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य को इस मंत्र में सम्मानित किया जाता है। गर्भवती होने पर इस मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है। यह आपको सहज और करुणामय महसूस कराएगा। आपका अजन्मा शिशु बड़ा होकर बुद्धिमान और ब्रह्मांड के अनुरूप होगा। यह मंत्र आपके वातावरण में सकारात्म्क ऊर्जा को सक्रिय करता है और आपकी आभा को स्वच्छ तथा स्वस्थ रखने में मदद करता है।
आदित्य द्वादसा प्रोक्था, प्रग्रहनीथवं बालिम द्विमम्,
युष्मगम थेजसम वृध्या, नित्यं रक्षा गर्भनीम ||
अर्थ - हे बारहवे पवित्र सूर्य देव आशीर्वाद स्वरूप आप अपनी तरह हमारे जीवन को भी तेज चमक से भर दें। मैं आपके समक्ष नमन करता हूं। मेरी प्रार्थना को स्वीकार करें और इस गर्भवती महिला को हर तरह जोखिम से बचाएं, जो कि परिवार पूर्ण करने की राह पर है।
इस श्लोक का जाप कब करें | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए? | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
इस श्लोक का पाठ कौन कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
यह मंत्र जन्म और विकास के कभी न खत्म होने वाले सार को दर्शाता है। इस मंत्र के सहयोग से मन संतुलित होगा और सहज ज्ञान में वृद्धि होगी। यह मंत्र शिशु के इस दुनिया में जन्म लेने से पहले गर्भवती महिला को अलग-अलग चरण में ले जाने में सहयोग करता है। इस मंत्र की मदद से गर्भवती महिला का मन शांत और उसका स्वास्थ्य बेहतर होता है। असल में यह मंत्र गर्भावस्था के इस सफर को एक चरण यानी गर्भ धारण करने से लेकर गर्भ के अंदर भ्रूण के शिशु बनने तक के अगले चरण तक सहजता से ले जाता है। इस मंत्र का प्रयोग केवल गर्भावस्था में ही किया जाता है।
विनायक गणध्याक्ष, शिव पुत्र महा बाला,
प्रग्रह्नीश्व बलिम चा इमाम, सपथ्यं रक्षा गर्भनीम ||
अर्थ - हे विनायक, हे गणेश, हे भगवान शिव के पुत्र आप शक्तिशाली हैं। आप कृपया हमारा नमन स्वीकार करें और इस गर्भवती महिला की कष्टों और जोखिमों से उसकी रक्षा करें। उसके परिवार के संपूर्ण होने की राह में उसकी मदद करें।
इस श्लोक का जाप कब करें | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए? | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
इस श्लोक का पाठ कौन कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
यह मंत्र गर्भवती महिला को अंदर से मजबूत बनाता है और चिकित्सकीय सुरक्षा प्रदान करता है। यह गर्भवती महिला की, गर्भ में पल रहे शिशु की और आसपास के माहौल को सुरक्षात्मक बनाता है। यह गर्भवती महिला के इर्द-गिर्द अच्छा वातावरण का निर्माण कर मन को शांत रखने में मदद करता है। इस मंत्र का जप करते हुए, गर्भवती महिला को अपने मन में खुद के और शिशु के बेहतर स्वास्थ्य की कल्पना करनी चाहिए। यह कल्पना करनी चाहिए कि भगवान के आशीर्वाद से वह स्वयं और उसका शिशु सदैव स्वस्थ रहेंगे। शिशु और मां के स्वस्थ रहने की कामना करने हेतु गर्भावस्था के छठे महीने के दौरान इस मंत्र का जाप धार्मिक रूप से करने की सलाह दी जाती है। यह गर्भवती महिला को सुखद वातावरण प्रदान करता है, जिसकी वह उम्मीद करती है।
स्कंद षणमुखा देवेसा, पुथरा प्रीति विवर्धन,
प्रग्रहनीश्व बालिम चा इमाम, सपथ्यं रक्षा गर्भनीम ||
अर्थ - हे स्कंद, हे छह सिर वाले भगवान, हे देवों के प्रमुख भगवान, पुत्रों के प्रति हमारे प्रेम को बढ़ाने वाले भगवान। कृपया इस पवित्र बलिदान को स्वीकार करें और इस गर्भवती महिला की रक्षा करें जो सभी खतरों का जोखिम उठाते हुए अपने परिवा को पूर्ण करने के पथ में है।
इस श्लोक का जाप कब करें | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए? | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
इस श्लोक का पाठ कौन कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
गर्भवती महिला को इस मंत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। यह बेहद उत्कृष्ट मंत्र है। यह मंत्र किसी व्यक्ति को ब्रह्मांड से जुड़ने में मदद कर सकता है। यह मत्र गर्भवी महिला के मन-मस्तिष्क और भावनाओं के बीच संतुलन बनाए रखने में सहयोग करता है। नतीजतन, इस मंत्र की मदद से मां और उसका बच्चा शारीरिक और बौद्धिक रूप से अधिक संतुलित होते हैं। सातवें महीने में इस मंत्र का जाप करना काफी फायदेमंद हो सकता है।
