साईंं बाबा (Sai Baba) जिन्हें प्यार से शिरडी साईंं बाबा भी कहा जाता है। वह एक गुरु थे, वह आध्यात्मिकता की अगुवाई करते थे, जिन्हें समूचे भारत के लोग, हिंदु और मुसलमान उनसे प्रेम करते थे और उनका अनुसरण करते थे। उनकी लोकप्रियता अमेरिका और कैरिबियन के क्षेत्रों तक फैली हुई है। उनके भक्त हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में बराबर मौजूद हैं। दोनों धर्म के लोग उन्हें समान रूप से पूजते हैं। साईंं बाबा नाम साईं शब्द से लिया गया है, जो एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है, पवित्र। जबकि शब्द बाबा, पिता के लिए एक हिंदू शब्द है। साईंं बाबा का वास्तविक इतिहास अभी भी एक रहस्य है। कोई यह नहीं बता सकता है कि वह वास्तव में से कहां से संबंध रखते हैं।
बेहद लोकप्रिय सिद्धांत के अनुसार साईंं बाबा (Sai Baba) हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इसके बाद उन्हें एक सूफी फकीर ने गोद ले लिया था, जो कि खुद एक भिक्षुक थे। हालांकि उन्होंने दावा किया था कि उनके गुरु हिंदू थे। साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में बहुत यात्राएं की थीं और कई जगह भटके थे। अंत में वह पश्चिमी भारतीय राज्य महाराष्ट्र के शिरडी पहुंचे। जब वह शुरुआत में वहां पहुंचे, तो उनका स्वागत अच्छी तरह से नहीं किया गया था। अधिकांश लोग उनकी अवहेलना करते थे। लेकिन साईंं बाबा (Sai Baba) के चमत्कारों को देखने के बाद न सिर्फ हिंदू बल्कि मुसलमान भी उनके अनुयायी बनकर उनका अनुसरण करने लगे। हर कोई उनके द्वारा किए गए चमत्कारों से मंत्रमुग्ध थे। जब साईंं बाबा बीमार और गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों को स्वस्थ करने लगे, तब लोगों ने उनकी खूब सराहना की। उनकी सम्मोहक शिक्षाओं ने हर व्यक्ति को उनकी ओर आकर्षित किया, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या पंथ का हो।
वह शिरडी में एक सामान्य से घर में रहते थे, सिर पर पगड़ी पहनते थे। उनके घर में हर समय एक दीपक जलता रहता था। यह सूफियों द्वारा पालन की जाने वाली एक प्रथा है। यद्यपि वह मस्जिद में रहते थे, उन्होंने उसका नाम द्वारकामाई रखा था। यह एक हिंदू धार्मिक नाम है। माना जाता है कि वह पुराणों, भगवद गीता और कई हिंदू धार्मिक पुस्तकों के बारे में जानते थे। साईंं बाबा (Sai Baba) की अधिकांश शिक्षाओं ने एक विरोधाभासी मोड़ लिया था। उनके मन में गरीबों और कमजोरों के प्रति विशेष सहानुभूति थी।
साईंं बाबा (Sai Baba) ने वादा किया था कि उनका आशीर्वाद हमेशा उनके अनुयायियों के साथ रहेगा। उनके ये शब्द सही साबित हुए। जो कोई व्यक्ति पूरे श्रद्धाभाव से साईंं बाबा की भक्ति करता है, उसे कभी भी दुर्भाग्य नहीं देखना पड़ता। साईंं हमेशा अपने भक्तों पर अपना आशीर्वाद और दया बनाए रखते हैं। आपको बता दें कि जीवन में आस्था को होना बहुत जरूरी है। आस्था के साथ ही साहस और आशा का आगमन होता है। जो व्यक्ति पूरी आस्था और विश्वास के साथ साईंं बाबा की पूजा करता है, उनके संरक्षण में आता है, उस व्यक्ति को कभी भी दुर्भाग्य, दुख, शोक, और समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। उसका जीवन सुख और संतुष्टि से भर जाता है।