|| प्रभासः प्रभावश्यामः प्रत्याउशो मारुथोएनालाह
द्रुवोधुरा धरशैव, वासवोष्टौ प्राकीरथिथा
प्रग्रह्नी थवं बलिम चा इमाम, नित्यं रक्षा गर्भनीम ||
अर्थ - हे अष्टवसु देव कुल जिनमें धर, ध्रूव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभाष शामिल हैं, मैं सबको नमन करता हूं। हे भगवान इस पवित्र बलिदान को प्राप्त करें। यह महिला जो कष्टों और जोखिमों को सहते हुए परिवार को पूर्ण करने के पथ पर है, आप उसकी रक्षा करें।
इस श्लोक का जाप कब करें | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए? | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
इस श्लोक का पाठ कौन कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
यह मंत्र देवी-देवताओं की स्त्री और कलात्मक शक्ति का आह्वान करता है। यह मंत्र गर्भावस्था के सफर के दौरान और प्रसव के समय में अपनी स्त्रीत्व अंतर्ज्ञान से जुड़ने में मदद करता है। साथ ही खुद पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करता है। वैसे भी मातृत्व दुनिया में एक नए जीवन के आगमन की तैयारी है और यह कई तरह के बदलावों से होकर गुजरती है। यह मंत्र आपको मानसिक संतुलन प्राप्त करने में मदद कर सकता है। अपने अंतर्मन को बेहतर करने और मन को शांत रखने में भी यह मंत्र मददगार है।
||पिथुरदेवी, पिधुश्रेष्ठे, बहू पुत्री, महा बाले,
भूत श्रेष्ठ निशा वासेय, निर्व्रथा, सौनाकाप्रिये,
प्रग्रह्नीश्व बलिम चा इमाम, सपथ्यं रक्षा गर्भनीम ||
अर्थ - हे मेरे पितरों की देवी, जो सभी महिलाओं की बेटियों के रूप में हैं, हे देवी जो अत्यंत शक्तिशाली हैं, हे देवी जो सभी प्राणियों से अधिक शक्तिशाली हैं, हे देवी जो रात में हमारी रक्षा करती हैं, हे देवी जो दोषों के बिना हैं, हे देवी जो सौनाका द्वारा पूजनीय हैं। कृपया इस अनमोल बलिदान को स्वीकार करें और इस महिला को परिवार के रास्ते में रहते हुए सभी खतरों से सुरक्षित रखें।
इस श्लोक का जाप कब करें | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए? | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
इस श्लोक का पाठ कौन कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
यह मंत्र माँ को उत्कृष्ट पोषण देता है। साथ ही होने वाली मां के मन को शांत रखता है और जिस समय शिशु का विकास होता है, उस अवधि में मंत्र की ऊर्जा गर्भ में और उसके बाद बच्चे के स्वास्थ्य, व्यवहार, शैक्षणिक और भावनात्मक विकास में सहायता करती है। ऐसा कहा जाता है कि यह मंत्र गर्भावस्था के नौवें महीने में माँ को अत्यधिक आराम और शक्ति प्रदान करता है। यह भी समझा जाता है कि इस मंत्र की ध्वनियां और कंपन गर्भ में रहते हुए शिशु को आध्यात्मिक और बौद्धिक रूप से विकसित होने में मदद करते हैं।
रक्षा रक्षा महादेव, बक्था अनुग्रह कारक,
पाक्षी वाहन गोविंदा, सपथ्यं रक्षा गर्भनीम ||
अर्थ - हे भगवान, जो सर्वश्रेष्ठ हैं, जो अपने अनुयायियों की रक्षा करते हैं और आशीर्वाद देने में प्रसन्न होते हैं, पक्षी पर सवार हे गोविंदा, कृपया उस गर्भवती महिला की रक्षा करें, जो खतरों और जोखिमों को पार करते हुए अपने परिवार को संपूर्ण करने के पथ पर हैं।
इस श्लोक का जाप कब करें | स्नान के बाद कभी भी |
इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए? | 108 बार (न्यूनतम 1 बार से 108 बार) |
इस श्लोक का पाठ कौन कर सकता है? | गर्भवती महिला |
किस तरफ मुख करके इस मंत्र का जाप करें | किसी देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने |
सफलता मंत्र
देवी चंद्रघंटा मंत्र
साबर मंत्र
साईं मंत्र
काली मंत्र
बटुक भैरव मंत्र
काल भैरव मंत्र
शक्ति मंत्र
पार्वती मंत्र
बीज मंत्र
ऊँ मंत्र
दुर्गा मंत्र
कात्यायनी मंत्र
तुलसी मंत्र
महा मृत्युंजय मंत्र
शिव मंत्र
कुबेर मंत्र
रुद्र मंत्र
राम मंत्र
संतान गोपाल मंत्र
गायत्री मंत्र
हनुमान मंत्र
लक्ष्मी मंत्र
बगलामुखी मंत्र
नवग्रह: मंत्र
सरस्वती मंत्र
सूर्य मंत्र
वास्तु मंत्र
मंगल मंत्र
चन्द्र मंत्र
बुद्ध मंत्र
बृहस्पति मंत्र
शुक्र मंत्र
शनि मंत्र
राहु मंत्र
केतु मंत्र
गर्भावस्था मंत्र
गृह शांति मंत्र
गणेश मंत्र
राशि मंत्र
कृष्ण मंत्र
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