यह सर्वविदित है कि साईंं बाबा लोगों के गुरु हैं, धर्म के नहीं। इसलिए किसी भी धर्म से संबंधित, चाहे वे हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाईं हो, महान संत का आशीर्वाद और चमत्कार प्राप्त करने के लिए साईंं बाबा मंत्र का जाप कर सकता है। बस आपके मन में उनके प्रति भक्तिभाव होना चाहिए।
महाराष्ट्र के जिले औरंगाबाद के धूपखेड़ा गांव में चांद भाई नाम का एक पाटिल रहता था। एक दिन उसका घोड़ा खो गया। चांद भाई ने अपने घोड़े को हर जगह खोजा। लेकिन वह नहीं मिला। निराश और उदास महसूस करते हुए और चौदह मील की यात्रा करते हुए, वह आम के पेड़े के नीचे बैठे एक फकीर से मिला। फकीर ने अपने सिर पर एक टोपी पहनी थी, एक करणी और उसकी बांह के नीचे एक लाठी थी। फकीर ने चांद भाई से पूछा, क्या ढूंढ़ रहे हो? चांद भाई ने बताया कि उसका घोड़ा खो गया है, जिसे ढूंढ़ते हुए वह काफी दूर आ गया है। चांद भाई की बात सुनकर फकीर ने नाले की ओर इशारा करते हुए कहा कि थोड़ा उस तरफ भी ढूंढ़ लो। फकीर की बात सुनकर चांद भाई उस ओर पहुंचा जहां उसे आखिरकार अपना घोड़ा मिल गया। चांद भाई ने महसूस किया कि फकीर एक साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि एक महान संत हैं। चांद भाई ने फकीर को अपने घर जाने और आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया। अगले दिन फकीर चांद भाई के साथ उसके घर पहुंचे और वहां कुछ समय गुजारा।
कुछ दिनों बाद चांद भाई के घर एक विवाह समारोह हुआ और बारात शिरडी गई। उन्होंने फकीर को भी अपने साथ विवाह समारोह में सम्मिलित होने का अनुरोध किया। फकीर तैयार हो गए। शिरडी पहुंचने पर, खंडोबा के मंदिर के पास मौजूद एक बरगद के पेड़ के नीचे वह ठहर गए। यह म्हालसापति के खेत के पास भी था। बारात को कुछ समय इस जगह पर ठहराया गया। बारात में शामिल फकीर को देखते हुए म्हालसापति ने गर्मजोशी से उनका स्वागत करते हुए कहा कि 'आइए साईंं'। तभी से सभी लोग उन्हें साईंं बाबा के नाम से जानते हैं।
॥ ॐ साईंं राम ॥
अर्थ– हम साईं बाबा को नमन करते हैं, जो ओम की तरह दिव्य हैं और राम अवतार की तरह पूजनीय।
साईंं मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | गुरुवार, पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
साईंं मंत्र का जाप कौन कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करना चाहिए | उत्तर या पूर्व की ओर |
बात उस समय की है, जब एक बार शिरडी में हैजा नाम की महामारी फैल गई थी। इसमें कई लोगों की जान चली गई। चारों तरफ हाहाकार-सा मच गया था। मृत लोगों की बढ़ती संख्या देख वहां के लोग काफी घबरा गए और सभी मिलकर साईंं बाबा के पास मदद के लिए गए। सबने उनसे प्रार्थना की कि सबको इस बीमारी से मुक्त कर दें। अपने अनुयायियों की बात सुनकर साईंं बाबा उठे, हाथ-मुंह धोया, कुछ गेहूं लिया और उसे चक्की में पीसने लगे। इसके बाद उन्होंने गांव की महिलाओं को वह आटा सौंपा और कहा कि इस आटे को लेकर गांव के चारों ओर बिखेर दो। इससे गांव में फैली महामारी खत्म हो जाएगी। महिलाओं ने साईंं बाबा के निर्देश अनुसार गांव के चारों ओर आटे से एक परिक्रमा बना दी। इसके बाद जो चमत्कार हुआ, उसे कभी कोई नहीं भूल सका। कुछ ही दिनों में हैजा की बीमारी गांव से खत्म हो गई। सब स्वस्थ हो गए। इस कथा में वास्तविक रूपक यह था कि साईंं बाबा गेहूं के भेष में अपनी चक्की में बीमारी को पीस रहे थे। जब उन्होंने गांव की महिलाओं से गेहूं को गांव के चारों ओर फेंकने को कहा, तो वह बीमारी को गांव से दूर फेंकने के लिए, उनका मार्गदर्शन कर रहे थे।
ॐ शिर्डी वासाय विद्महे सच्चिदानंदाय धीमहि तन्नो साईंं प्रचोदयात् ||
अर्थ - ॐ! मैं उस साईंं को नमन करता हूं जो शिरडी में रहते हैं और जो दिव्य आनंद के प्रतीक हैं। हे साईंं आप मेरे आध्यात्मिक मार्गदर्शक बनें और मेरी बुद्धि को प्रकाशित करें।"
साईंं शिरडी मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | गुरुवार, पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
साईंं शिरडी मंत्र का जाप कौन कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर या पूर्व |
साईंं बाबा (Sai Baba) द्वारकामाई में रहते थे, जहां वे रोजाना एक दीप जलाया करते थे। ऐसा माना जाता था कि वह सूफी प्रथा का अनुसरण करते थे। सामान्यत: वह दुकानदाराें से दीपक जलाने के लिए तेल मांग लिया करते थे और लोग भी उन्हें तेल दे दिया करते थे। लेकिन एक दिन जब वह दुकानदारों से तेल मांगने गए तो सबने उन्हें तेल देने से इंकार कर दिया। तब तक साईंं बाबा संत के रूप में ज्यादा प्रचलित नहीं थे वरन सब उन्हें पागल फकीर समझते थे। लेकिन जिस दिन उन्हें दीपक जलाने के लिए तेल नहीं मिला, वह तेल का खाली डिब्बा लिए द्वारकामाई लौट आए। उन्हाेंने खाली डिब्बे में थोड़ा पानी भरा और उसे पी गए। इसके बाद उन्होंने दीयों में जल भरकर उन्हें प्रज्ज्वलित किया। यह देख सब आवश्चर्यचकित हो गए कि पानी भरा दीपक ठीक वैसे ही प्रज्जवलित हो रहा है जैसे तेल से भरा दीपक जलता है। इस वाकया के बाद साईंं बाबा की प्रतिष्ठा मजबूत हो गई। लोग उन्हें एक महान संत के रूप में जानने लगे।
|| ॐ सच्चिदानंद सद्गुरु साईंंनाथ महाराज की जय अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक राजाधिराज साईंं बाबा की जय ||
अर्थ - ॐ ! हम उस साईंं बाबा को नमन करते हैं जो सत्य, चेतना और आनंद हैं! जो सदा सुखी रहते हैं, वह सदा विजयी रहें।
साईंं सच्चिदानंद मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | गुरुवार, पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
साईंं सच्चिदानंद मंत्र का जाप कौन कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर या पूर्व की ओर |
राव बहादुर मोरेश्वर प्रधान की कहानी भी प्रसिद्ध है। एक बार वह अपनी पत्नी के साथ साईंं बाबा के दर्शन के लिए शिरडी गए। दर्शन के बाद जब वह अपनी पत्नी के साथ घर लौटने लगे तो अचानक तेज वर्षा होने लगी, बादल गरजने लगे और बिजली कड़कने लगी। साथ ही तेज आंधी होने लगी। बिगड़ते मौसम की वजह से राव बहादुर और उनकी पत्नी बहुत चिंतित हो गईं। उन्होंने चिंतित भाव से चारों ओर देखा। अपने मेहमानों को निराश देखकर, साईंं बाबा ने प्रार्थना की "हे अल्लाह, बारिश बंद हो जाए। मेरे बच्चे घर जा रहे हैं। उन्हें शांति से जाने दो।" इसके बाद धीरे-धीरे बारिश कम हो गई। आंधी पूरी तरह थम गई। इससे प्रधानों ने साईंं बाबा को एक बार फिर धन्यवाद कहा और वे अपनी यात्रा के लिए निकल पड़े।
ॐ साईंं नमो नमः श्री साईंं नमो नमः जय जय साईंं नमो नमः सद्गुरु साईंं नमो नमः||
अर्थ- जो बार-बार समर्पण करते हैं, मैं उस साईंं बाबा को नमन करता हूं।
साईंं सद्गुरु मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | गुरुवार, पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
साईंं सद्गुरु मंत्र का जाप कौन कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर या पूर्व |
एक बार की बात है। शिरडी में अनाज की कटाई का समय था। उन दिनों बहुत तेज गर्मी और गर्म हवा चल रही थी। एक दोपहर, साईंं बाबा ने कोंडाजी सतर को बुलाया और उन्हें सूचित किया कि उनका खेत जल रहा है। कोंडाजी यह सुनकर अपने खेत की ओर दौड़े। लेकिन उन्होंने देखा कि खेत में आग नहीं लगी है। वह साईंं के पास लौटकर आए और उन्हें बताया कि खेत में आग नहीं लगी है। साईंं बाबा ने फिर उन्हें वापस खेत में जाकर ध्यान से देखने को कहा। अब की बार कोंडाजी को दिख गया कि हां, खेत में हल्की सी आग लगी है। वह आग कटे हुए मकई के ढेर तक पहुंच गई है। गर्म मौसम के कारण आग धीरे-धीरे फैलती जा रही थी। कोंडाजी अन्य ग्रामीणों के साथ साईंं बाबा (Sai Baba) के पास गए और उनसे मदद मांगी। तब साईंं बाबा ग्रामीण वासियों के साथ वहां गए, जहां आग लगी थी। वह आग के पास गए और उस पर कुछ पानी छिड़का। कुछ देर में ही आग नियंत्रित होकर बुझ गई। इस बात को कोई नहीं जानता कि साईंं बाबा ने उस सुलगती आग को कैसे बुझाया या उन्हें आग के बारे में पहली बार कैसे पता चला। इस तरह की घटनाएं महान संत साईंं बाबा की रहस्यमय शक्तियों की ओर इशारा करते हैं।
श्री साईं अपराजिताय नमः ||
साईंं अपराजित मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | गुरुवार, पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
साईंं अपराजित मंत्र का जाप कौन कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर या पूर्व की ओर |
एक घटना थी जब बाबू करवंदीकर नाम के एक गरीब आदमी की बेटी कुएं में गिर गई। यह खबर पूरे गांव में फैल गई कि बच्चा डूब गया है। हर कोई बच्चे की मदद करने और स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए दुर्घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े। जब वे पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि बच्चा पानी के ठीक ऊपर तैर रहा था, जैसे कि उसे किसी अदृश्य हाथ से पकड़ा जा रहा हो और उसे सुरक्षित रूप से बाहर निकाल लिया गया। बच्चा साईंं बाबा को प्रिय था और उसने खुद को साईंं की बहन बताया। घटना के बाद सभी ने उसकी बात मान ली। दार्शनिक रूप से सब यह दावा करेंगे कि "यह सब बाबा की लीला है"।
ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ हं फट् ||
साईंं लीला मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम समय | गुरुवार, पूर्णिमा |
इस मंत्र का जाप करने की संख्या | 108 बार |
साईंं लीला मंत्र का जाप कौन कर सकता है | कोई भी |
किस दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें | उत्तर या पूर्व की ओर |
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